गुरु ने शिष्य को सुखी व्यक्ति का जूता लाने को कहा, शिष्य कई लोगों से मिला और आश्रम जाकर बताई ये बात

जीवन एक संघर्ष की तरह है। यहां एक परेशानी खत्म होती है और दूसरी शुरू हो जाती है। जिसके पास अपार धन-संपदा है उसे भी किसी बात का दुख जरूर होता है। वहीं आम आदमी तो रोज किसी न किसी समस्या का अनुभव करता ही है। ये रोज की बात है।

Manish Meharele | Published : Apr 24, 2022 10:50 AM IST

उज्जैन. परेशानियां से भागना कोई हल नहीं है बल्कि इनका मुकाबला करना चाहिए और इनके समाधान के बारे में विचार करना चाहिए। Asianetnews Hindi Life Management सीरीज चला रहा है। इस सीरीज के अंतर्गत आज हम आपको ऐसा प्रसंग बता रहे हैं जिसका सार यही है कि परेशानी हमारे जीवन के एक अंग है और कोई भी इससे अछूता नहीं है।

जब गुरु ने शिष्य को भेजा सुखी व्यक्ति का जूता लाने
किसी समय में एक गुरु अपने आश्रम में शिष्यों को शिक्षा दिया करते थे। एक दिन एक शिष्य उनके पास आया और बोला कि “गुरुजी मैं अपने जीवन से बहुत परेशान हूं, मुझे इससे मुक्ति कैसे मिल सकती है?”
गुरु ने कुछ देर सोचा और फिर बोले “मैं तुम्हें दुख दूर करने का उपाय बता दूंगा, लेकिन उसके पहले तुम्हें मेरा एक काम करना होगा। गांव में से किसी ऐसे व्यक्ति के जूते लेकर आजो जो सबसे सुखी है।” 
शिष्य ने सोचा कि ये तो छोटा सा काम है, मैं अभी कर देता हूं। शिष्य गांव में निकल गया और एक व्यक्ति से बोला कि “आप मुझे गांव के सबसे सुखी इंसान दिख रहे हैं, क्या आप मुझे अपने जूते दे सकते हैं?” 
शिष्य की बात सुनते ही वह आदमी आगबबूला हो गया और बोला कि “ मैं अपने भाई की वजह से बहुत दुखी और परेशान हूं और तुम्हें मैं सुखी दिखाई देता हूं। चलो भाग जाओ यहां से।” 
शिष्य थोड़ी आगे गया तो एक दूसरा आदमी दिखाई दिया और काफी प्रसन्न मुद्रा में था। उसे देखकर शिष्य ने उसको पूरी बात बताई और जूते मांगे।
इतना सुनते ही उस आदमी के चेहरे के हंसी उड़ गई और वो बोला “अभी कुछ दिन पहले ही मुझे व्यापार में काफी नुकसान हुआ है। मैं तो सिर्फ ऊपर से हंस रह हूं, अंदर से काफी दुखी हूं।”
यहां भी बात नहीं बनी तो शिष्य दूसरे आदमी के पास पहुंचा और उसे पूरी बात बताई। इतना सुनते ही वो व्यक्ति जोर-जोर से रोने लगा और कहने लगा “मुझे कई तरह की बीमारियां हैं, जिनकी वजह से न तो मैं ठीक से खा सकता हूं और न ही अपने मन के काम कर सकता हूं। इसलिए मैं काफी दुखी हूं।”
दिन भर इसी तरह लोग मिलते रहे, लेकिन शिष्य को एक भी सुखी आदमी नहीं मिला। रात को जब वो गुरु के पास गया तो उसने पूरी बात बताई।
गुरु ने उसे समझाया कि “दुनिया में कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है, जिसे कोई दुख न हो। सभी की अपनी-अपनी परेशानियां। आज तुमने देखा होगा कि दूसरों लोगों की परेशानी के आगे तुम्हारी समस्या तो कुछ भी नहीं है।” शिष्य को गुरु की बात समझ में आ चुकी थी। 

निष्कर्ष ये है कि…
दुनिया में कोई इंसान सुखी नहीं है, कोई बीमारी से परेशान है तो कोई परिवार से। लेकिन हर कोई किसी न किसी तरह जीवन जी रहा है। इसलिए अपनी परेशानियों से निराश न हों और उनके समाधान के बारे में सोचें।

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