गुरु ने शिष्य को पानी लाने कहा, झरने का पानी गंदा देख वो लौट आया, गुरु ने उसे दोबारा भेजा तब क्या हुआ?

जीवन अनिश्चिताओं से भरा है। कई बार स्थितियां बहुत विकट बन जाती है तो कभी सहज। अक्सर लोग विकट परिस्थितियों से घबराकर भागने की कोशिश करते हैं या फिर कोई गलत निर्णय ले लेते हैं। जबकि ऐसा नहीं करना चाहिए।

Manish Meharele | Published : Mar 29, 2022 6:30 AM IST / Updated: Mar 29 2022, 12:20 PM IST

उज्जैन. मुश्किल स्थिति आने पर धैर्य से काम लेना चाहिए और समय आने पर उचित निर्णय लेना चाहिए। Asianetnews Hindi Life Management सीरीज चला रहा है। इस सीरीज के अंतर्गत आज हम आपको ऐसा प्रसंग बता रहे हैं जिसका सार यही है कि विषम परिस्थितियों से घबराना नहीं चाहिए और उचित समय आने का इंतजार करना चाहिए।


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जब गुरु ने शिष्य को पानी लाने को कहा

एक बार गुरु अपने शिष्यों के साथ जंगल के बीच से गुजर रहे थे। चलते-चलते गुरु को प्यास लगी। उन्होंने अपने सबसे प्रिय शिष्य से कहा कि ”यहीं पास में एक झरना है, वहां जाओ और पानी लेकर आओ।”
गुरु के कहने पर शिष्य उनकी बताई गई जगह पर गया और उसने देखा कि झरने का पानी तो बहुत गंदा है। ये देखकर वो वापस लौट आया और गुरु को पूरी बात बताई और ये भी कहा कि “ मैं किसी दूसरे झरने से पानी लेकर आता हूं।”
गुरु ने कहा “यहां आस-पास और कोई पानी का अन्य स्त्रोत नहीं है। इसलिए तुम फिर से उसी झरने पर जाओ, अब तक उसका पानी साफ हो गया होगा, जाकर ले आओ।”
शिष्य फिर से उसी झरने पर गया, लेकिन पानी अब तक मटमैला ही था। वो पुन: अपने गुरु के पास लौट आया। कुछ देर रुकने के बाद गुरु ने पुन: शिष्य को उसी झरने पर पानी लेने भेजा। लेकिन अबकी बार पानी थोड़ा साफ था, लेकिन पीने लायक नहीं था। शिष्य ने कुछ देर इंतजार किया तो पानी एकदम साफ और पीने लायक हो गया।
शिष्य ने पानी अपने बर्तन ने भरा और गुरु के पास लौट आया। गुरु ने शिष्य से पूछा कि “इस बार तुमने काफी देर लगा दी।”
शिष्य ने कहा कि “अबकी बार जब मैं झरने पर गया तो पानी थोड़ा साफ तो था, लेकिन पानी योग्य नहीं था। पानी को पूरी तरह साफ होने तक मैंने इंतजार किया, इसके बाद ही मैं पानी भरकर ला पाया।”
गुरु ने शिष्य को समझाया कि “जीवन में भी कई बार ऐसी परिस्थिति बन जाती है जब हमें कोई रास्ता नहीं सूझता। उस समय परिस्थितियों को समझते हुए धैर्य से काम लेना चाहिए। और परिस्थितियों के अनुकूल होने पर उचित निर्णय लेना चाहिये।”
शिष्य को गुरु की बात समझ आ चुकी थी।

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निष्कर्ष ये है कि…
लाइफ में जब भी कोई मुसीबत आए तो उससे भागना नहीं चाहिये। स्थिति सुधरने का इतंजार करना चाहिए, उसके बाद हो कोई निर्णय लेना चाहिए। जल्दबाजी में लिए गए निर्णय गलत साबित हो सकते हैं।

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