सार
कुछ लोगों की आदत होती है कि वे गुस्से में आकर किसी को कुछ भी बोल देते हैं, बाद में गलती का अहसास होने पर माफी भी मांग लेते हैं। ऐसा करके उन्हें लगता है कि उन्होंने अपनी गलती सुधार ली है, जबकि ऐसा होता नहीं है।
उज्जैन. शब्दों का घाव इतनी आसानी से नहीं भर पाते। जीवनभर उनका दर्द हमेशा बना रहता है। Asianetnews Hindi Life Management सीरीज चला रहा है। इस सीरीज के अंतर्गत आज हम आपको ऐसा प्रसंग बता रहे हैं जिसका सार यही है कि बिना सोचे-समझे किसी को भी भला-बुरा नहीं कहना चाहिए, क्योंकि छोड़े गए तीर की तरह अपशब्द भी वापस नहीं आते।
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जब दो किसानों के बीच हो गया विवाद
किसी गांव में दो किसान पास-पास रहते थे। दोनों में बहुत भाईचारा था। एक बार किसी बात पर दोनों में बहस हो गई। एक किसान ने दूसरे को बहुत भला-बुरा कहा, लेकिन दूसरा किसान चुपचाप सुनता रहा। कुछ दिन बाद जिस किसान ने दूसरे को भला-बुरा कहा था, उसे अपनी गलती का अहसास हुआ।
मन में पछतावा होने पर वो किसान अपने गुरु के पास गया और पूछा कि “अब मुझे क्या करना चाहिए?”
संत ने किसान से कहा, ” पहले पहले तुम खूब सारे पंख इकठ्ठा कर लो और उन्हें गांव के बीचो-बीच जाकर रख दो। इसके बाद उन सभी पंखों को हवा में उड़ा देना। इसके बाद पुन: वो सभी पंख इकट्ठे कर मेरे पास लेकर आना।”
किसान ने गुरुजी की बात कुछ समझ नहीं आई, लेकिन फिर भी उसने ऐसा ही किया। इसके बाद जब वो आश्रम में पहुंचा और गुरु से मिला।
गुरु ने उससे पूछा “क्या हवा में उड़ाने के बाद सभी पंख तुमने पुन: इकट्ठे कर लिए?”
किसान ने कहा “नहीं, गुरुजी, उनमें से सिर्फ कुछ पंख में मैं इकट्ठे कर पाया, बाकी तो सभी इधर-उधर उड़ चुके थे।”
गुरु ने किसान ने कहा”ठीक इस तरह तुम्हारे द्वारा कहे गए शब्दों के साथ होता है, तुम आसानी से इन्हें अपने मुख से निकाल तो सकते हो पर चाह कर भी वापस नहीं ले सकते।”
किसान को अपनी गलती का अहसास हुआ और उसने दूसरे किसान के पास जाकर माफी मांग ली और दोबारा उसे न करने का निश्चय किया।
निष्कर्ष ये है कि…
किसी को कुछ कड़वा बोलने से पहले ये याद रखें कि भला-बुरा कहने के बाद कुछ भी कर के अपने शब्द वापस नहीं लिए जा सकते। ज्यादा से ज्यादा आप माफी मांग सकते हैं, लेकिन उस आदमी के मन में आपके प्रति दुराभाव हमेशा बना रहता है।
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