Nagpanchami मान्यता: इन ऋषि का नाम लेने से नहीं काटते नाग, इन्होंने ही रुकवाया था राजा जनमेजय का सर्प यज्ञ

सावन (Sawan) के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नागपंचमी (Nag Panchami) का पर्व मनाया जाता है। इस बार ये पर्व 13 अगस्त, शुक्रवार को है। हमारे धर्म ग्रंथों में नागों (Snakes) की उत्पत्ति से लेकर अन्य कई सारी बातें विस्तार पूर्वक बताई गई हैं। महाभारत के प्रथम अध्याय में ही सर्प यज्ञ का वर्णन आता है। उसके अनुसार जब राजा जनमेजय ने सर्प यज्ञ किया तो दूर-दूर से बलशाली सर्प आकर अग्निकुंड में गिरने लगे। तब एक मुनि पुत्र ने वहां आकर राजा जनमेजय को प्रसन्न उस यज्ञ को रुकवा दिया। वे मुनि थे नागों की बहन जरत्कारू (मनसा) के पुत्र आस्तिक।

Asianet News Hindi | Published : Aug 10, 2021 4:11 AM IST / Updated: Aug 10 2021, 11:06 AM IST

उज्जैन. महाभारत के अनुसार मनसा देवी (नागों की बहन) के पुत्र आस्तिक मुनि का नाम लेने मात्र से भयंकर विषधर नाग भी बिना कोई नुकसान पहुंचाए चला जाता है। आस्तिक मुनि का नाम लेने से सर्प भय नहीं रहता। आगे जानिए आस्तिक मुनि से जुड़ी खास बातें…

नागों की माता ने दिया था भस्म होने का श्राप
एक बार नागों की माता कद्रू ने किसी बात पर क्रोधित होकर नागों की श्राप दिया कि राजा जनमेजय जब सर्प यज्ञ करेंगे तो उसी में तुम सब भस्म हो जाओगे। नागराज वासुकि को जब माता कद्रू के श्राप के बारे में पता लगा तो वे बहुत चिंतित हो गए। तब उन्हें एलापत्र नामक नाग ने बताया कि इस सर्प यज्ञ में केवल दुष्ट सर्पों का ही नाश होगा और जरत्कारू नामक ऋषि का पुत्र आस्तिक इस सर्प यज्ञ को संपूर्ण होने से रोक देगा। जरत्कारू ऋषि से ही सर्पों की बहन (मनसादेवी) का विवाह होगा। यह सुनकर वासुकि को संतोष हुआ।

जनमेजय ने क्यों किया नागदाह यज्ञ?
समय आने पर नागराज वासुकि ने अपनी बहन का विवाह ऋषि जरत्कारू से करवा दिया। कुछ समय बाद मनसादेवी को एक पुत्र हुआ, इसका नाम आस्तिक रखा गया। यह बालक नागराज वासुकि के घर पर पला। च्यवन ऋषि ने इस बालक को वेदों का ज्ञान दिया।
उस समय पृथ्वी पर राजा जनमेजय का शासन था। जब राजा जनमेजय को यह पता चला कि उनके पिता परीक्षित की मृत्यु तक्षक नाग द्वारा काटने से हुई है तो वे बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने नागदाह यज्ञ करने का निर्णय लिया। जब जनमेजय ने नागदाह यज्ञ प्रारंभ किया तो उसमें बड़े-छोटे, वृद्ध, युवा सर्प आ-आकर गिरने लगे। ऋषि मुनि नाम ले लेकर आहुति देते और भयानक सर्प आकर अग्नि कुंड में गिर जाते। यज्ञ के डर से तक्षक देवराज इंद्र के यहां जाकर छिप गया।

आस्तिक मुनि ने रोका था नागदाह यज्ञ
जब आस्तिक मुनि को नागदाह यज्ञ के बारे में पता चला तो वे यज्ञ स्थल पर आए और यज्ञ की स्तुति करने लगे। यह देखकर जनमेजय ने उन्हें वरदान देने के लिए बुलाया। तब आस्तिक मुनि राजा जनमेजय से सर्प यज्ञ बंद करने का निवेदन किया। पहले तो जनमेजय ने इंकार किया लेकिन बाद में ऋषियों द्वारा समझाने पर वे मान गए। इस प्रकार आस्तिक मुनि ने धर्मात्मा सर्पों को भस्म होने से बचा लिया। धर्म ग्रंथों के अनुसार, सर्प भय के समय जो भी व्यक्ति आस्तिक मुनि का नाम लेता है, सांप उसे नहीं काटते।

नागपंचमी के बारे में ये भी पढ़ें

Nag Panchami 2021: 13 अगस्त को 3 शुभ योगों में मनाई जाएगी नागपंचमी, क्यों मनाया जाता है ये पर्व?

Share this article
click me!