देवी सती के क्रोध से प्रकट हुई थीं 10 महाविद्याएं, इनकी साधना बड़ी सावधानी से करनी चाहिए

शारदीय नवरात्रि (Shardiya Navratri 2021) की अंतिम तिथि महानवमी 14 अक्टूबर, गुरुवार को है। नवरात्रि में देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की विशेष पूजा की जाती है। इनके अलावा देवी मां के कुछ भक्त दस महाविद्याओं की भी साधना करते हैं।

उज्जैन. 10 महाविद्याएं देवी सती के क्रोध से प्रकट हुई थीं। उज्जैन के ज्योतिषचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार, इन 10 महाविद्याओं की साधना बहुत सावधानी से करनी चाहिए, छोटी-सी गलती के कारण इन साधनाओं का उल्टा असर भी भक्तों पर हो सकता है। इसलिए योग्य ब्राह्मण और जानकार व्यक्ति की मदद से इन महाविद्याओं से संबंधित साधनाएं करनी चाहिए।

ऐसे प्रकट हई 10 महाविद्याएं
- जब देवी सती के पिता प्रजापति दक्ष एक यज्ञ कर रहे थे, तब उस यज्ञ में शिव जी के अतिरिक्त सभी देवी-देवता, ऋषि मुनि आमंत्रित किया गया। जब ये बात देवी सती को मालूम हुई तो वे भी यज्ञ में जाने के लिए तैयार हो गईं और शिव जी से इसके लिए अनुमति मांगी तो शिव जी ने कहा कि- हमें बिना आमंत्रण उस यज्ञ में नहीं जाना चाहिए।
- सती ने कहा कि- पिता के यहां जाने के लिए किसी आमंत्रण की आवश्यकता नहीं है। शिव जी ने देवी को समझाने की बहुत कोशिश की कि बिना आमंत्रण किसी के घर जाना उचित नहीं है, लेकिन देवी सती नहीं मानीं। शिव जी बार-बार वहां जाने के लिए मना कर रहे थे, इससे देवी क्रोधित हो गईं और भयंकर रूप धारण कर लिया।
- शिव जी देवी को क्रोधित देखकर वहां से जाने लगे तो दसों दिशाओं से माता सती के दस अलग-अलग रूप प्रकट हो गए। इन दस स्वरूपों को ही दस महाविद्या कहा जाता है। इसके बाद शिव जी के मना करने के बाद भी देवी सती अपने पिता दक्ष के यहां यज्ञ में शामिल होने के लिए पहुंच गई।
- यज्ञ स्थल पर प्रजापति दक्ष ने पुत्री सती के सामने शिव जी का अपमान किया तो देवी सती ये सहन नहीं कर सकीं और यज्ञ कुंड में कूदकर देह त्याग दी। इसके बाद देवी मां ने पर्वत राज हिमालय के यहां पार्वती के रूप में लिया था। देवी पार्वती ने शिव जी को पति रूप में पाने के लिए तप किया और तप से प्रसन्न होकर शिव जी ने देवी पार्वती से विवाह किया था।

ये हैं दस महाविद्याएं
- काली, तारा, त्रिपुरासुंदरी (षोडशी), भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, त्रिपुराभैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला।
- इन दस महाविद्याओं के तीन समूह हैं। पहले समूह में सौम्य प्रकृति की देवियां हैं - त्रिपुरासुंदरी (षोडशी), भुवनेश्वरी, मातंगी, कमला।
- दूसरे समूह में उग्र प्रवृत्ति की देवियां हैं - काली, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी।
- तीसरे समूह में सौम्य-उग्र प्रकृति की देवियां हैं - तारा और त्रिपुराभैरवी शामिल हैं।
- इन विद्याओं की कादि, हादि, सादि क्रम से उपासना की जाती है। कालीकुल में काली, तारा और धूमावती आती हैं। शेष विद्याएं श्रीकुल की मानी जाती हैं।

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