वृश्चिक संक्रांति 16 नवंबर को, घर की सुख-समृद्धि के लिए इस दिन करें ये काम

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, सूर्य जब एक राशि से निकलकर दूसरी राशि में प्रवेश करता है तो इसे संक्रांति कहते हैं। इस बार 16 नवंबर, मंगलवार को सूर्य मकर राशि से निकलकर वृश्चिक राशि में प्रवेश करेगा। सूर्य के वृश्चिक राशि में प्रवेश करने से ये वृश्चिक संक्रांति कहलाएगी।
 

उज्जैन. वृश्चिक राशि के स्वामी मंगलदेव हैं। सूर्य के साथ इनकी मित्रता है। इसलिए कह सकते हैं कि सूर्य अपने शत्रु (शनि) की राशि से निकलकर अपने मित्र (मंगल) के घर में प्रवेश कर रहे हैं। सूर्य के इस राशि परिवर्तन का असर देश-दुनिया के साथ-साथ हर राशि के व्यक्ति पर भी पड़ेगा। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. प्रवीण द्विवेदी के अनुसार, इस दिन चातुर्मास समाप्त होंगे और मंगल प्रदोष भी रहेगा। साथ ही इस सर्वार्थसिद्धि नाम का एक शुभ योग भी बन रहा है। ये दिन वृश्चिक राशि वालों के लिए बहुत ही शुभ रहेगा। उन्हें कई तरह के शुभ फल इस दिन मिलेंगे। शुभ फल पाने के लिए 16 नवंबर को क्या करें, जानिए…

सूर्य को अर्घ्य दें 

वृश्चिक संक्रांति पर सूर्योदय के समय तांबे के लोटे में जल लेकर उसमें थोड़ा कुंकुम और लाल फूल डालकर सूर्य को अर्घ्य दें। ऐसा करने से सूर्य संबंधी दोष और पितृ दोष में कमी आती है और शुभ फलों की प्राप्ति होती है।

दान पुण्य करें 
संक्रांति काल को दान के लिए बहुत ही शुभ माना गया है। इस बार 19 नवंबर को वृश्चिक संक्रांति के दिन जरूरतमंदों को गर्म कपड़े, कंबल, जूते, खाने का सामान जैसे गुड़, चावल, गेहूं आदि का दान करें। इस उपाय से आपकी कई परेशानियां खुद ही समाप्त हो जाएंगी।

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नदी में स्नान कर पितृों का तर्पण करें
वृश्चिक संक्रांति पर पवित्र नदी में स्नान करने का विशेष महत्व धर्म ग्रंथों में बताया गया है। संक्रांति पर्व श्राद्ध और तर्पण के लिए भी खास है। ऐसी मान्यता है कि पितृों का तर्पण करने से उन्हें मुक्ति मिलती है, जिसके कारण पितृ दोष भी खत्म हो जाता है।

पूरे साल में होती है 12 संक्रांति
सूर्य के एक राशि से दूसरे राशि में गोचर करने को संक्रांति कहते हैं। संक्रांति एक सौर घटना है। हिन्दू कैलेंडर और ज्योतिष के मुताबिक पूरे साल में 12 संक्रांति होती हैं। हर राशि में सूर्य के प्रवेश करने पर उस राशि का संक्रांति पर्व मनाया जाता है। हर संक्रांति का अलग महत्व होता है। शास्त्रों में संक्रांति की तिथि एवं समय को बहुत महत्व दिया गया है। संक्रांति पर पितृ तर्पण, दान, धर्म और स्नान आदि का काफी महत्व है।

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