Uttarayan 2023: क्या है उत्तरायण, क्यों मनाया जाता है पर्व? इस उत्सव के वैज्ञानिक पहलू जानकर चौंक जाएंगे आप भी

Uttarayan 2023: मकर संक्रांति का पर्व इस बार 15 जनवरी, रविवार को मनाया जाएगा। ये पर्व पूरे देश में अलग-अलग नामों और परंपराओं के साथ मनाया जाता है। गुजरात में इसे उत्तरायण कहते हैं। इस दिन गुजरात में पतंग उड़ाने की परंपरा भी है।
 

Manish Meharele | Published : Jan 10, 2023 10:16 AM IST

उज्जैन. जब सूर्य धनु से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करता है तो पूरे देश में मकर संक्रांति (Makar Sankranti 2023) का पर्व मनाया जाता है। इस बार ये पर्व 15 जनवरी, रविवार को मनाया जाएगा। भारत के अलग-अलग प्रदेशों में ये पर्व विभिन्न नामों और परंपराओं के साथ मनाया जाता है। गुजरात में इसे उत्तरायण (Uttarayan 2023) कहा जाता है। उत्तरायण को धर्म ग्रंथों में बहुत ही शुभ माना गया है। आगे जानिए क्या है उत्तरायण का अर्थ इसका महत्व… 

क्या है उत्तरायण? (What is Uttarayan?)
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, सूर्य हर 30-31 दिन में राशि बदलता है। इस तरह ये 365 दिन में एक राशि क्रम पूरा करता है, इसे सूर्य वर्ष भी कहते हैं। जब सूर्य मकर से मिथुन राशि में रहता है तो इस समय ये पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध की ओर गति करता है (भारत उत्तरी गोलार्द्ध में है)। जब सूर्य कर्क से धनु राशि में रहता है तो इस स्थिति को दक्षिणायन कहते हैं। उत्तरायण के दौरान दिन बड़े और रातें छोटी होती हैं जबकि दक्षिणायन में दिन छोटे और रातें बड़ी होती हैं।

सूर्य को उत्तरी गोलार्ध की ओर आना क्यों खास?
हमारे पूर्वज जानते थे कि पृथ्वी उत्तरी और दक्षिणी गोलार्ध में बंटी हुई है और हम पृथ्वी के जिस क्षेत्र में रहते हैं वो उत्तरी गोलार्ध के अंतर्गत आता है। जब सूर्य उत्तरी गोलार्ध में रहता है तो दिन बड़े होने लगते हैं कि सूर्य का प्रकाश अधिक मात्रा में हमें प्राप्त होता है। इसी प्रकाश से फसलें पकती हैं और समुद्र का पानी भाप बनकर उड़ता है जो बारिश में हमें पुन: प्राप्त होता है। इन्हीं कारणों से सूर्य का उत्तरी गोलार्ध में आना बहुत शुभ माना जाता है।

उत्तरायण को कहते हैं देवताओं का दिन
धर्म ग्रंथों में उत्तरायण को बहुत ही शुभ माना गया है। उत्तरायण को देवताओं का दिन और दक्षिणायण को देवताओं की रात कहते हैं। लाइफ मैनेजमेंट के दृष्टिकोण से देखा जाए तो उत्तरायण पॉजिटिविटी का प्रतीक है। इस समय सूर्य की रोशनी अधिक समय तक पृथ्वी पर रहती है। मकर संक्रांति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है। इसलिए इस दिन सूर्यदेव की पूजा विशेष रूप से की जाती है।

भीष्म पितामाह ने भी किया था उत्तरायण का इंतजार
महाभारत के अनुसार, जिस समय कुरुक्षेत्र में पांडवों का युद्ध हुआ, उस समय सूर्य दक्षिणायण था। जब युद्ध समाप्त हो गया और युधिष्ठिर का राज्याभिषेक हो गया, तब सभी पांडवों तीरों पर लेटे भीष्म पितामाह के पास गए। भीष्म ने पांडवों को ज्ञान की कई बातें बताई और सूर्य के उत्तरायण होने के इंतजार करने लगे। सूर्य के उत्तरायण होते ही उन्होंने अपने प्राणों का त्याग कर दिया।


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