सार
Shankaracharya Jayanti 2024 Kab Hai: आदि गुरु शंकराचार्य हिंदुओं के प्रमुख धर्म गुरुओं में से एक थे। इन्हें साक्षात महादेव का अवतार भी कहा जाता है। इन्होंने हिंदू धर्म के उत्थान के लिए अनेक कार्य किए। इस बार इनकी जयंती मई 2024 में है।
Koun The Adi Guru Shankaracharya: कालांतर में जब हिंदू धर्म पर लगातार अन्य धर्मों का प्रहार हो रहा था, उस समय आदि गुरु शंकराचार्य ने पुन: हिंदू धर्म को स्थापित किया और शिखर तक भी पहुंचाया। इन्होंने अनेक मठ-मंदिरों की स्थापना की। अखाड़ों की परंपरा भी आदि गुरु शंकराचार्य ने ही शुरू की। पंचांग के अनुसार इनका जन्म 788 ईस्वी में वैशाख शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को हुआ था। इस बार ये तिथि 12 मई, रविवार को है। आगे जानिए क्यों इन्हें महादेव का अवतार कहा जाता है…
8 साल की पाया वेदों का ज्ञान
आदि गुरु शंकराचार्य का जन्म केरल के कालड़ी गांव में नम्बूदरी ब्राह्मण कुल में हुआ था। ये बाल्यकाल से ही बहुत विद्वान थे। इन्होंने मात्र 8 साल की उम्र में ही सारे वेद का ज्ञान प्राप्त कर लिया। जब इन्होंने देखा कि हिंदू धर्म पर अन्य धर्म हावी होने की कोशिश कर रहे हैं तो वे भारत यात्रा पर निकले और देश के अलग-अलग हिस्सों में मठ-मंदिरों की स्थापना की। ये भी कहा जाता है इन्होंने 3 बार पूरे भारत की यात्रा की थी।
इन्हें क्यों माना जाता है महादेव का अवतार?
आदि शंकराचार्य के विषय में कहा गया है-
अष्टवर्षेचतुर्वेदी, द्वादशेसर्वशास्त्रवित्
षोडशेकृतवान्भाष्यम्द्वात्रिंशेमुनिरभ्यगात्
अर्थात्- आदि शंकराचार्य 8 वर्ष की आयु में चारों वेदों में निपुण हो गए, 12 वर्ष की आयु में सभी शास्त्रों में पारंगत, 16 वर्ष की आयु में इन्होंने शांकरभाष्य की रचना की और 32 वर्ष की आयु में उन्होंने शरीर त्याग दिया। आदि गुरु शंकराचार्य ने अपने जीवन में कईं चमत्कार भी किए जो कि सामान्य मानव के लिए सम्भव नहीं है। इसलिए इन्हें भगवान शिव का अवतार कहा जाता है।
4 मठों की स्थापना भी की
माना जाता है कि भगवान शिव की कृपा से ही आदि गुरु शंकराचार्य का जन्म हुआ था। आदि गुरु शंकराचार्य ने 4 वेदों और उनसे निकले अन्य शास्त्रों को सुरक्षित रखने के लिए 4 मठ यानी पीठों की स्थापना की। ये मठ आदि भी हिंदुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र हैं। इन मठों के प्रमुख आज भी शंकराचार्य ही कहलाते हैं।
यहां बनी है समाधि
केदारनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार भी आदि गुरु शंकाराचार्य ने ही किया था। कहते हैं कि यही वो स्थान हैं जहां शंकराचार्यजी की महादेव से बात हुई और देह त्यागने की अनुमति लेकर केदारनाथ मंदिर से बाहर आए और एक जगह शिष्यों को रोका और कहा पीछे मुड़कर न देखना और इसके बाद वे अंतर्धान हो गए। आज भी केदारनाथ के समीप आदि गुरु शंकराचार्य की समाधि स्थल है।
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