क्यों मनाया जाता है ओणम का त्योहार ? क्या है इससे जुड़ी मान्यता और परंपरा?

ओणम मुख्य रूप से केरल में मनाया जाता है।  इस बार यह त्योहार 11 सितंबर, बुधवार को मनाया जाएगा। ओणम का त्योहार फसलों की कटाई होने की खुशी में मनाया जाता है।

उज्जैन. विविधता में एकता ही भारत की संस्कृति है। यहां हर दिन किसी धर्म, जाति या समाज विशेष का त्योहार मनाया जाता है। ये सभी त्योहार अनेकता में एकता का संदेश देते हैं। ओणम भी कुछ ऐसा ही एक त्योहार है। यह मुख्य रूप से केरल में मनाया जाता है।  इस बार यह त्योहार 11 सितंबर, बुधवार को मनाया जाएगा।


ओणम का त्योहार फसलों की कटाई होने की खुशी में मनाया जाता है। इसके अलावा मान्यता यह भी है कि इस दिन राजा महाबली अपनी प्रजा का हाल जानने के लिए पाताल लोक से धरती पर आते हैं। ओणम के दिन महिलाएं आकर्षक ओणमपुक्कलम (फूलों की रंगोली) बनाती हैं और केरल की प्रसिद्ध आडाप्रधावन (खीर) सभी में बांटी जाती है। ओणम के उपलक्ष्य में विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम तथा खेल-कूद प्रतियोगिताओं का आयोजन भी किया जाता है।

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इन प्रतियोगिताओं में लोकनृत्य, शेर नृत्य, कुचीपुड़ी, ओडि़सी, कथक नृत्य आदि प्रतियोगिताएं प्रमुख हैं। इस दिन सहभोज का आयोजन भी किया जाता है, जिसमें विशेष पकवान बनाए जाते हैं। केरल ही नहीं दुनिया भर में जहां भी मलयाली परिवार रहते हैं, वे ओणम का त्योहार मनाकर अपनी खुशी का इजहार करते हैं।


क्या है ओणम से जुड़ी मान्यता ?
पुरातन समय में पृथ्वी के दक्षिण क्षेत्र में भगवान विष्णु के परम भक्त प्रह्लाद के पौत्र बलि का राज था। वह राक्षसों का राजा होने के कारण देवताओं से बैर रखता था। स्वर्ग पर अधिकार करने के उद्देश्य से एक बार बलि यज्ञ कर रहा था, तब देवताओं की सहायता करने के लिए भगवान वामन बलि की यज्ञशाला में गए और राजा बलि से तीन पग धरती दान में मांगी।


राजा बलि के गुरु शुक्राचार्य भगवान की लीला समझ गए और उन्होंने बलि को दान देने से मना कर दिया, लेकिन बलि ने फिर भी भगवान वामन को तीन पग धरती दान देने का संकल्प ले लिया। भगवान वामन ने विशाल रूप धारण कर एक पग में धरती और दूसरे पग में स्वर्ग लोक नाप लिया। जब तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान नहीं बचा तो बलि ने भगवान वामन को अपने सिर पर पैर रखने को कहा।


बलि के सिर पर भगवान का पैर पड़ते ही वह सुतल लोक पहुंच गया। बलि की दानवीरता देखकर भगवान ने उसे सुतल लोक का स्वामी बना दिया। साथ ही भगवान ने उसे यह भी वरदान दिया कि वह अपनी प्रजा को वर्ष में एक बार अवश्य मिल सकेगा। मान्यता है कि इसी दिन राजा बलि अपनी प्रजा का हाल-चाल जानने पृथ्वी पर आते हैं। राजा बलि के पृथ्वी पर आने की खुशी में ही ओणम का त्योहार मनाया जाता है।

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