महिला के जुनून और जज्बे को सलाम, इंस्पायरिंग है जाह्नवी कपूर की 'गुंजन सक्सेनाः द कारगिल गर्ल'

बॉलीवुड नें पिछले कुछ समय से बायोपिक का चलन है। एक के बाद एक बायोपिक पर मेकर्स फोकस कर रहे हैं। ऐसे में अब जाह्नवी कपूर की बहुचर्चित फिल्म 'गुंजन सक्सेनाः द कारगिल गर्ल' ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज की जा चुकी है। इसमें गुंजन के पायलट बनने और फिर कारगिल में युद्ध भूमि पर कैसे उन्होंने अपनी बहादुरी से साथियों की मदद की थी।

Asianet News Hindi | Published : Aug 12, 2020 11:00 AM IST / Updated: Aug 12 2020, 04:50 PM IST

मुंबई. बॉलीवुड नें पिछले कुछ समय से बायोपिक का चलन है। एक के बाद एक बायोपिक पर मेकर्स फोकस कर रहे हैं। ऐसे में अब जाह्नवी कपूर की बहुचर्चित फिल्म 'गुंजन सक्सेनाः द कारगिल गर्ल' ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज की जा चुकी है। इसमें गुंजन के पायलट बनने और फिर कारगिल में युद्ध भूमि पर कैसे उन्होंने अपनी बहादुरी से साथियों की मदद की थी और दुश्मनों को हराने में सहारा बनी थीं। यह फिल्म बहुत ही इंस्पायरिंग है और देशभक्ति-बहादुरी के जज्बे से भरपूर है। जाह्नवी ने इसमें अच्छा काम किया है और पकंज त्रिपाठी ने गुंजन के पिता के रोल भी पूरी शिद्दत से निभाया है।   

जाह्नवी कपूर की एक्टिंग 

फिल्म में जाह्नवी कपूर एक्टिंग लोगों को खूब पसंद आ रही है। इसमें उन्होंने अपनी आंखों से एक्टिंग की है। श्रीदेवी अगर आज जिंदा होतीं तो अपनी बेटी पर फक्र करतीं। जाह्नवी गुंजन की परेशानी , हिचकिचाहट लेकिन दृढ व्यक्तित्व को पेश करने में कामयाब रही हैं। एक्ट्रेस के डायलॉग बहुत कम है और बहुत कम बोलकर ही वो फिल्म की कहानी कहती हैं।

पर्दे पर बाप-बेटी का अनोखा रिश्ता

गंजन सक्सेना की ये बायोपिक एक बाप और बेटी के खास रिश्ते को परदे पर दिखाने में कामयाब रही है। पंकज त्रिपाठी ने अपने सहज अभिनय से गुंजन के पिता और एक आर्मी अफसर के रोल को यादगार बनाया है। जैसे एक सीन है जहां गुंजन को एयरफोर्स का एग्जाम पास करने के लिए वजन घटाना होता है और पंकज यानी गुंजन के पिता एक्ट्रेस रेखा को उसकी प्रेरणा बनाते हैं। जब गुंजन हताश होकर घर आती हैं तो लेक्चर देने की बजाय वो उसे रसोई में ले जाकर जिन्दगी के आटे दाल का भाव बताते हैं।

सेना में महिलाओं को लेकर सोच पर चोट करती फिल्म

गुंजन की मां का रोल उभर कर नहीं आया। वहीं पर गुंजन के भाई यानी अंगद बेदी के किरदार की गुंजन को न समझने की विचारधारा समाज की सोच को बताती है। उस सोच को दिखलाती है कि क्यों महिलाएं रक्षा सेना में कामयाब नहीं हो पाती थीं? घर की लड़ाई लड़कर जब गुंजन एयरफोर्स अकादमी उधमपुर जाती है तो वहां उसे महिला होने की लड़ाई लड़नी पड़ती है, लेकिन उसका सपना उसे हर मुश्किल से लड़ने की ताकत देता है।

कहानी सपने को पूरा करने में आने वाली अड़चनों की है

वहीं, अगर फिल्म की कहानी की बात की जाए तो ये लखनऊ के एक आर्मी परिवार की बेटी की है, जो बचपन से एक पायलट बनना चाहती है। उसके इस सपने में केवल उसके पिता ही उसका साथ देते हैं। जब वो पायलट नहीं बन पाती है तो एयरफोर्स में अप्लाई करती है। सिलेक्शन के वक्त काफी रुकावटें आती हैं। इसके साथ ही महिला होने का खामियाजा भी भुगतना पड़ता है। हालांकि, गुंजन अपने सपने को पूरा करने के लिए हर अड़चनों और रुकावटें को पार कर जाती हैं। जब गुंजन कारगिल युद्ध में पहुंचती हैं और फंसे हुए सैनिकों को सूझ-बूझ के साथ बेस कैंप पर वापस लाती हैं तो सबका देखने के नजरिया बदल जाता है। 

डायरेक्शन 

शरण शर्मा के निर्देशन में बनी फिल्म 'गुंजन सक्सेनाः द कारगिल गर्ल' के हर पहलू को शानदार तरीके से दिखाया गया है। सभी किरदारों को बराबर स्पेस मिला है। गुंजन की जिंदगी के उतार-चढ़ाव दर्शकों को फिल्म से बांधे रखते हैं। फिल्म को खींचने की कोशिश भी नहीं की गई है। इसकी कहानी काफी इंस्पायरिंग है। 

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