मद्रास हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार से मांगे एयर इंडिया की बिक्री के कागज, जानि‍ए पूरा मामला

मद्रास हाईकोर्ट (Madras High Court) ने केंद्र सरकार (Central Govt) को अदालत के सामने विवादास्पद शेयर खरीद समझौते (Share Purchase Agreement) को पेश करने का निर्देश दिया है। न्यायमूर्ति वी. पार्थिबन ने याचिकाकर्ता के इस तर्क पर ध्यान दिया कि शेयर खरीद समझौता उस मामले को तय करने में महत्वपूर्ण है जिसमें सभी संबंधित पक्षों के बड़े स्‍टेक शामिल हैं।

बिजनेस डेस्‍क। एयर इंडिया विनिवेश (Air India Disinvestment) के खिलाफ ट्रेड यूनियनों की ओर से दाखि‍ल की गई याचिका पर संज्ञान लेते हुए मद्रास हाईकोर्ट (Madras High Court) ने केंद्र सरकार (Central Govt) को अदालत के सामने विवादास्पद शेयर खरीद समझौते (Share Purchase Agreement) को पेश करने का निर्देश दिया है। न्यायमूर्ति वी. पार्थिबन ने याचिकाकर्ता के इस तर्क पर ध्यान दिया कि शेयर खरीद समझौता उस मामले को तय करने में महत्वपूर्ण है जिसमें सभी संबंधित पक्षों के बड़े स्‍टेक शामिल हैं।
कोर्ट ने आदेश देते हुए कहा कि अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल को निर्देश दिया जाता है कि वे शेयर खरीद समझौते की एक कॉपी सुनवाई की अगली तारीख को या उससे पहले अदालत को प्रस्तुत करें। वहीं आवास और चिकित्सा सुविधाओं को बनाए रखने के अंतरिम आदेश का लाभ भी सुनवाई की अगली तारीख तक बढ़ा दिया गया है।

मामले को जल्‍द नि‍पटाना जरूरी
आदेश में, अदालत ने कहा कि मामले को प्राथमिकता के आधार पर निपटाया जाना चाहिए क्योंकि यह भारत सरकार को होने वाले दिन-प्रतिदिन के नुकसान से संबंधित है। पक्षकारों को यह सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया गया था कि प्‍लीडिंग्‍स को पूरा किया जाए। जब मामला कोर्ट में आया तो कर्मचारी संघ की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आर. वैगई ने कोर्ट के सामने कहा कि भारत सरकार ने शेयर खरीद समझौता प्रदान नहीं किया है जिससे पूरा मामला शुरू होता है।

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यूनियन को अंधेरे में रखकर हुआ समझौता
वरिष्ठ अधिवक्ता आर. वैगई ने कहा कि हमारी प्राथमिक शिकायत यह थी कि विनिवेश प्रक्रिया बिना किसी परामर्श प्रक्रिया के की गई थी। हमने तर्क दिया कि कर्मचारी संघ के सदस्यों को अंधेरे में रखकर शेयर खरीद समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे। दूसरी ओर, एडिशनल सॉलिसिटर जनरल आर शंकरनारायणन ने कहा कि मामले का लंबित रहना जनहित में नहीं है। उन्होंने कहा कि भारत सरकार को नुकसान होता है क्योंकि एयर इंडिया को हर दिन 20 करोड़ रुपए की राशि दी जाती है। अगर सरकार ने एयरलाइंस को उक्त राशि का भुगतान नहीं किया होता, तो मामला एनसीएलटी तक पहुंच जाएगा।

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कंपनी की सहमत‍ि भी जरूरी
उन्होंने विनिवेश प्रक्रिया के खिलाफ भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय के हालिया फैसले का हवाला दिया। उन्होंने आगे कहा कि शेयर खरीद समझौते को रिकॉर्ड में रखने से पहले टैलेस प्राइवेट लिमिटेड (उच्चतम बोली लगाने वाले) की सहमति की आवश्यकता होगी। एडवोकेट एनजीआर प्रसाद एयर इंडिया और एडवोकेट अनुराधा दत्त टाटा ग्रुप की ओर से कोर्ट में पेश हुए।

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