
Crude Oil Price Impact: अमेरिका और भारत के बीच रूसी कच्चे तेल (Russian Crude Oil) को लेकर तनाव बढ़ गया है। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, अगर भारत रूसी तेल खरीदना बंद कर देता है तो मौजूदा वित्त वर्ष (FY26) में कच्चे तेल का आयात बिल 9 अरब डॉलर और अगले वित्त वर्ष (FY27) में 12 अरब डॉलर तक बढ़ सकता है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसी स्थिति में भारत अपने पुराने सप्लायर्स इराक (Iraq), सऊदी अरब (Saudi Arabia) और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) की ओर लौट सकता है। हालांकि, इससे कीमतों पर दबाव बढ़ेगा क्योंकि रूस वैश्विक तेल आपूर्ति का 10% हिस्सा रखता है और उसके निर्यात में कमी आने पर अंतरराष्ट्रीय दाम 10% तक बढ़ सकते हैं।
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SBI रिपोर्ट के अनुसार, 2022 के बाद भारत ने रूस से डिस्काउंट पर तेल खरीदना तेज़ किया जो 60 डॉलर प्रति बैरल की कैप के तहत था। FY20 में जहां रूस का हिस्सा कुल तेल आयात में सिर्फ 1.7% था, FY25 में यह बढ़कर 35.1% हो गया है और अब रूस भारत का सबसे बड़ा तेल सप्लायर है। FY25 में भारत ने रूस से 88 मिलियन मीट्रिक टन (MMT) तेल आयात किया जबकि कुल आयात 245 MMT रहा।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत से आने वाले सामान पर पहले 25% और अब 50% तक का आयात शुल्क लगाने का ऐलान किया है। उनका आरोप है कि भारत लगातार रूसी तेल खरीद रहा है जिससे वह अच्छा ट्रेडिंग पार्टनर नहीं है। Kpler Ltd के अनुसार, यूरोपीय यूनियन (EU) प्रतिबंधों और अमेरिकी पेनाल्टी के डर से रूस भारतीय खरीदारों को ब्रेंट की तुलना में 5 डॉलर प्रति बैरल सस्ता तेल ऑफर कर रहा है।
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SBI रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि अमेरिकी टैरिफ से कृषि (Agriculture) सेक्टर को झटका लग सकता है और भारत को अपने किसानों, मछुआरों और डेयरी सेक्टर की रक्षा करनी होगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा है कि किसानों के हित पर कभी समझौता नहीं होगा चाहे इसके लिए व्यक्तिगत कीमत क्यों न चुकानी पड़े।
फार्मा इंडस्ट्री (Pharma Industry) पर भी असर का अनुमान है। फिलहाल दवाओं के निर्यात पर टैरिफ नहीं है लेकिन अगर 50% शुल्क लगाया गया तो भारतीय कंपनियों की कमाई 5-10% तक घट सकती है। चूंकि, अमेरिका में 90% प्रिस्क्रिप्शन जेनेरिक दवाओं के होते हैं और उनमें भारत की हिस्सेदारी 35% है, टैरिफ का सीधा असर अमेरिकी मरीजों की दवा लागत पर भी पड़ेगा।