बजट 2023 'मोदी सरकार 2.0' का आखिरी पूर्ण बजट होगा। भारत को अगर अगले एक दशक तक दो अंकों की जीडीपी ग्रोथ चाहिए तो बजट में कुछ खास कदम उठाने होंगे। पढ़ें बार्कलेज में इंडिपेंडेंट वैलिडेशन यूनिट (मॉडल रिस्क) के वाइस प्रेसिडेंट शिशु रंजन का लेख।
नई दिल्ली। अप्रैल-मई 2024 में भारत में आम चुनाव होने हैं। इस साल संसद में पेश किया जाने वाला बजट 'मोदी सरकार 2.0' का आखिरी पूर्ण बजट होगा। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के लिए एक संतुलित बजट पेश करने का यह अंतिम अवसर है। उम्मीद की जा रही है कि वह ऐसा बजट पेश करेंगी जो आम नागरिकों की आकांक्षाओं को पूरा करेगा। लोगों की आमदनी बढ़ाएगा और आर्थिक सुधार के एजेंडे को आगे बढ़ाएगा। बजट भारत की उच्च विकास क्षमता को अनलॉक करेगा। बार्कलेज में इंडिपेंडेंट वैलिडेशन यूनिट (मॉडल रिस्क) के वाइस प्रेसिडेंट शिशु रंजन ने बताया है कि भारत को अगर अगले एक दशक तक दो अंकों की जीडीपी ग्रोथ चाहिए तो बजट में किस तरह के कदम उठाने होंगे। पढ़ें शिशु रंजन का लेख...
दिसंबर 2022 निश्चित तौर पर बजट बनाने वाले के लिए कुछ अच्छी खबरें लेकर आया है। खुदरा मुद्रास्फीति की दर घटकर 5.88 प्रतिशत हो गई है। यह पिछले बजट के बाद से सबसे कम है। यह भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित 2-6 प्रतिशत की मुद्रास्फीति सीमा के भीतर है। थोक मुद्रास्फीति पिछले 22 महीनों में अपने न्यूनतम स्तर (4.9 प्रतिशत) पर आ गई। मुद्रास्फीति में कमी और आपूर्ति में वृद्धि के कारण खाद्य पदार्थों की कीमतों में कमी आई है। ब्याज दर में वृद्धि से मांग में कमी हुई है, इससे भी महंगाई पर लगाम लगा है। 7% GDP ग्रोथ के साथ भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बन गया है। 2023 में इस स्थिति को बनाए रखने की उम्मीद है।
त्योहारी सीजन में हुआ 1.5 लाख करोड़ GST कलेक्शन
खपत 2019 के स्तर को पार कर गई है। त्योहारी सीजन में GST कलेक्शन 1.5 लाख करोड़ के ऐतिहासिक उच्च स्तर पर पहुंच गया। सरकार ने पूंजीगत व्यय के लिए बजटीय आवंटन (2022-23) में 35.4 प्रतिशत बढ़ाया था। इससे बुनियादी ढांचे में सुधार करने में मदद मिली। इसके परिणामस्वरूप सकल स्थिर पूंजी निर्माण (जीएसीएफ) में 10 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है।
2022 में निजी निवेश में भी तेजी आई और 14 क्षेत्रों को कवर करने वाली प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) योजना ने मल्टी नेशनल कंपनियों को भारत में फैक्ट्रियां लगाने के लिए आकर्षित किया। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार नवंबर 2022 में 525 अरब डॉलर के दो साल के निचले स्तर से जनवरी 2023 में 562 अरब डॉलर हो गया।
इन सभी पॉजिटिव बातों के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था में कई बाधाएं हैं। नीतिगत हस्तक्षेपों के माध्यम से इन्हें दूर करने की जरूरत है। मुद्रास्फीति की दर अभी भी 4 प्रतिशत के लक्ष्य से ऊपर है। चीनी में लगाए गए कोरोना प्रतिबंधों और रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते ग्लोवल सप्लाइ चेन बाधित हुई है। इसके चलते मुद्रास्फीति बढ़ी है।
मुद्रास्फीति से सबसे अधिक प्रभावित होते हैं गरीब
मुद्रास्फीति बढ़ने से गरीब सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। उनकी आमदनी कम हो जाती है। गरीबी बढ़ जाती है। ग्रामीण इलाकों में मांग में आई कमी से इसका साफ पता चलता है। इसके चलते सरकार गरीबों की मदद कर रही है। केंद्र सरकार 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन दे रही है। कल्याणकारी योजनाओं के जारी रहने से राजकोषीय घाटे के अधिक बने रहने की उम्मीद है। इससे निजी निवेश प्रभावित होता है और विकास कार्यों के पटरी से उतरने का खतरा रहता है। भारत को बाहरी मोर्चे पर भी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। दिसंबर 2022 में व्यापार घाटा 23.76 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया। निर्यात में 12.2 प्रतिशत की कमी आई है। अमेरिका के फेडरल रिजर्व बैंक ने ब्याज दर में वृद्धि की है, जिसके चलते विदेशी निवेशकों ने भारतीय बाजार से पैसे निकाले हैं।
व्यापार घाटा, बाजार से विदेशी निवेशकों द्वारा पैसे निकालने और मुद्रास्फीति के दबाव से भारतीय रुपए की कीमत 12 प्रतिशत से अधिक कम हुई है। इसके चलते आयात किए जाने वाले सामानों की कीमत बढ़ गई है। इससे भारत का व्यापार घाटा बढ़ा है और महंगाई बढ़ गई है। अप्रत्याशित जलवायु के कारण कृषि क्षेत्र का विकास कमजोर है। अत्यधिक ठंड और गर्मी की के चलते फसलों को नुकसान पहुंचा है।
इसलिए मुद्रास्फीति की दर में कमी, 4 प्रतिशत से अधिक की कृषि विकास दर, उच्च पूंजी और निवेश व्यय आदि जैसी कई सकारात्मकताएं चीजें आने वाले साल में विपरीत हो सकती हैं। ऐसा नहीं हो इसके लिए इनके चारों ओर एक फायरवॉल बनाना होगा। आगामी बजट में इसके लिए इंतजाम करना होगा।
ग्रामीण मांग को बढ़ाना होगा
बजट में राजकोषीय बोझ बढ़ाए बिना ग्रामीण मांग को मजबूत करने के लिए धन आवंटित करना चाहिए। यदि निजी और सार्वजनिक निवेश को ग्रामीण अर्थव्यवस्था की ओर टारगेट किया जाता है तो यह संतुलन आसानी से प्राप्त किया जा सकता है। जैसे कि टीयर 3 शहरों या पंचायती क्षेत्र में चले वाले एमएसएमई क्षेत्र को मजबूत करना। आईटी क्षेत्र को ग्रामीण भारत में ऑफिस खोलने के लिए प्रोत्साहित करना, कृषि-उद्योग स्थापित करना, मेट्रो शहरों के साथ-साथ विदेशों में ग्रामीण पर्यटन स्थल का प्रचार करना होगा और चिकित्सा पर्यटन को आकर्षित करने के लिए ग्रामीण भारत में स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार करना होगा।
चीन के बदले भारत दुनिया की फैक्ट्री बने इसके लिए भूमि विवादों से उत्पन्न प्रतिकूल परिस्थितियों को संभालने का इंतजाम करना होगा। श्रम सुधारों को शुरू करने और सभी राज्यों में अपने कानून व्यवस्था में सुधार करने की आवश्यकता है। एमएसएमई फर्मों को बहुराष्ट्रीय कंपनियों में परिवर्तित करने के लिए प्रोत्साहनों को डिजाइन करने की जरूरत है। व्यापार घाटे को कम करने के लिए ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत में तेजी लाने की आवश्यकता है। भारत के कुल आयात का 20 प्रतिशत से अधिक पेट्रोलियम तेल है।
बिहार, बंगाल और ओडिशा में करना होगा औद्योगीकरण
निर्यात की वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए सरकार को बिहार, बंगाल और ओडिशा में औद्योगीकरण करना चाहिए। अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीनी सामानों के साथ कॉम्पटिशन करने के लिए पूर्वी तट पर स्थित बंदरगाहों का इस्तेमाल बढ़ाना होगा। इन राज्यों में औद्योगीकरण होने से परिवहन लागत कम आएगी। पूर्वी तट के बंदरगाह पूर्वी एशिया के प्रवेश द्वार के रूप में काम कर सकते हैं। सरकार को 50% आबादी की आय बढ़ाने का तरीका तैयार करना चाहिए। इनकी आमदनी भारत में कुल आय का 15 प्रतिशत से कम है। आमदनी बढ़ने से मांग बढ़ेगी इससे औद्योगिक उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा।
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संक्षेप में कहें तो आगामी बजट को संतुलित करने की आवश्यकता है। भारतीय अर्थव्यवस्था की रिकवरी 2023 में अनुमानित वैश्विक आर्थिक मंदी और आगामी चुनावों में वोटों को सुरक्षित करने और मौजूदा सरकारों को बचाने के लिए लोकलुभावन उपायों की उम्मीद के अस्थिर आधार पर है। भारत विकास पथ के अहम मोड़ पर है। अच्छी आर्थिक नीतियां भारत को अगले 10 वर्षों के लिए दो अंकों की जीडीपी विकास दर पर ले जाने के लिए बनाई जानी चाहिए। यह बजट उस दिशा में पहला कदम हो सकता है।
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