
चंडीगढ़। पंजाब में चुनाव इस बार कई मामलों में अलग माना जा रहा है। कहा तो ये भी जा रहा है कि ये चुनाव पंजाब की राजनीति में मील का पत्थर साबित होगा। कई मिथक टूटेंगे तो कई गढे़ जाएंगे। जो अभी तक पंजाब की राजनीति के सिरमोर माने जाते रहे हैं, वह अपने वजूद की लड़ाई लड़ते नजर आ रहे हैं। क्योंकि पहली बार मुकाबला चार कोणीय हो रहा है। इससे पहले आमने-सामने की टक्कर या बहुत हद तक हुआ तो त्रिकोणीय मुकाबला हो जाता था। इस बार चार तो कुछ सीट पर पांच कोणीय मुकाबला है।
इसलिए इस बार जीत का मार्जिन कम रहने की संभावना है। क्योंकि वोट ज्यादा जगह बंट रहे हैं, इसलिए जीतने वाली पार्टी का वोट प्रतिशत भी घट सकता है। इस चुनाव में पहली बार कैप्टन अमरिंदर सिंह की महाराजा वाली छवि दांव पर लगी हुई है। कांग्रेस से अलग होकर उन्होंने अपनी पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस का गठन किया। गठबंधन में उन्हें 37 सीटें मिली हैं।
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इस बार खुद कैप्टन की जीत का मार्जिन कम हो सकता है
पहली बार चुनाव प्रचार खत्म होने के बाद कैप्टन जीत के लिए टोटकों पर भी यकीन करते नजर आए। उन्होंने कटड़ा (भैंस का बच्चा) दान किया तो उनकी बेटी जयइंदर ने काली माता मंदिर में पूजा कराई। कैप्टन का सियासी किला तो जर्जर हो ही गया है, उन्हें अपना मोर्चा यानी कि अपनी सीट बचाने में भी दिक्कत हो रही है। वह जीत तो सकते हैं, लेकिन जीत का मार्जिन कम होना लगभग तय है। उन्हें पटियाला में आम आदमी पार्टी से कड़ी टक्कर मिलती नजर आ रही है।
सिद्धू के लिए इतिहास दोहरा पाना चुनौती
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू और अकाली दल के बिक्रम सिंह मजीठिया की वजह से पहली बार अमृतसर ईस्ट पर जोरदार मुकाबला हो गया है। दोनों में से एक नेता पहली बार अपनी सियासी हार का मजा चखने जा रहा है। इस सीट पर सिद्धू के सितारे थोड़े गर्दिश में नजर आ रहे हैं। सिद्धू इस सीट से लोकसभा चुनाव भी जीते। उनकी पत्नी भी इस सीट से विधायक बनीं। अब सिद्धू के लिए इतिहास दोहरा पाना ही बड़ी चुनौती है। मजीठिया ने यहां से उतरकर लड़ाई को दिलचस्प बना दिया है।
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बादल परिवार सुरक्षित नजर आ रहा है
पूर्व सीएम प्रकाश सिंह बादल लंबी सीट से तो सुखबीर बादल जलालाबाद से अपेक्षाकृत सुरक्षित नजर आ रहे हैं। दोनों की अपनी सीटों पर मतदाताओं में खासी पकड़ है। इसका सीधे तौर पर फायदा मिल रहा है। अकाली दल ने इस बार बसपा के साथ गठबंधन किया है।
मान पहली बार चख सकते हैं विधानसभा चुनाव में जीत का स्वाद
धुरी से आप के सीएम फेस भगवंत मान भी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। यदि वह इस सीट से जीतते हैं तो पंजाब विधानसभा का वह पहला चुनाव जीतने में सफल होंगे। इससे पहले वह सुखबीर सिंह बादल के खिलाफ विधानसभा चुनाव लड़े थे और हार का सामना करना पड़ा था। मान संगरूर से दूसरी बार के सांसद हैं।
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चन्नी चमकौर में सुरक्षित, भदौड़ में टक्कर दे रहे
सीएम चरणजीत सिंह चन्नी रूपनगर जिले की चमकौर साहिब सीट पर लोगों के बीच अच्छी पकड़ बनाने में कामयाब रहे हैं। इसका लाभ उन्हें मिल सकता है। भदौड़ में वह कड़ी टक्कर दे रहे हैं। यहां चन्नी प्रचार में वक्त भी कम दे पाए हैं। चन्नी के लिए ये चौथा चुनाव है। वे इस सीट से तीन बार विधायक चुने गए हैं।
पूरे चुनाव में विवादित बयान रहे सुर्खियां
इस बार के चुनाव प्रचार में नेता अपने विवादित बयानों से भी खूब चर्चा में रहे। सबसे ज्यादा विवादित बयान कांग्रेस नेताओं की ओर से दिए गए। सीएम चरणजीत सिंह चन्नी के यूपी और बिहार के लोगों को भइया बोलने का विवाद देशभर में सुर्खियों में रहा। बयान पर उन्होंने माफी मांग ली, लेकिन बिहार में उनके खिलाफ केस दर्ज कराया गया है।
मुस्तफा के बयान ने माहौल गरमाया, कुमार विश्वास ने तहलका मचाया
इसी तरह से चुनाव प्रचार के शुरुआती दौर में पूर्व डीजीपी मोहम्मद मुस्तफा ने अपनी पत्नी और चन्नी सरकार की मंत्री रजिया सुल्ताना की रैली को संबोधित करते हुए हिंदुओं पर विवादित टिप्पणी की थी। आम आदमी पार्टी पर भी आरोप लगते रहे। सबसे ज्यादा आरोप अलगाववादियों के साथ संबंधों को लेकर लगे। कुमार विश्वास के वीडियो ने खूब तहलका मचाया।
आप के सामने समर्थकों का वोट डलवाने की चुनौती
कुल मिलाकर इस बार पंजाब का चुनाव एक अलग ही नैरेटिव सेट करता नजर आ रहा है। यह देखने वाली बात होगी कि कौन सा दल कुर्सी तक पहुंच पाता है। लेकिन एक बात तो साफ है कि आम आदमी पार्टी ने मतदाताओं पर जबरदस्त पकड़ बनाई है। आप का समर्थन ठोक बजा कर बोलता है। अब देखना यह होगा कि इस वोकल समर्थक को वोट में आप कैसे और कितना बदल पाती है? अकाली दल ने अपना कैडर संभाल कर रखा।
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भाजपा का वोट प्रतिशत बढ़ना लगभग तय
भाजपा ने पहली बार पंजाब में अपनी पकड़ काफी मजबूत की है। पहली बार पंजाब के मतदाता को विकल्प मिला है। इसका लाभ भाजपा को मिलता नजर आ रहा है। सीट भले ही कम रहे, लेकिन वोट प्रतिशत बढ़ना लगभग तय है। किसानों के लिए भी खुद को आंकने का यह चुनाव मौका है। संयुक्त समाज मोर्चा बना कर पहली बार वोट पॉलिटिक्स में आए किसान संगठन कई सीटों पर काफी अच्छा प्रदर्शन करने जा रहे हैं। कई सीटों पर वह वोट कटुवा की भूमिका में रहेंगे। बहरहाल, अब देखना दिलचस्प होगा कि मतदाता के मन में क्या है? राजनेताओं और पार्टियों ने मतदाता को अपने पक्ष में करने की पूरी कोशिश की है। इसमें वह कितना कामयाब रहे हैं। इसका फैसला मतदाता कल करेंगे।
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