पंजाब चुनाव: मोगा में मालविका को कांग्रेस से ज्यादा सोनू सूद का सहारा, वोटर्स में AAP का क्रेज, जानें समीकरण?

मोगा शहर में लोग सूद परिवार के काम की तारीफ तो करते हैं, मगर तारीफ करने वाले वोट भी दे देंगे? ये गारंटी नहीं है। इसी वजह से सोनू सूद खुद सारे कामकाज छोड़कर अपनी बहन मालविका सूद की मदद के लिए मोगा में डट गए हैं। 

मनोज ठाकुर, मोगा। पंजाब विधानसभा चुनाव में मोगा सबसे ज्यादा चर्चित और हॉट सीट मानी जा रही है। यहां से कांग्रेस ने एक्टर सोनू सूद की बहन मालविका सूद को टिकट दिया है। मालविका इस इलाके में काफी समय से एक्टिव हैं और सोशल वर्क कर रही हैं। मालविका को टिकट दिलाने से लेकर चुनाव प्रचार तक की जिम्मेदारी खुद भाई सोनू सूद संभाले हैं। यहां कहा जा रहा है कि मालविका को मोगा सीट पर कांग्रेस से ज्यादा अपने भाई सोनू की इमेज का ही सहारा है। सोनू सूद कोरोनाकाल में तब ज्यादा चर्चा में आए, जब उन्होंने मरीजों का इलाज करवाया और अप्रवासी लोगों को उनके घरों तक पहुंचाया।

अब बात मोगा की। यहां शहर की तंग सड़कों से गुजरते हुए अपेक्षाकृत खुली-सी गली में सोनू सूद की कोठी है। शाम के 6 बजने को हैं, लेकिन घर में महिलाओं और बच्चों की भीड़ है। घर के अंदर सोनू सूद और समाजसेवा से सियासत में हाथ आजमा रहीं उनकी बहन मालविका सूद कुछ रणनीतिकारों के साथ मीटिंग कर रही हैं। बाहर उनके लॉन में समर्थक सेल्फी ले रहे हैं। कुछ बच्चे उनके झूले पर झूल रहे हैं। करीब एक घंटे की मीटिंग के बाद सोनू सूद बाहर निकलते हैं। उन्हें समर्थक घेर लेते हैं। वह एक दूसरी मीटिंग में घर से बाहर जाना चाहते हैं।

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समर्थकों से घिरे सोनू सूद, सेल्फी लेने वालों को नहीं कर रहे निराश
चुनाव का मौका है, इसलिए समर्थकों को नाराज भी नहीं कर सकते। इसलिए सभी के साथ सेल्फी लेते हैं। भीड़ में यदि किसी का मोबाइल हिल गया तो वह दोबारा सेल्फी की कोशिश करता है। इस तरह से करीब 15 मिनट सोनू सूद भीड़ में घिरे रहते हैं। वह मौके से निकलना चाहते हैं। निकल नहीं पा रहे। खैर भारी मशक्कत के बाद वह अपनी गाड़ी से निकल ही जाते हैं। कुछ देर बार उनकी बहन मालविका सूद निकलती हैं। बाहर एक महिला और एक बच्ची उनसे बातचीत करने लगती है। मालविका उन्हें कोठी के एक कोने में ले जाती हैं। देर तक बातचीत करती रहती हैं।

मालविका भी खांटी नेताओं की इमेज बना रहीं 
इधर, प्रचार करने वाली टीम का इंचार्ज परेशान हो जाता है। देर हो रही है... यह कहते हुए वह मालविका को गाड़ी में बैठने का आग्रह करता है। मालविका अभी भी उस महिला की बात सुनती रहती हैं। शांत भाव से। कोई जल्दबाजी नहीं। इसी बीच, एक युवक महिला को बोलता है कि वह उनके साथ आ जाएं। खैर, मालविका अब यहां से निकलते को तैयार होती हैं। चेहरे पर शांत भाव लिए, सभी को हाथ जोड़ कर अभिवादन करती हैं... खांटी नेताओं की छवि को तोड़ते हुए समर्थकों के बीच से गुजरते हुए गाड़ी में बैठ कर निकल जाती हैं।

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मालविका के घर पर वोटर्स को चाय-पकौड़े
मालविका सूद पहली बार चुनाव लड़ रही हैं मगर उनके घर में हर आने-जाने वाले का पूरा ध्यान रखा जा रहा है। लॉन के एक कोने में टेबल पर बाकायदा चाय और पकौड़े रखे हैं। बैठने के लिए कुर्सियां लगी हैं। दूसरे राजनेताओं से मिलने में वोटर्स को खासी मशक्कत करनी पड़ती है, मगर मालविका के घर में ऐसी कोई दिक्कत नहीं है। 

सोनू सूद क्यों प्रचार करने आए हैं?
मोगा शहर में लोग सूद परिवार के काम की तारीफ तो करते हैं, मगर तारीफ करने वाले वोट भी दे देंगे? ये गारंटी नहीं है। इसी वजह से सोनू सूद खुद सारे कामकाज छोड़कर अपनी बहन मालविका सूद की मदद के लिए मोगा में डट गए हैं। कहना गलत नहीं होगा कि मालविका सूद को सियासत में अपनी पहली जीत के लिए कांग्रेस से ज्यादा अपने भाई की इमेज का सहारा है। इसी पॉइंट को समझते हुए उनके प्रचार को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि सोनू सूद की भूमिका ज्यादा बड़ी नजर आए। पारंपरिक राजनीतिक प्रचार से दूर मालविका सूद प्रोफेशनल तरीके से जनसंपर्क अभियान चला रही हैं। मुंबई की पीआर एजेंसी उनका काम देख रही है। मोगा विधानसभा हलके में लगे मालविका के पोस्टर्स का रंग गुलाबी है और यह कांग्रेस के पारंपरिक पोस्टर रंग से अलग है। शहर में उनके यह पोस्टर चर्चा का विषय बने हुए हैं। 

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मालविका की एंट्री से कैसे बिगड़े सबके समीकरण
मालविका सूद की पहले कांग्रेस और फिर चुनाव में पार्टी कैंडिडेट के रूप में एंट्री से मोगा विधानसभा सीट पर सभी राजनीतिक दलों के समीकरण बिगड़ गए हैं। 

कांग्रेस : पार्टी ने मालविका सूद के लिए अपने सिटिंग MLA डॉ. हरजोत कमल का टिकट काट दिया। मालविका की पार्टी में एंट्री हुई तो डॉ. कमल ने बगावत की धमकी भी दी, मगर नेतृत्व ने एक नहीं सुनी।
बीजेपी : डॉ. हरजोत कंवल ने कांग्रेस से बगावत की तो BJP को लगा कि कांग्रेसी MLA को तोड़ने से उसकी बल्ले-बल्ले हो जाएगी। हरजोत कमल की BJP में एंट्री से पार्टी में चुनाव की तैयारी कर रहे भाजपा जिलाध्यक्ष विनय शर्मा और डॉक्टर सीमांत गर्ग का पत्ता कट गया। अब दोनों कमल के साथ चल तो रहे हैं, मगर आधे-अधूरे मन से।
AAP : आम आदमी पार्टी ने मोगा सीट से ऐन वक्त पर टिकट के दावेदार और अपने प्रदेश प्रवक्ता नवदीप संघा को किनारे कर डॉ. अमनदीप कौर पर दाव खेल दिया। संघा पर पैसे लेकर पद बांटने का आरोप लगा।
SSM : नवदीप संगा टिकट न मिलने पर AAP से बगावत कर किसान संगठनों के संयुक्त समाज मोर्चा (SSM) में चले गए जहां उन्हें अगले ही दिन टिकट मिल गया।
अकाली दल : पार्टी ने इस सीट से अपने सीनियर नेता जत्थेदार तोता सिंह के बेटे बरजिंदर सिंह मक्खन बराड़ को टिकट दिया है। बरजिंदर 2017 में भी इसी सीट से चुनाव लड़े और हार गए। अकाली दल में जोगिंदरपाल जैन के बेटे अक्षित जैन भी टिकट के दावेदार थे। जैन परिवार की तोता सिंह की फैमिली से पुरानी अदावत है। बराड़ के लिए सबसे बड़ी समस्या जैन परिवार ही बन रहा है।

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शहर ही तय करता है हार और जीत
मोगा विधानसभा सीट पर कुल 2,03,541 वोटर हैं। इनमें से 1.36 लाख वोटर मोगा सिटी में है जबकि 65 हजार ग्रामीण मतदाता है। इस विधानसभा क्षेत्र में 46 गांव आते हैं। यहां के बड़े गांवों में घल्लकलां, झिड़क और डरोली भाई शामिल है। मोगा सिटी के 1.36 लाख वोटरों में 70 हजार हिंदू व एससी वोटर हैं। मोगा सीट पर किसी प्रत्याशी की हार या जीत का फैसला शहर के मतदाता ही करते हैं। मोगा शहर में तकरीबन 25 हजार वोटर ऐसे है, जो स्विंग होते हैं। इन्हें कौन साधता है? और कैसे साधता है? यह देखने वाली बात होगी। कहा जाता है कि जिसने इन 25 हजार वोटरों को साध लिया, उसकी जीत की राह आसान हो सकती है।

विकास के सभी बड़े काम अकाली सरकार में हुए
मोगा के वोटर शहर के विकास का श्रेय अकाली सरकार को देते हैं। उनका कहना है कि अकाली सरकार के समय ही यहां मिनी सेक्रेटेरिएट, कचहरी, गोधेवाल स्टेडियम, नगर निगम और अस्पताल बना। विकास के मामले में यहां के लोग पिछले 5 साल कांग्रेस के MLA रहे डॉ. हरजोत सिंह कमल से खासे निराश हैं और लोगों की यही नाराजगी अब BJP पर भारी पड़ रही है। लोगों का कहना है कि 5 साल में हरजोत कमल ने विकास के लिए कुछ नहीं किया। डॉ. हरजोत कमल मोगा के दामाद हैं। उनकी पत्नी यहीं की रहने वाली हैं। शादी के बाद हरजोत कमल मोगा में ही सेटल हो गए। उनके यहां कॉलेज वगैरह चलते हैं।

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कांग्रेस की परंपरागत सीट, 15 चुनाव में से 9 बार पार्टी जीती
पंजाब की मोगा सीट कांग्रेस की परंपरागत सीट मानी जाती है। एक उपचुनाव के साथ इस सीट पर कुल 15 बार चुनाव हुए जिनमें से 9 में कांग्रेस जीती। यहां शिरोमणि अकाली दल सिर्फ तीन बार जीता है। अकाली दल की बात करें तो 1962 में गुरचरण सिंह ने यहां पहली बार चुनाव जीता। उसके लगभग 35 साल बाद साल 1997 के चुनाव में जत्थेदार तोता सिंह ने अकाली दल को यहां जीत दिलाई। 2012 के चुनाव में तोता सिंह यहां से लगातार दूसरी बार जीते। 2017 में इस सीट पर कांग्रेस के डॉ. हरजोत कमल को 52,357 वोट मिले और वह 1764 वोट से जीत गए। दूसरे नंबर पर आम आदमी पार्टी के रमेश ग्रोवर रहे जिन्हें 50,593 वोट मिले।

क्या कहते हैं वोटर
मोगा में ही बिजनेस करने वाले स्वर्ण गिल कहते हैं कि इस बार मतदाता बदलाव के मूड में हैं। वोटरों को लगता है कि लगभग 70 साल से दो ही पार्टियां बदल-बदलकर राज कर रही हैं इसलिए इस बार किसी तीसरे दल को मौका मिलना चाहिए। स्वर्ण गिल के मुताबिक शहर में इस बार आम आदमी पार्टी का पलड़ा भारी है।

मोगा शहर के नेचर पार्क में अपनी जानकार महिला के साथ शाम की सैर कर रहीं शमिला मित्तल मानती हैं कि मालविका सूद का पलड़ा फिलहाल भारी नजर आ रहा है। हालांकि शमिला यह भी कहती हैं कि अगर मालविका सूद कांग्रेस पार्टी की जगह अगर आम आदमी पार्टी जॉइन कर चुनाव मैदान में उतरतीं तो उनकी जीत निश्चित थी।

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