Inside Story : पंजाब चुनाव में अफीम की खेती क्यों बन रही चुनावी मुद्दा, नशामुक्त प्रदेश के लिए ये कैसी डिमांड

न सिर्फ धर्मबीर गांधी और चढूनी बल्कि 2018 में नवजोत सिंह सिद्धू भी अफीम की खेती की वकालत कर चुके हैं। यह सही है कि धर्मबीर गांधी ने यह मांग उठाई। इसमें हां नवजोत सिंह सिद्धू ने भी मिलाई थी। तत्कालीन कांग्रेस सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह ने सिद्धू की तारीफ भी की थी। 

मनोज ठाकुर, चंड़ीगढ़ :  देशभर में नशे के लिए कुख्यात हो चुके पंजाब (Punjab) में एकाएक अफीम की खेती के लाइसेंस की मांग जोर पकड़ने लगी है। एक ओर कांग्रेस (Congress), आम आदमी पार्टी (AAP) और शिरोमणि अकाली दल (Shiromani Akali Dal) नशा खत्म करने के वादे कर रहे हैं, नशे को खत्म करना पंजाब में बड़ा मुद्दा बन रहा है तो वहीं दूसरी तरफ कई जगह यह मांग भी जोर पकड़ रही है कि अफीम की खेती की इजाजत मिलनी चाहिए। आखिर यह विरोधाभास क्यों? 

अफीम की खेती की इजाजत मिले
इस बहस को उस वक्त और जोर मिला जब संयुक्त संघर्ष पार्टी के मुखिया और किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी (Gurnam Singh Charuni) ने यह मांग उठाई कि किसानों को एक एकड़ में अफीम की खेती का लाइसेंस दिया जाना चाहिए। इससे पहले आम आदमी पार्टी से सांसद रहे धर्मबीर गांधी (Dharamvir Gandhi) भी इस तरह की मांग समय समय पर उठाते रहे हैं। 

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क्या है राजनीतिक दलों के तर्क
सवाल यह है कि क्या अफीम की खेती और नशा मुक्त पंजाब एक ही सिक्के के दो पहलू है। इस विषय पर जब गुरनाम सिंह चढूनी से बातचीत की, तो उन्होंने बताया कि पंजाब के लोग अफीम को खाते हैं। अफीम के नशे को सामाजिक मान्यता है। उन्होंने बताया कि अब क्योंकि NDPS अधिनियम में अफीम को प्रतिबंधित कर दिया। इस वजह से इसकी अवैध बिक्री होने लगी। अफीम महंगी होती चली गई। इसकी जगह अब दूसरे नशे आ गए हैं। जो कि न सिर्फ महंगे है बल्कि जानलेवा भी है। इसके साथ ही पंजाब में नशा माफिया भी पैदा हो गया। गुरनाम सिंह चढूनी हालांकि अफीम की खेती के दूसरे कारण भी बताते हैं। उन्होंने कहा कि इससे किसानों की आमदनी में भी इजाफा होगा। 

धर्मबीर गांधी ने क्या कहा 
वहीं, पूर्व सांसद धर्मबीर गांधी का कहना है कि अफीम की खेती पर रोक लगने से ही पंजाब में स्मैक, ड्रग्स और चिट्टे की बिक्री बढ़ी है। यदि इस पर रोक लगानी है तो निश्चित ही देर सबेर पंजाब में अफीम की खेती की इजाजत देनी ही पड़ेगी। जब तक ऐसा नहीं होगा, पंजाब नशे की गर्त से बाहर नहीं आ सकता। 

सिद्धू भी कर चुके हैं वकालत
न सिर्फ गांधी और चढूनी बल्कि 2018 में नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) भी अफीम की खेती की वकालत कर चुके हैं। यह सही है कि धर्मबीर गांधी ने यह मांग उठाई। इसमें हां नवजोत सिंह सिद्धू ने भी मिलाई थी। तत्कालीन कांग्रेस सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह (Amarinder Singh) ने सिद्धू की तारीफ भी की थी। कैप्टन ने तब बोला था, हमें खुशी है कि एक बार फिर से अफीम की खेती को लीगल करने का मुद्दा चर्चा में आया। मैं उम्मीद करता हूं इसे गंभीरता से देखा जाएगा। इस मुद्दे को हमेशा के लिए सुलझा दिया जाएगा। मध्यप्रदेश और राजस्थान में अफीम की खेती को इजाजत है। दवाओं में भी अफीम का प्रयोग होता है। इसलिए अफीम की खेती को लेकर एक नीति बनानी चाहिए।  हालांकि चुनाव में नवजोत सिंह सिद्धू और कैप्टन की ओर से इस मामले में कुछ नहीं बोला जा रहा है लेकिन किसान संगठन जरूर यह मांग उठा रहे हैं। 

क्या है विशेषज्ञों की राय
पंजाब इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस के प्रोफेसर हरबंस सिंह का कहना है कि यह बहुत जोखिम का काम है। सीधे-सीधे आग से खेलने जैसा है। क्योंकि किसान जिस तरह से मुखर हो रहे हैं। उन्हें पता है वह सरकार पर दबाव डाल कर अपनी बात मनवा सकते हैं। ऐसे वातावरण में अफीम की खेती की मांग आग से खेलने जैसा है। नेताओं को अफीम की खेती हो या न हो, इससे कोई मतलब नहीं है, उन्हें अपने वोट से मतलब है। आखिर एक नशे की इजाजत से दूसरा नशा कैसे खत्म हो सकता है? 

युवाओं में बढ़ा रहा नशे का सेवन
नशा मुक्त पंजाब अभियान के कन्वीनर बलवंत सिंह ने बताया कि पंजाब में सिंथेटिक ड्रग लगातार बढ़ रही है। युवा वर्ग लगातार नशे का आदी हो रहा है। 18 साल से कम उम्र के किशोर भी नशे की लत में पड़े हुए हैं। इसे रोकने की बजाय, नेता अफीम की खेती की वकालत कर रहे हैं। यह गलत है। होना तो यह चाहिए कि नशा रोकने की दिशा में काम किया जाए। जो नशे के आदी है, उनका इलाज किया जाए। 

पंजाब का हर 6वां व्यक्ति नशे का आदी
बलवंत सिंह ने बताया कि पंजाब में नशे को लेकर पीजीआई चंडीगढ़ ने पहली बार सर्वे किया था। दो तरह से सर्वे किया गया। इसमें डोर-टू-डोर और दूसरा रैपिड असेसमेंट सर्वे था। इसमें पता चला कि पंजाब का हर छठा व्यक्ति नशे का आदी है। 31 लाख लोग नशा करते हैं। 28 से 30 लाख लोग इसके आदी हैं। 22 लाख लोग शराब, 16 लाख लोग तंबाकू, 2.5 लाख लोग ड्रग्स लेते हैं। 2016 में एक स्टडी हुई थी, इसमें सामने आया था कि पंजाब में 2.32 लाख लोग ड्रग्स लेते हैं। नशा करने वाले हर 33 वें व्यक्ति ने माना कि इस वजह से कभी न कभी दुर्घटना का शिकार हुए हैं। 
हर 10वें व्यक्ति ने यह भी माना कि नशे से उसे मानसिक और शारीरिक बीमारी हो रही है। 

अफीम और चूरा पोस्त कॉमन नशा
बलवंत सिंह ने बताया कि पीजीआई के सर्वे में यह भी सामने आया कि पंजाब मं अफीम और चूरा पोस्त कॉमन नशा है। लेकिन इंजेक्शन से नशा करने वालों की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है। इंजेक्शन में सबसे ज्यादा हेरोइन का इस्तेमाल होता है। उन्होंने बताया कि नशे के मामले में मानसा जिला टॉप पर है। यहां 39.1 प्रतिशत लोग नशे का सेवन करते हैं, इसके बाद होशियारपुर, बरनाला और रोपड़ जिले आते हैं। फिरोजपुर में सबसे कम नशा करने वाले मिले। 

मजबूत है नशा फैलाने वाले रैकेट का नेटवर्क
यह बात भी सामने आई कि पंजाब में नशा उपलब्ध कराने वाले रैकेट मजबूत है। उनका अपना नेटवर्क है। इससे वह नशा सप्लाई करते हैं। नशा करने वाले ज्यादातर लोगों ने यह भी माना कि उन्होंने पहली बार नशा मजे के लिए किया था। लेकिन देखते ही देखते इसकी आदत लग गई। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की 2019 की एक रिपोर्ट के मुताबिक महाराष्ट्र के बाद पंजाब में सबसे ज्यादा केस एनडीपीएस के दर्ज हुए। 2020 में उत्तर प्रदेश में 10852 केस एनडीपीएस के दर्ज हुए तो पंजाब में 6909 केस दर्ज हुए। 

1985 के बाद अफीम की खेती पर रोक
पंजाब में 1985 के बाद अफीम की खेती और खाने पर रोक लगी थी। 1947 तक अफीम की खेती अंग्रेजी सरकार के अंडर रही। आजाद भारत में राजस्थान, मध्य प्रदेश, में अफीम की खेती होती है। 1985 में एनडीपीएस अधिनियम आने के बाद के बाद अफीम की खेती और इसके खाने पर रोक लग गई। नशा मुक्त पंजाब का समर्थन करने वालों का मानना है कि इसे सियासी मुद्दा तो नहीं बनाया जाना चाहिए। क्योंकि यह राजनीति का मामला नहीं है। यह सामाजिक मुद्दा हो सकता है। जिस पर गहन रिसर्च, चिंतन और मंथन की जरूरत है। यह मुद्दा वोट बटोरने के लिए नहीं होना चाहिए। यह बहुत ही गलत बात होगी कि बिना किसी रिसर्च के अफीम की खेती की वकालत हो रही है। इस बारे में पंजाब के लोगों को समझना चाहिए, नशा पंजाब के लिए बेहद संवेदनशील मुद्दा है। इस पर राजनीति नहीं की जानी चाहिए। वह चाहे गुरनाम सिंह चढूनी हो, या फिर कोई और।

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