पंजाब चुनाव में कांग्रेस का CM फेस कौन? सिद्धू या चन्नी, दोनों में क्या खूबियां-क्या मुश्किलें, जानें सब कुछ

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने 27 जनवरी को जालंधर में वर्चुअल रैली को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि आपकी सीएम फेस घोषित करने की जो मांग है उसको मैं जल्द पूरा करूंगा। मैंने सिद्धू और चन्नी से कहा कि हमें गहराई से सोचना चाहिए और महिलाओं के लिए एक मैनिफेस्टो बनाना चाहिए। 

Asianet News Hindi | Published : Jan 29, 2022 6:52 AM IST / Updated: Jan 29 2022, 12:52 PM IST

मनोज ठाकुर, चंडीगढ़। ऐसा हो ही नहीं सकता। राहुल गांधी आए। कोई नया मुद्​दा ना उठे। वह पंजाब आए और बोल गए- सीएम चेहरा तय होगा। ऐसे में एक बार फिर सीएम फेस पर कांग्रेस में चर्चा तेज हो गई। कुछ दिन पहले ये मुद्​दा पंजाब कांग्रेस में गौण-सा हो गया था। इलेक्शन कैपेनिंग कमेटी के चेयरमैन सुनील जाखड़ शुरू से सीएम फेस सामने लाने के विरोध में थे। अनमने ढंग से ही सही सीएम चरणजीत चन्नी और प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू राजी हो गए थे। सीएम चेहरे पर सस्पेंस रखकर ही चुनाव लड़ा जाए। सीएम फेस की घोषणा की चिंगारी नाउम्मीद की राख में दब-सी गई थी। अब अचानक सब बदल गया है। राहुल गांधी के पंजाब दौरे ने इस राख को कुरेद कर फिर से हवा दे दी। अब पंजाब कांग्रेस का सीएम फेस कौन?

यह सवाल कांग्रेस ही नहीं, पंजाब की राजनीति के गलियारों में फिर से चर्चा का विषय बन गया। इतनी चर्चा राहुल गांधी के दौरे की नहीं हो रही, जितनी इस बात की कि कांग्रेस में सीएम चेहरा कौन हो सकता है? चन्नी या सिद्धू? हर कोई अपनी अपनी तरह से सियासी गुणा-भाग में लगा है। चन्नी और सिद्धू की एकता की तुलना संतरे से की जा सकती है। जिसकी फाड़ियां होती तो अलग-अलग हैं, लेकिन छिलके में जब तक लिपटी रहती हैं तो एक साथ नजर आती हैं। चुनाव के चक्कर में सिद्धू और चन्नी की एकता भी कमोबेश इसी तरह की है।

चन्नी मांग रहे और वक्त, सिद्धू बता रहे अपना पंजाब मॉडल
क्योंकि राहुल के सामने खुद को एक-दूसरे से बेहतर करने होड़ में दोनों ने अपने-अपने पक्ष में खूब तर्क गढे़। चन्नी ने दावा किया कि सीएम पद पर उन्हें 111 दिन हो गए, वह चैन से नहीं सोए। पंजाब में लगातार काम कर रहे हैं। 5 साल मिलने चाहिए। अब भला सिद्धू के सामने कोई दूसरा सीएम का उम्मीदवार बन जाए, यह वह चुपचाप कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं? तो उन्होंने भी बगल में दबी पंजाब मॉडल की किताब निकालकर बोलना शुरू कर दिया। पंजाब के मतदाता को कैसा पंजाब चाहिए?

राहुल ने दोनों के विजन को भाषण में सराहा
राहुल गांधी पर सिद्धू के पंजाब मॉडल का खासा असर भी देखने को मिला। उनका भाषण सिद्धू के पंजाब मॉडल के इर्द-गिर्द ही बना रहा। तो क्या अब यह मान लिया जाए कि सिद्धू सीएम फेस की रेस जीत सकते हैं? ना इतनी जल्दी कैसे? चन्नी की सियासी बेटिंग तो अभी बाकी है। चन्नी ने बताया कैसे खनन माफिया, नशा माफिया पर रोक लगाने का काम किया? कैसे रेत से रेवेन्यू बढ़ाया? राहुल को भी यह बात जंची। इसका जिक्र भी उन्होंने भाषण में किया। रेत से रेवेन्यू बढ़ाने का सीएम के विजन पर भाषण में चर्चा की। चन्नी भी खुश हुए। क्योंकि उनके काम का जिक्र राहुल के भाषण में जो आया।

अब धर्मसंकट... कैसे चुना जाए सीएम फेस
मुद्​दा तो फिर जस का तस। सीएम कौन? राहुल ने सिक्का हवा में उछाल दिया। हेड या टेल... अब ये तय करेंगे कार्यकर्ता। लेकिन कैसे? इस पर कुछ साफ नहीं। तो क्या सीएम की लोकप्रियता के लिए AAP के अरविंद केजरीवाल का तरीका अपनाया जाए। जी नहीं, उस पर तो सिद्धू पहले ही ऐतराज जता चुके हैं। इसमें दिक्कत भी है। अब मोबाइल पर मैसेज करने वाला यदि कांग्रेसी ना हुआ तो क्या होगा। विपक्षी बोल सकते हैं, एक गैर कांग्रेसी ने कांग्रेस का सीएम चेहरा चुन लिया। यह भी समस्या है कि उसकी पहचान कैसे होगी? चलिए, केजरीवाल का फॉर्मूला कैंसिल।

राहुल के सामने दो सरदार.. किसे चुनेंगे?
यूं भी राहुल गांधी इससे पहले यह बोल रहे थे कि उनके पास दो-दो सरदार हैं। एक सरकार का सरदार, एक पार्टी का। तो क्या अब एक सरदार को छोड़ने का वक्त आ गया? किसे छोड़ा जाए? क्यों छोड़ा जाए? इन सवालों के जवाब तो तलाशने होंगे।

यह भी फंस रहा पेंच...
चन्नी सीएम क्यों? उसके भाई मनोहर सिंह को कांग्रेस ने टिकट ही नहीं दिया। जबकि सिद्धू के भतीजे समित सिंह, राजेंद्र कौर भट्टल के दामाद समेत कई कांग्रेसियों को पार्टी ने उम्मीदवार बनाकर उतार दिया तो चन्नी का कसूर क्या? क्या इसलिए कि बड़ा भाई तो सीएम है। छोटे को टिकट क्यों? बहरहाल, अपने भाई के लिए इतना तो समझौता किया ही जा सकता है। इस तरह से तो सिद्धू का पत्ता तो कट गया। क्योंकि भतीजे को टिकट जो दे दिया गया। बोला जा सकता है। परिवार में दो दो टिकट। अब सीएम पद भी। ना-ना ये तो ज्यादती होगी। पार्टी में बाकी नेता भी तो हैं। उन्हें क्या जवाब देंगे? चन्नी के साथ दलित वोटर्स भी हैं। काम भी ठीक ही किए हैं। सीएम के तौर पर कामयाब रहे हैं। हां, यह बात मानी जा सकती है। सीएम के तौर पर मतदाताओं को जोड़ने की कोशिश की है। चलिए ठीक है, चन्नी फाइनल करते हैं।

सिद्धू की राह में उतावलापन रुकावट?
जिस शख्स के लिए कैप्टन अमरिंदर सिंह को गंवाया फिर उसके सीएम बनने में क्या बुराई? सिद्धू के पास पंजाब मॉडल है। हां, अब यह बात अलग है, प्रैक्टिकल है या नहीं। सीएम बनेंगे तो प्रैक्टिकल भी हो जाएगा। मजीठिया के ड्रग्स केस की तरह। नहीं। इस बार सबक सीख लिया। ठोक बजा के काम करना है। तो चलिए सिद्धू ठीक हैं। नहीं, उनका उतावलापन, उसका क्या? सीएम पद पर बैठकर भी यदि उतावलापन बना रहा तो राज्य का क्या होगा? मगर, इस वजह से इग्नोर तो नहीं कर सकते। चन्नी सीएम भी तो सिद्धू की वजह बने। 

अब राहुल ने बोल दिया तो फाइनल होगा ही सीएम फेस
वैसे, यदि सिद्धू कैप्टन के खिलाफ आंदोलन ना चलाते तो चन्नी सीएम कैसे बनते? अब चन्नी ने सीएम पद का स्वाद चख लिया। सिद्धू को भी चखने दो। लेकिन, दलित मतदाताओं का क्या? सिद्धू यदि सीएम फेस हुए तो दलित वोट कैसे आएंगे पार्टी के साथ? पहले क्या चन्नी की वजह से ही दलित आए थे, जो इस बार आएंगे? दलितों का एक बड़ा तबका तो कांग्रेस को वोट करता ही है। तो फिर तो सिद्धू ठीक हैं। नहीं, यह जल्दबाजी होगी। फिर कौन? सुनील जाखड़। नहीं, वह तो रणछोड़ हैं। इस बार चुनाव ही नहीं लड़ रहे हैं। फिर तो मुश्किल है। नहीं, अब राहुल गांधी ने बोल दिया है। सीएम चेहरा तो फाइनल होगा? लेकिन कौन? इंतजार कीजिए, अब यह राहुल गांधी ही बताएंगे।

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