उत्तराखंड के CM पुष्कर सिंह धामी का बड़ा ऐलान-शपथ ग्रहण के तुरंत बाद 'समान नागरिकता' के ड्राफ्ट पर होगा काम

उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव(uttarakhand assembly elections 2022) के लिए वोटिंग से 2 दिन पहले मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी(Pushkar Singh Dhami) ने समान नागरिक संहिता ( Uniform Civil Code) के लिए ड्राफ्ट तैयार करने का ऐलान किया है। यह घोषणा ऐसे वक्त में भी की गई है, जब कर्नाटक से उठा हिजाब का विवाद देशभर में फैलता जा रहा है।

Amitabh Budholiya | Published : Feb 12, 2022 6:19 AM IST / Updated: Feb 12 2022, 11:59 AM IST

देहरादून. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी(Pushkar Singh Dhami) ने समान नागरिक संहिता ( Uniform Civil Code) के लिए ड्राफ्ट तैयार करने का ऐलान किया है। उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव(uttarakhand assembly elections 2022) के लिए वोटिंग से 2 दिन पहले यह घोषणा करके राजनीतिक हलचल बढ़ा दी है। यह ऐलान ऐसे वक्त में भी किया गया है, जब कर्नाटक से उठा हिजाब का विवाद देशभर में फैलता जा रहा है बता दें कि उत्तराखंड की सभी 70 विधानसभा सीटों पर एक चरण में 14 फरवरी को मतदान होगा। 10 मार्च को नतीजे आएंगे। पिछले चुनाव में भाजपा ने 57 सीटें जीती थीं और 47 प्रतिशत वोट पाए थे। जबकि कांग्रेस ने 11 सीटें जीती और 33.8 प्रतिशत वोट पाए थे। निर्दलीय 2 विधायक बने थे और इन्हें 10 प्रतिशत वोट मिले थे। धामी ने कहा कि शपथ ग्रहण(धामी को उम्मीद है कि राज्य में दुबारा भाजपा की सरकार बनेगी) के तुरंत बाद भाजपा सरकार ड्राफ्ट तैयार करने के लिए एक समिति बनाएगी। यह यूनिफॉर्म सिविल कोड विवाह, तलाक, भूमि-सम्पत्ति और विरासत के संबंध में समान कानून प्रदान करेगा, चाहे उनकी आस्था कुछ भी हो।

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यूनिफार्म सिविल कोर्ड पर इतना जोर क्यों?
संविधान के आर्टिकल 36 से लेकर 51 तक राज्य को कई मुद्दों पर सुझाव दिए गए हैं। संविधान में यह कहा गया है कि राज्य अपनी नीतियां तय करते समय इन नीति निर्देशक तत्वों का ध्यान रखेंगे। आर्टिकल 44 में यह निर्देश दिया गया है कि सही समय पर सभी धर्मों के लिए यूनिफार्म सिविल कोड लागू करना भी राज्य की जिम्मेदारी है।  अगर अभी की बात करें तो सभी धर्मों का अलग-अलग पर्सनल लॉ है। यानी हिंदू का अलग-मुसलमानों का अलग। हालांकि, भाजपा हमेशा से यूनिफार्म सिविल कोड के पक्ष में रही है। 

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शाहबानो केस से सुर्खियों में आया था समान सिविल कोड
यह साल 1985 की बात है। केंद्र में राजीव गांधी की सरकार थी। सुप्रीम कोर्ट ने शाहबानो नाम की एक महिला के पूर्व पति को गुजारा भत्ता देने का आर्डर दिया था। इस मामले में कोर्ट ने यह कहा था कि पर्सनल लॉ में यूनिफार्म सिविल कोड लागू होना चाहिए। हालांकि, राजीव गांधी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने के लिए संसद में बिल पास कराया था। उस समय काफी हो हल्ला मचा था। पर्सनल लॉ के लोग यूनिफार्म सिवल कोड के खिलाफ थे और राजनीतिक दल वोट बैंक की खातिर कुछ फैसला लेने से कतराते रहे। 

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दिल्ली हाईकोर्ट भी इसके पक्ष में
जुलाई, 2021 में दिल्ली हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान बड़ी टिप्पणी की थी। कोर्ट ने कहा था कि भारतीय समाज में जाति, धर्म और समुदाय से जुड़े फर्क खत्म हो रहे हैं। इस बदलाव की वजह से दूसरे धर्म और दूसरी जातियों में शादी करने और फिर तलाक में समस्या आ रही है। आज की युवा पीढ़ी को इन दिक्कतों से बचाने की जरूरत है। हाईकोर्ट ने कहा कि देश में समान नागरिक संहिता की जरूरत है और इसे लाने का यही सही समय है। केंद्र को कोर्ट ने आवश्यक कदम उठाने को कहा था।

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी इसकी जरूरत बताई थी
नवंबर, 2021 को दिल्ली (Delhi) के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabd High Court) ने भी समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code ) को लागू करने की वकालत की थी। हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को सलाह दी थी कि यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करने पर विचार करना चाहिए। यह देश की जरुरत बन गई है। कोर्ट ने यह भी कहा था कि अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा व्यक्त की गई आशंका या भय को देखते हुए इसे सिर्फ स्वैच्छिक नहीं बनाया जा सकता। इस बारे में 75 साल पहले डॉ.बीआर अंबेडकर भी जिक्र कर चुके हैं। 
 

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