1. काम-वासना के समान दूसरा रोग नही
आचार्य चाणक्य के अनुसार, काम-वासना के समान कोई दूसरा रोग नहीं। जिस व्यक्ति के मन में काम-वासना की भावना हर समय रहती है, उसका मन किसी और कार्य में नहीं लगता और निरंतर सिर्फ वासना के बारे में ही सोचता रहता है। ऐसे लोग दिमागी रूप से बीमार होते हैं। शरीर के रोगों के इलाज संभव है, लेकिन काम-वासना से पीड़ित व्यक्ति का कोई इलाज नहीं है।