किसी ने भूखे पेट की मुक्केबाजी तो कोई 1 पैर से चढ़ गई एवरेस्ट, World Girl Day पर 10 जांबाज महिलाओं की कहानी

करियर डेस्क. International Day of the Girl Child 2020: दोस्तों, 11 अक्टूबर 2020 को पूरी दुनिया में अंतरार्ष्ट्रीय कन्या दिवस (International Day of the Girl Child) मनाया जाएगा। ये दिन दुनिया भर में महिलाओें के हक-सम्मान, उनकी आवाज और कल्याण के लिए सेलिब्रेट किया जाता है। शिक्षा, विज्ञान, साहित्य मेडिकल, कला-संस्कृति महिलाओं में समान भागीदारी देते हुए भी महिलाएं समाज में पीछे हैं। इसलिए इस दिन का महत्व बहुत बड़ा है जब दुनियाभर में महिलाओं के हक और आवाज को बुलंद करने एक खास दिन मनाया जाता है। इस खास मौके पर हम आपको आज कुछ सक्सेजफुल महिलाओं के बारे में बता रहे हैं। इन्होंने पुरुषसत्ता से लड़कर अलग-अलग क्षेत्रों में कीर्तिमान रचे हैं। आज ये न सिर्फ प्रेरणा हैं बल्कि दूसरी महिलाओं की आवाज भी हैं। किसी ने कारगिल गर्ल बनकर लड़ाकू विमान उड़ाया  तो किसी ने महिलाओं के खिलाफ अपराध देख दोषियों को फांसी के तख्त तक पहुंचाया- 

Asianet News Hindi | Published : Oct 10, 2020 2:46 PM IST / Updated: Oct 11 2020, 10:06 AM IST
111
किसी ने भूखे पेट की मुक्केबाजी तो कोई 1 पैर से चढ़ गई एवरेस्ट, World Girl Day पर 10 जांबाज महिलाओं की कहानी

आइए जानते हैं देश-दुनिया में अपने अनूठे कामों और जज्बे से पहचान बना चुकी दूसरों के लिए रोल मॉडल 10 महिलाओं की कहानी-
 

211

दिल्ली के स्लम इलाके से निकल IAS अफसर बनीं  उम्मुल खेर अपने आप में एक योद्धा रही हैं। मूंगफली बेचने वाले की इस बेटी ने झुग्गी झोपड़ी ​में जीवन बिताया है। साल 2001 में उम्मुल खेर झुग्गी-झोपड़ी हटने पर खुले आसमां के नीचे आ गया था तब किराए का मकान में उम्मुल ने बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया। खुद की पढ़ाई के साथ-साथ परिवार का भी खर्च निकालने लगी। उम्मुल खेर के जीवन में संघर्ष सिर्फ इतना ही नहीं था कि परिवार बेइंतहा गरीबी में जी रहा है बल्कि उम्मुल जन्मजात एक बोन फ्रजाइल डिसीज़ से भी ग्रसित थी। इनकी हड्डियों में 16 बार फैक्चर हुए। 8 बार ऑपरेशन करवाना पड़ा था।

 

सघंर्ष के बावजूद ट्यूशन पढ़ाकर ही उम्मुल 10वीं औऱ 12वीं में टॉपर बनीं। इसके बाद उन्होंने जेआरएफ (JRF) करने के साथ ही उम्मुल यूपीएससी (UPSC) की तैयारियों में जुट गईं और पहले ही प्रयास में 420वीं रैंक के साथ यूपीएससी की परीक्षा पास की। असिस्टेंट कमिश्नर बनकर वो देश-समाज की सेवा कर रही हैं। 

311

मैरी कॉम एक ऐसा नाम जिसने 10 राष्ट्रीय और न जाने कितने ही गोल्ड मेडल जीतकर तिरंगे की शान और सभी भारतीयों के सीने को गर्व से चौड़ा कर दिया। मैरी कॉम ने मुक्केबाजी (Boxing) की दुनिया में 18 साल की उम्र में ही एंट्री कर ली थी। बॉक्सिंग करियर में मैरी कॉम के सामने कई चुनौतियां आई तो वो अपने परिवार के खिलाफ भी चली गई थीं। मैरी कॉम के पिता किसान रहे हैं तो उन्होंने भी किसानी में पिता का हाथ बंटाया। मैरी ने गरीबी झेली है इतनी ही कि उनके घर में खाने को भोजन नहीं होता था और वो भूखे पेट प्रैक्टिस करती थीं।

 

मैरी काम के रिकॉर्ड्स की बात करें तो साल 2000 में मैरी कॉम ने महिला बॉक्सिंग चैंपियनशिप में शानदार जीत दर्ज की थी। इसके बाद उन्होंने साल 2001 में अमेरिका में आयोजित महिला बॉक्सिंग चैंपियनशिप AIBA में सिल्वर मेडल जीता था। मैरी कॉम के जीवन पर एक फिल्म भी बन चुकी है। 

411

मलाला पूरी दुनिया में सबकी आइडल बन चुकी हैं। पाकिस्तान की स्वात घाटी की रहने वाली मलाला ने 11 साल की उम्र में गुल मकाई नाम से बीबीसी उर्दू के लिए डायरी लिखना शुरु किया था। मलाला स्वात इलाके में रह रहे बच्चों की व्यथा सामने लाती थीं। उन्होंने तालिबानी आतंक के खिलाफ और महिलाओं की शिक्षा के लिए पुरजोर आवाज उठाई। डायरी के जरिए बच्चों की कठिनाइयों को सामने लाने के लिए मलाला को वीरता के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। इसके बाद मलाला पर तालिबान ने हमला किया और सिर में गोली मारकर उसकी जान लेने की कोशिश की। इस हमले के विरोध में दुनिया भर के लोगों ने मलाला का साथ दिया।

 

इसके बाद मलाला ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। वह तालिबानी हमले को मात देकर दुनिया के सामने महिलाओं की आवाज को बुलंद करने वाली महिला बनकर उभरीं। साल 2014 में मलाला को शांति का नोबेल पुरस्कार मिला। मलाला 17 साल की उम्र में नोबेल पाने वाली सबसे युवा पुरस्‍कार विजेता हैं। 

511

निर्भया को इंसाफ दिलवाने वाली सीमा कुशवाहा एक वकील के रूप में नहीं बल्कि मजबूत कानून की तलवार के रूप में याद आती हैं। यूपी के इटावा में उग्गरपुर गांव की रहने सीमा के पिता किसान थे। वो आठवीं तक स्कूल गईं। आगे की पढ़ाई पर रोक लग गई। उस समय लड़कियों को ज्यादा पढ़ाना ठीक नहीं मानते थे। पिता ने पंचायत करके बेटी को पढ़ाने का फैसला लिया। ग्रेजुएशन के दौरान पिता की मौत हो गई। सीमा के पास कॉलेज की फीस भरने के पैसे नहीं थे। बुआ ने सोने के कुंडल और पायल बेचकर फीस भरी। बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर किसी तरह ग्रेजुएशन किया।’ आज सीमा सशक्त महिला, काबिल वकील और महिलाओं के लिए बुलंद आवाज बन चुकी हैं।  

611

हादसे का शिकार हुईं अरुणिमा सिन्हा माउंट एवरेस्ट फतह करने वाली पहली भारतीय विकलांग हैं। उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर में हुआ अरुणिमा की रुचि बचपन से ही स्पोर्ट्स में रही वह एक नेशनल वॉलीबॉल प्लेयर भी थी। एक हादसे ने अरुणिमा की जिंदगी का इतिहास बदल दिया था। वो 2011 में लखनऊ से दिल्ली जा रही थी कि कुछ शातिर अपराधी ने छीना-झपटी के बाद उन्हें चलती ट्रैन से बाहर फेक दिया जिसकी वजह से उनका का बाया पैर पटरियों के बीच में आ जाने से कट गया पूरी रात अरुणिमा सिन्हा कटे हुए पैर के साथ दर्द से चीखती चिल्लाती रहीं।

 

अस्पताल में वो चार महीने तक जिंदगी से लड़ती रहीं। बाये पैर को कृत्रिम पैर के सहारे जोड़ा तो वो दोगुने जज्बे के साथ उठ खड़ी हुईं। अरुणिमा ने अपने हौसलो में कोई कमी नही आने दी उन्होंने माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई की ठानी जिसे पूरा करके ही दम लिया। 

 

एवरेस्ट फतेह के बाद उन्होंने दुनिया के सभी सातों महाद्वीपों की सबसे ऊंची चोटियों को लांघने का लक्ष्य तय किया। इस क्रम में वे अब तक अफ्रीका की किलिमंजारो (Kilimanjaro: To the Roof of Africa) और यूरोप की एलब्रुस चोटी (Mount Elbrus) पर तिरंगा लहरा चुकी हैं।
 

711

'वर्ल्ड गर्ल डे' पर हम भारत की पहली महिला एयरक्राफ्ट पायलट की बात न करें ऐसा कैसे हो सकता है। कारगिल गर्ल के नाम से मशहूर फ्लाइट लेफ्टिनेंट गुंजन सक्सेना भारतीय वायु सेना की पहली महिला ऑफिसर हैं, जो पहली बार युद्ध में गई थीं। उस वक्त महिलाओं को वॉर टाइम में वॉर जोन में जाने और फ्लाइटर प्लेन उड़ाने की इजाजत नहीं थीं। फ्लाइट लेफ्टिनेंट गुंजन सक्सेना को वर्ष 1994 में 25 अन्य महिला प्रशिक्षु पायलटों के साथ भारतीय वायु सेना में चुना गया था। यह महिला IAF प्रशिक्षु पायलटों का पहला बैच था।

 

तब गुंजन सक्सेना ने 1999 कारगिल वॉर के वक्त यह इतिहास रचा था और उस वक्त वो भारतीय वायु सेना में फ्लाइंग ऑफिसर बनीं। उस दौरान उन्होंने कॉम्बेट जोन में चीता हैलीकॉप्टर उड़ाया था और कई भारतीय सैनिकों की जान बचाई थी। उस दौरान उन्होंने ऐसा कर इतिहास रच दिया था और आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए मिसाल कायम की।
 

811

लक्ष्मी अग्रवाल एक एसिड अटैक सर्वाइवर हैं। लक्ष्मी का सपना गायक बनने का था लेकिन कम उम्र में ही उनके साथ हुए एक हादसे ने उनकी पूरी जिंदगी ही बदलकर रख दी। 32 साल का एक युवक लक्ष्मी से शादी करना चाहता था, लक्ष्मी उस वक्त सिर्फ 15 साल की थी। उसने युवक से शादी करने से इनकार कर दिया तो साल 2005 में उस युवक ने लक्ष्मी पर तेजाब (एसिड) फेंक दिया। इसके खिलाफ साल 2006 में लक्ष्मी ने एक पीआईएल डालकर सुप्रीम कोर्ट से एसिड बैन करने की मांग की। लक्ष्मी एसिड अटैक पीड़ितों के अधिकारों के लिए बोलती हैं। लक्ष्मी अब स्टॉप सेल एसिड की संस्थापक है। लक्ष्मी को महिला और बाल विकास मंत्रालय, पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय और उनके अभियान स्टॉप सेल एसिड के लिए यूनिसेफ से 'अंतर्राष्ट्रीय महिला सशक्तिकरण पुरस्कार 2019' भी मिला है। इसके अलाव लक्ष्मी को यूएस फर्स्ट लेडी मिशेल ओबामा द्वारा 2014 का अंतर्राष्ट्रीय महिला सम्मान पुरस्कार भी मिल चुका है। आज वो बहुत बड़ी सेलिब्रिटी बन चुकी हैं।

911

गीता और बबीता, ये दोनों नाम हर भारतीय की जुबान पर ऐसे घुल-मिल गए हैं कि इसके बारे में ज्‍यादा चर्चा करना भी इन दोनों रेसलर बहनों की क्षमताओं पर सवाल खड़े करने जैसा है। महावीर फोगाट की इन दोनों बेटियों ने रेसलिंग में देश का नाम दुनियाभर में मशहूर किया। इन्हें  ‘दंगल गर्ल ’ कहा जाता है। देश को कई मेडल देने वाली ये बहनें महिला कुश्ती के लिए पुरुषों के साथ पहलवानी करके यहां तक पहुंची थीं।

 

गांव में महिला पहलवान न होने पर पिता ने इन्हें लड़कों से कुश्ती करवाई और इंटरनेशनल गेम्स के लिए तैयार किया। गरीबी में पली-बढ़ी चंडीगढ़ की गीता और बबीता की पहलवानी के दाँव-पेंच और उनका संघर्ष पूरा देश जानता है। हरियाणा में ये एथलिट लड़के-लड़की दोनों की आदर्श रही हैं। ये चार बहनों गीता, बबीता, रितु और संगीता सभी पहलान हैं और इनका भाई दुष्यंत फोगाट भी अब पहलवानी में उतर चुके हैं। 

1011

भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान रानी रामपाल हाल में अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित हुई हैं। हरियाणा के एक छोटे से गांव में जन्मी रानी का बचपन कच्चे घर में गुजरा है, उन्होंने गरीबी झेली है और रिश्तेदारों और समाज के ताने भी। घर चलाने के लिए उनके पिता तांगा चलाते थे और ईंटें बेचते थे। तेज़ बारिश के दिनों में उनके कच्चे घर में पानी भर जाता था।

 

रानी ने बताया, जब उन्होंने हॉकी खेलने की इच्छा ज़ाहिर की, तो माता-पिता और रिश्तेदारों ने साथ नहीं दिया। रिश्तेदार भी पिता को ताने देकर कहते थे, ‘ये हॉकी खेल कर क्या करेगी? बस छोटी-छोटी स्कर्ट पहन कर मैदान में दौड़ेगी और घर की इज्ज़त ख़राब करेगी।’” उस समय ये सब सुनकर रानी डरती थीं कि कभी हॉकी नहीं खेल पाएंगी। आज वही लोग रान की पीठ थपथपाते हैं और उनके घर लौटने पर ख़ासतौर से बधाई देने आते हैं। 

1111

उत्तर प्रदेश के बागपत ज़िले के जोहरी गांव की दो महिलाएं- चंद्रो और प्रकाशी तोमर ‘शूटर दादी’ के नाम से मशहूर हैं। दोनों देवरानी और जेठानी हैं। 60 की उम्र में स्थानीय राइफल क्लब में शूटिंग सीखकर कई कीर्तिमान बना चुकीं इन दोनों महिलाओं के जीवन पर बनी हिंदी फिल्म भी बन चुकी है। 86 साल की दादी प्रकाशो और चंद्रो तोमर ने लंबे उम्र में निशानेबाजी में नाम रोशन किया है।

 

प्रकाशो और चंद्रो की पोती  शैफाली गांव की डॉ. राजपाल की शूटिंग रेंज में शूटिंग सीखने जाती थीं। इस दौरान ये दोनों दादी भी अपनी पोतियों के साथ रहती थी। एक दिन दादी ने निशाना लगा कर दिखाया तो कोच ने जमकर तारीफ की। चंद्रो के बाद कोच के कहने पर प्रकाशो ने भी सटीक निशाने लगाए। इसके बाद से ही दोनों का शूटिंग का सफर शुरू हुआ। 1999 से लेकर 2016 के बीच दादियों ने 25 नेशनल शूटिंग चैंपियनशिप में जीती है। मेडल जीते हैं। इतना ही नहीं, एक शूटिंग प्रतियोगिता में प्रकाशो ने दिल्ली के डीआईजी को हराकर गोल्ड मेडल जीता था।

Share this Photo Gallery
click me!

Latest Videos

Recommended Photos