कॉल सेंटर में काम कर परिवार को अकेले पाला, दर दर की ठोकरें खाईं और आखिरकार बन ही गया IPS अफसर
कानपुर. जब कुछ कर दिखाने का जज़्बा हो तो, मुश्किल हालातों से लड़कर भी अपने लक्ष्य तक पहुंच जाते हैं। ऐसे ही गरीब घर से आने वाले एक लड़के ने हजार मुश्किलों से लड़ते हुए आईपीएस (IPS) अफसर की वर्दी पहनने के सपने को पूरा किया। कानपुर के जाजमऊ के रहने वाले सूरज सिंह परिहार कभी कॉल सेंटर में काम करते थे लेकिन अपनी मेहनत और लगन के दम पर आज एक आईपीएस ऑफ़िसर हैं। उन्होंने कई नक्सलवादियों को पकड़ा है। वो एक क्रिएटिव लेखक भी हैं जो कविताएं लिखकर लोगों को जागरूक करते हैं। पर सूरज की जिंदगी में कभी बहुत अंधेरा रहा है उन्होंने अपने बुरे दिनों से लड़कर देश सेवा के इस क्षेत्र में आज मुकाम हासिल किया है। IPS सक्सेज स्टोरी में हम आपको गरीब परिवार से आने वाले इस यौद्धा के संघर्ष की प्रेरणात्मक कहानी सुना रहे हैं।
Asianet News Hindi | Published : Feb 22, 2020 5:25 AM IST / Updated: Feb 22 2020, 11:10 AM IST
इनकी कहानी हर उस शख़्स को प्रेरणा देगी, जो अपने सपना साकार करने में जी जान से जुटे हैं। सूरज बचपन में अपने दादा-दादी के साथ यूपी के जौनपुर में रहते थे। यहां उनका बचपन दादा-दादी से देशभक्ति और मानवता की कहानियां सुनते हुए गुज़रा। जब वो 10 साल के थे, तब उनके पिता कानपुर के जाजमऊ में शिफ़्ट हो गए। यहां उनका दाखिला एक हिंदी-मीडियम स्कूल में हुआ।
सूरज पढ़ने लिखने के साथ ही खेल, कविता लिखना और पेंटिंग करने में भी अव्वल थे। उन्होंने साल 2000 में तत्कालीन राष्ट्रपति के. आर. नारायण के हाथों क्रिएटिव राइटिंग और कविता के लिए बाल श्री अवॉर्ड भी ग्रहण किया था। सूरज ने कानपुर के सरस्वती विद्या मंदिर, डिफेंस कॉलोनी से 75 प्रतिशत अंकों के साथ 10वीं की परीक्षा पास की थी। उन्होंने यूपी बोर्ड से 12वीं की परीक्षा 85 फ़ीसदी अंकों से पास की थी। 12वीं के बाद उन्होंने कानपुर से ही ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन किया था।
सूरज ने मीडिया से बातचीत में बताया कि उनके घर में पिता ही अकेले कमाने वाले शख़्स थे इसलिए ग्रेजुएशन के बाद उन्होंने एक कॉल सेंटर में नौकरी करनी शुरू कर दी। यहां पर वो 7 राउंड में पास होने के बाद अंतिम टेस्ट में फ़ेल हो गए। उन्होंने कंपनी के मैनेजर से कुछ और समय मांगा और जी जान से इंग्लिश बोलने के अपने एक्सेंट में सुधार किया। कॉल सेंटर से भी उन्हें धक्के मारकर बाहर फेंका जाने लगा था। कड़ी मेहनत की फिर टेस्ट में सूरज अच्छे नंबरों से पास हुए।
दो साल तक कॉल सेंटर में नौकरी की। इंटरव्यू में सूरज ने बताया कि नौकरी के साथ सिविल सर्विस की तैयारी करना काफी मुश्किल हो गया था। हालांकि, मेरे लिए नौकरी छोड़ना आसान नहीं था फिर भी नौकरी छोड़ना ही सही समझा। अब वो सिविल सर्विस की तैयारी करने लगे लेकिन 6 महीने में ही उनके पैसे ख़त्म हो गए। तब उन्होंने 8 बैंक में पीओ की पोस्ट के लिए परीक्षा दी। सूरज सभी में उत्तीर्ण हुए और स्टेट बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र में नौकरी करनी शुरू कर दी।
सूरज ने साल 2008 से 2012 तक बैंक में पीओ की नौकरी की। साल 2012 में एसएससी सीजीएल की परीक्षा में उनका चयन हो गया था। फिर उन्होंने कस्टम और एक्साइज़ डिपार्टमेंट में इंस्पेक्टर की नौकरी जॉइन कर ली। हालांकि, उन्होंने सिविल सर्विस का सपना नहीं छोड़ा। इसके लिए तैयारी करना जारी रखा उनको आईपीएस अफसर की वर्दी पहनने का जुनून था।
सूरज के मुताबिक पहले अटेंप्ट में उनका सलेक्शन नहीं हुआ। इसके बाद उन्होंने दोबारा मेहनत की और दूसरा अटेंप्ट दिया। दूसरे अटेंप्ट में उन्होंने इंटरव्यू तक का सफ़र तय किया। तीसरे अटेंप्ट में उन्हें सफ़लता हासिल हुई। उनकी ऑल इंडिया रैंक 189 थी। 30 साल की उम्र में जाकर उनका सपना पूरा हुआ।
इसके बाद इंडियन पुलिस एकेडमी में उनकी ट्रेनिंग हुई। सूरज ने अपनी कमांडो ट्रेनिंग अल्फ़ा ग्रेड के साथ पूरी की। सूरज अपनी सफ़लता का क्रेडिट अपने परिवार को देते हैं। उनका कहना है कि उनके माता-पिता और पत्नी सभी उनके जीवन के हर उतार-चढाव में उनके साथ रहे। ट्रेनिंग के 18 महीने बाद उन्हें रायपुर का एसपी नियुक्त किया गया था।
रायपुर में उनके काम को देखते हुए उन्हें प्रमोट करते हुए उनका ट्रांस्फर दंतेवाड़ा कर दिया गया। दंतेवाड़ा एक नक्सल प्रभावित इलाका है। सूरज ने बताया कि पिछले 5 महीने में अपने सीनियर्स के सहयोग के साथ उन्होंने यहां के हालात काफ़ी सुधार दिए हैं। उन्होंने कई नक्सलवादियों को पकड़ा है और उनसे करीब 1 करोड़ रुपये भी बरामद किए थे।
वो इस क्षेत्र में शांति बनाए रखने के लिए Soft And Hard पुलिस टेक्नीक का सहारा लेते हैं। उन्होंने यहां लोगों को जागरुक करने के लिए एक फ़िल्म का भी निर्माण किया है। इसका नाम है नई सुबह का सूरज।
इसके अलावा वो कविता और वीडियो बनाकर भी लोगों नक्सलियों से होने वाले ख़तरों के प्रति जागरुक करते हैं। उनका कहना है कि इंडियन पुलिस सर्विस कोई नौकरी नहीं है, ये एक सेवा है। सूरज की कहानी बताती है कि कोई भी सपना इतना बड़ा नहीं होता कि उसे पूरा न किया जा सके। यूपीएससी की तैयारी करने वाले और पुलिस में जाने का सपना देखने वालों के लिए इससे सबक लेना चाहिए।