धमाके में उड़ गए दोनों हाथ, कलाई से निकली रह गई एक हड्डी, उसी से दिया Exam और बन गई डॉक्टर
बीकानेर (राजस्थान). कहते हैं जज्बा और जुनून हो तो इंसान किसी भी परिस्थिति में कामयाबी हासिल कर ही लेता है। ऐसी प्रेरणादायक कहानी राजस्थान की रहने वाली अंतरराष्ट्रीय मोटिवेशनल स्पीकर डॉ. मालविका अय्यर की। जब मालविका 13 साल की थी तो एक ग्रेनेड ब्लास्ट में उन्होंने अपने दोनों हाथों के अगले हिस्से गंवा दिए थे। इसके बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। आज उनके हौसले और कामयाबी की चर्चा हर कोई कर रहा है। बता दें, मंगलवार को उनका जन्मदिन था। इस मौके पर उन्होंने ट्विटर पर उस स्पीच को शेयर किया है जिसे उन्होंने संयुक्त राष्ट्र (यूएन) में दिया था।
Asianet News Hindi | Published : Feb 20, 2020 12:27 PM IST / Updated: Feb 20 2020, 07:41 PM IST
ट्विटर पर शेयर करते हुए मालविका ने लिखा- जब मैंने अपने दोनों खो दिया, उस दौरान सर्जरी करते हुए डॉक्टर ने एक गलती कर दी थी। स्टीचिंग करते समय एक हाथ की हड्डी बाहर ही निकली रह गई। अब हाथ का वो हिस्सा अगर कहीं छू जाता तो मुझे काफी दर्द होता। लेकिन मैंने जिंदगी में सकारात्मक पहलू को देखा और इसी हड्डी को अंगुली के तौर पर इस्तेमाल किया।। इसी हाथ से मैंने अपनी पूरी पीएचडी थीसिस टाइप की। उन्होंने लिखा-मैंने छोटी-छोटी चीजों में बड़ी-बड़ी खुशी को देखना शुरू किया। देखते ही देखते मेरी जिंदगी में बदलाव आना शुरू हो गया और मैं तनाव में ना रहकर खुश रहने लगी। इसी तरह आपकी लाइफ में अगर कोई परेशानी आती हो तो आप उदास ना हों, बल्लि उसी में अपनी कामयाबी को तलाशते रहें। जैसे मैंने अपनी जिंदगी में किया है। मालविका अय्यर को उनके इस ट्वीट पर हजारों लाइक और कमेंट्स मिले हैं। एक यूजर ने लिखा, ‘आप एक अविश्वसनीय व्यक्तित्व हैं।
मोटिवेशनल स्पीकर मालविका का जन्म तो तमिलनाडु में हुआ है लेकिन उनका बचपन राजस्थान के बीकानेर में बीता है। उनके पिता वॉटर वर्क्स डिपार्टमेंट में काम करते थे और उनकी जॉब में ट्रांसफर होता रहता था। इसलिए वह राजस्थान में रहने लगीं।
मालविका ने एक इंटव्यू में बताया था, मैं बचपन में बहुत शरारती थी, लेकिन एक हादसे ने मेरी पूरी जिंदगी बदल कर रख दी। साल 2002 में जब वह 13 साल की थी, उस दौरान उन्हें खेलते समय एक एक ग्रेनेड मिला, जिसे वह अपने साथ लेकर आ गईं। उन्होंने बताया था कि जब वो घर में कुछ फोड़ रहीं थी उस दौरान उनको एक हथौड़ी की जरूरत थी। जब उनको कुछ नहीं दिखा तो उन्होंने ग्रेनेड से किसी वस्तू को फोड़ने लगी। कुछ देर बाद वह फट गया और उनके दोनों हाथ खराब हो गए।
उन्होंने बताया, कई दिनों तक उनका इलाज चला, इसके बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और बिना हाथों के ही पढ़ाई का जज्बा कायम रखा। इसके चलते उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में ऑनर्स की डिग्री ली। इसके बाद पीएचडी पूरी की और अब वह मालविका से डॉ. मालविका हो गईं। आज आलम यह है कि उनको लोग मोटिवेशनल स्पीच देने के लिए बुलाते हैं।
मालविका दिव्यांगों के लिए काम करने के अलावा सामाजिक सरोकारों में भी रूचि रखती हैं। इसके लिए उन्हें तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम से मिलने के लिए राष्ट्रपति भवन की ओर से आमंत्रण भी मिला था। उनको आगे बढ़ना था, इसलिए उन्होंने लिखने के लिए एक असिस्टेंट की मदद भी ली।
मालविका को 8 मार्च 2018 को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया।
ये डिसएबिलिटी एक्टीविस्ट और वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की ग्लोबल शेपर हैं। कई विदेशी संस्थाओं से उन्हें अपने यहां मोटिवेशनल स्पीच देने के लिए बुलाया जाता है।