सिर्फ मुसलमान ही नहीं, हिंदू भी हैं रोहिंग्या, 2 साल पहले इस टापू के कारण ग्लोबल मीडिया की चर्चा बने थे

वर्ल्ड न्यूज. रोहिंग्या दो कारणों से फिर से मीडिया की खबरों में हैं। पहला-भारत ने उन खबरों को खारिज किया है, जिसमें कहा जा रहा था कि सरकार रोहिंग्या को EWS फ्लैट बनाकर देगी। दूसरा-बांग्लादेश के कॉक्स बाजार में रोहिंग्या का सबसे बड़ा शरणार्थी शिविर(refugee camp) है। इस कैम्प में रहने वाले रोहिंग्या मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों का सामना कर रहे है। उन्हें इससे उबारने यूनाइटेड नेशनल पॉपुलेशन फंड(UNFPA)  अगले 2 वर्षों के लिए एक प्रोजेक्ट शुरू कर रहा है। इस पर करीब $1.38 मिलियन का खर्च किया जाएगा। आमतौर पर रोहिंग्या को मुसलमान ही माना जाता है। लेकिन इनमें हिंदू भी हैं। ये रोहिंग्या भाषा बोलते हैं। यूनाइटेड नेशंज इन्हें दुनिया का सबसे उत्पीड़ित अल्पसंख्यक मानती है। बता दें कि 1982 से म्यांमार में रोहिंग्या को नागरिकता देना बंद कर दिया है। जबकि म्यांमार में रोहिंग्या का इतिहास 8वीं सदी से माना जाता है। 2020 में बांग्लादेश ने रोहिंग्या को एक एकांत टापू- भासन चार में शिफ्ट करना शुरू किया था। तब इसकी ग्लोबल चर्चा हुई थी। पढ़िए रोहिंग्या से जुड़े कुछ फैक्ट्स...

Amitabh Budholiya | Published : Aug 18, 2022 4:01 AM IST / Updated: Aug 18 2022, 09:32 AM IST

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सिर्फ मुसलमान ही नहीं, हिंदू भी हैं रोहिंग्या, 2 साल पहले इस टापू के कारण ग्लोबल मीडिया की चर्चा बने थे

रोहिंग्या शरणार्थियों को कोई भी देश जगह देने को तैयार नहीं है। 1948 में बर्मा (अब म्यांमार) को अंग्रेजों से आजादी दिलाने में रोहिंग्या मुसलमानों ने बड़ा योगदान माना जाता रहा है। हालांकि1960 के बाद से इनकी प्रताड़ना का दौर शुरू हुआ। म्यांमार बौद्ध बाहुल्य देश है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार 2016-17 से पहले म्यांमार में करीब 8 लाख रोहिंग्या थे।

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2012 में रोहिंग्या के खिलाफ म्यांमार में हिंसा की बड़ी शुरुआत हुई। रोहिंग्या ने कुछ सुरक्षाकर्मियों की हत्या कर दी थी। बौद्धों के खिलाफ दंगे भड़काए थे। इसके बाद म्यांमार सरकार ने रोहिंग्या के खिलाफ कड़े एक्शन लिए। म्यांमार से खदेड़े गए रोहिंग्या बांग्लादेश, पाकिस्तान, सउदी अरब, थाइलैंड, मलेशिया, इंडोनेशिया, नेपाल और भारत में अवैध रूप से रह रहे हैं। 
 

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यह मामला 2020 में दुनियाभर की मीडिया की खबरों में आया था, जब मानवाधिकार आयोगों की आपत्ति के बाद भी बांग्लादेश ने 1776 रोहिंग्या शरणार्थियों को 'एकांत' द्वीप पर शिफ्ट कर दिया है। बांग्लादेश की नौसेना चटगांव बंदरगाह से 5 जहाजों में रोहिंग्या शरणार्थियों को भरकर भासन चार द्वीप छोड़ आई। आरोप लगा था कि बांग्लादेश ने इन रोहिंग्याओं को आइलैंड में मरने के लिए छोड़ दिया है। 

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तब बांग्लादेश के प्रधानमंत्री कार्यालय ने कहा था कि 825 करोड़ रुपए खर्च करके 20 साल पुराने भासन चार द्वीप को रेनोवेट किया गया है। इस जगह पर करीब एक लाख रोहिंग्या शरणार्थियों को बसाया जा रहा है। बांग्लादेश की आबादी 16.15 करोड़ है। लेकिन यहां के कॉक्स बाजार जिले में करीब 8 लाख से ज्यादा रोहिंग्या शरणार्थी रह रहे हैं।

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कहा जाता है कि 1400 ई के आसपास रोहिंग्या बर्मा(म्यांमार) के ऐतिहासिक प्रांत अराकान प्रांत(अब रखाइन राज्य) में आकर बसे थे। रखाइन प्रांत के गांव का नाम रोहिंग है। इसी गांव के आधार पर इन मुसलमानों को रोहिंग्या कहा जाने लगा। 1430 में अराकान के बौद्ध राजा नारामीखला(बर्मी भाषा में मिन सा मुन) ने इन्हें अपने दरबार में नौकरी दी।

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1982 में जब बर्मा में राष्ट्रीय कानून बना, तो रोहिंग्या को जगह नहीं दी गई। अब इन्हें म्यांमार से खदेड़ा जा रहा है। सबसे अधिक रोहिंग्या बांग्लादेश में हैं। ये यहां के लिए भी चिंता का विषय हैं।

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