1996 में राजशाही के खिलाफ क्रांति में मारे गए थे 13000 नेपाली, अब क्यों प्रचंड को डरा रहा 'माओ' शब्द

नेपाल में चल रहे राजनीतिक घटनाक्रम के बीच नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी(माओवादी सेंटर) के प्रमुख पुष्प कमल दहल प्रचंड ने पार्टी के नाम के आगे से 'माओवादी सेंटर' शब्द हटाने का प्रस्ताव रखा है। इसके पीछे तर्क दिया जा रहा है कि माओ को पसंद नहीं करने वाले कम्युनिस्ट विचारधारा के लोगों को साथ लाना है। आखिर ये 'माओ' शब्द इतना डरावना क्यों हैं? आपको बता दें कि एक चीनी क्रांतिकारी, राजनीतिक विचारक और कम्युनिस्ट थे माओ-त्से-सुंग। इन्हीं के नेतृत्व में चीनी क्रांति सफल हुई थी। माओ ने ही जनवादी गणतंत्र चीन की 1949 में स्थापना की थी। माओ ने अपने अंतिम समय 1973 तक चीन का नेतृत्व किया। आइए जानते हैं माओ की कहानी...

Asianet News Hindi | Published : Mar 16, 2021 4:28 AM IST / Updated: Mar 16 2021, 09:59 AM IST

16
1996 में राजशाही के खिलाफ क्रांति में मारे गए थे 13000 नेपाली, अब क्यों प्रचंड को डरा रहा 'माओ' शब्द

नेपाल पर चीन का गहरा प्रभाव माना जाता है। लेकिन नेपाल का माओवाद क्या चीनी माओ से प्रेरित है? इसे लेकर चर्चित पत्रकार और विदेश मामलों के जानकार वेद प्रताप वेदिक ने एक लेख लिखा था। उनके अनुसार नेपाल के माओवादियों का चीन के माओ से कुछ संबंध नहीं है। ये पेरू के शाइनिंगपाथ आंदोलन से प्रेरित हैं। शाइनिंगपाथ की नकल पर नेपाली माओवादी आंदोलन को प्रचंडपाथ भी कहते हैं। माओवादियों के नेता पुष्पकमल दहल का उपनाम भी प्रचंड है। शाइनिंग पाथ पेरू की एक कम्युनिस्ट पार्टी है। इसे शाइनिंग पाथ के नाम से भी जाता है। यह एक आतंकी संगठन भी रहा है।

26

जानते हैं पुष्पकमल दहल के बारे में
इनका जन्म 11 दिसंबर, 1954 को हुआ था। ये नेपाल के प्रधानमंत्री भी रहे हैं। वे नेपाल की कम्युनिष्ट पार्टी (माओवादी सेंटर) के सशस्त्र अंग और जनमुक्ति सेना के शीर्ष नेता है। इन्हें नेपाल की राजनीति में 13 फरवरी, 1996 में हुए नेपाली जनयुद्ध के लिए जाना जाता है। इसमें 13000 नेपालियों की हत्या हुइ थी।

36

दहल जब अंडरग्राउंड थे, तब उन्होंने खुद को प्रचंड के नाम से प्रचारित किया था। नेपाली भाषा और अन्य हिंद-आर्य भाषा में प्रचंड के मायने भयंकर होता है। प्रचंड 1990 में नेपाल में लोकतंत्र स्थापित होने के बाद भी लंबे समय तक अंडरग्राउंड रहे। इन्हें दुनियाभर में पहचान तब मिली, जब 1996 में वे अपनी पार्टी के सशस्त्र विंग के प्रमुख बने।

46

कहने को माओ एक कवि, दार्शनिक, दूरदर्शी और कुशल प्रशासक थे, लेकिन इनके खून में क्रांति उछाल मारती थी। इनका जन्म 26 दिसंबर, 1893 में चीन के हूनान प्रांत के शाओशान कस्बे में हुआ था। इनके पिता गरीब किसान थे, जो अपने मेहनत से गेहूं के व्यापारी बन गए। 13 साल की उम में माओ ने पढ़ाई छोड़कर पिता के साथ खेत में काम करना शुरू कर दिया था। इन्होंने चीन में राजशाही को खत्म करने क्रांतिकारियों के साथ मिलकर लड़ाई लड़ी थी। इन्होंने च्यांग काई शेक की फौज को पराजित करके 1949 में चीन में कम्युनिस्ट शासन स्थापित किया था।

56

माओवादी चरमपंथी और अतिवादी बुद्धिजीवी वर्ग है। माओवादी दो सिद्धांतों पर काम करते हैं। पहला-राजनीतिक सत्ता बंदूक की नली से निकलती है। दूसरा-राजनीति रक्तपात से दूर युद्ध है और युद्ध रक्तपात युक्त राजनीति।
 

66

जहां तक भारत की बात है, तो भारत में माओवाद यानी नक्सलवाद का उदय 1960-70 के दशक में नक्सलबाड़ी आंदोलन के रूप में सामने आया था। इसका प्रभाव इस समय सबसे अधिक छत्तीसगढ़ देखने को मिलता है। बाकी राज्यों जैसे मप्र, झारखंड, सीमावर्ती महाराष्ट्र आदि में उतना असरकारक नहीं रहा।
 

Share this Photo Gallery
click me!
Recommended Photos