हाल ही में हुई एक रिसर्च से पता चला है कि पिछले 46 सालों में पुरुषों के शुक्राणुओं की संख्या में 50 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई है, खासकर 2000 के बाद से इसमें गिरावट की दर में तेजी आई है।
हेल्थ डेस्क : किसी भी महिला के गर्भवती होने के लिए महिला के अंडाशय के साथ ही पुरुष के स्पर्म की क्वालिटी और उसकी क्वांटिटी काफी महत्वपूर्ण होती है। जिसके आपस में मिलने से गर्भधारण होता है। लेकिन हाल ही में चौंकाने वाला खुलासा एक रिसर्च में हुआ है। जिसमें कहा गया है कि पिछले कई सालों में पुरुषों के स्पर्म काउंट में 50 फीसदी की कमी देखी गई है। इस रिसर्च में भारत समेत कई देशों को शामिल किया गया था। जिसमें चौंकाने वाला खुलासा यह हुआ है कि भारत में इसका प्रभाव ज्यादा है और यहां स्पर्म काउंट में तेजी से गिरावट देखने को मिली है। आइए आपको बताते कहा हुआ ये अध्ययन और क्या कहती है यह रिसर्च..
कहा हुई रिसर्च
ह्यूमन रिप्रोडक्शन अपडेट जर्नल में प्रकाशित एक नई रिसर्च के मुताबिक कुछ समय से शुक्राणुओं की संख्या विश्व स्तर पर और भारत में महत्वपूर्ण रूप से गिर रही है। इस रिसर्च में 53 देशों के डेटा का इस्तेमाल किया गया। इसमें अतिरिक्त सात साल का डेटा (2011-2018) शामिल है। इसमें विशेष रूप से दक्षिण भारत, अमेरिका, एशिया और अफ्रीका जैसे देश शामिल थे। चिंताजनक बात यह है कि पिछले 46 वर्षों में शुक्राणुओं की संख्या में 50 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई है और विशेष रूप से 2000 के बाद से पुरुषों के स्पर्म काउंट में तेजी से गिरावट आई।
भारत में बाजी खतरे की घंटी
रिसर्च में शामिल हिब्रू यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर हेगाई लेविन ने रिसर्च के बारे में बात करते हुए कहा कि भारत में तेजी से पुरुषों के स्पर्म काउंट में गिरावट देखने को मिली है। हमें यहां से अच्छा डेटा मिला, जिसकी रिसर्च में हमने पाया कि भारत में स्पर्म काउंट काफी कम हुआ है। इसका मुख्य कारण खराब जीवनशैली और वातावरण में मौजूद खतरनाक केमिकल है, जो स्पर्म क्वालिटी को प्रभावित कर रहे हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि भारत में एक अलग से रिसर्च भी की जानी चाहिए, ताकि यहां पर पुरुषों के स्पर्म काउंट के कम होने के कारण को पता लगाया जा सके।
2000 के बाद हुआ बदलाव
46 साल की इस रिपोर्ट में देखें तो 1973 से 2018 के आंकड़ों से इस बात का खुलासा हुआ है कि यहां पुरुषों के शुक्राणु की संख्या में हर साल औसतन 1.2% की गिरावट आई है। वहीं 2000 के बाद के आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो यह प्रतिशत 2.6 से अधिक देखा गया है। इसका एक कारण बिस्फेनोल्स और डाइऑक्सिन जैसे रसायनों को कॉकटेल भी है, जो हार्मोन के साथ शुक्राणु की गुणवत्ता को भी प्रभावित करते हैं। इन रसायनों का औसत से 17 गुना से ज्यादा है।
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