कोरोना आपके बच्चे को दे सकता है स्ट्रेस की बीमारी, माता-पिता बरते सावधानी

कोरोना बच्चों को भी अपने चपेट में ले लिया है। बच्चों पर अब इस किलर वायरस का साइड इफेक्ट देखने को मिल रहा है। जो माता-पिता के लिए अलर्मिंग हैं। आइए जानते हैं कोरोना बच्चों में कैसे तनाव को छोड़कर जा रहा है।

हेल्थ डेस्क. कोरोना महामारी ने हमारे सोचने, महसूस करने और व्यवहार करने के तरीके को बदल दिया है। छोटे बच्चे मूडी और तनाव के प्रति अधिक संवेदनशील हो गए हैं। अमेरिका स्थित फ्लोरिडा स्टेट यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ मेडिसिन के रिसर्च में इस बात का खुलासा हुआ है। नए आंकड़ों के मुताबिक जिन युवाओं ने ग्लोबल हेल्थ इमरजेंसी देखा है उनमें तनाव का खतरा अधिक है।

वैज्ञानिकों ने माता-पिता के लिए चेतावनी जारी की है। उनका कहना है कि पैरेंट्स अपने बच्चों में कोविड महामारी के बाद लंबे वक्त तक उसका साइड इफेक्ट का अनुभव कर सकते हैं। जिन युवाओं ने वैश्विक स्वास्थ्य आपातकाल देखा है, उनमें तनाव का खतरा अधिक होता है।स्टेट यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ मेडिसिन का मानना ​​​​है कि महामारी ने हमारे सोचने, महसूस करने और व्यवहार करने के तरीके को बदल दिया।

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पीएलओएस वन में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक युवा ज्यादा विक्षिप्त, कम सहयोगी और तनाव से भरे हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि व्यक्तित्व में जिन परिवर्तनों की उन्होंने पहचान की है वे इस बात के बराबर थे कि एक व्यक्ति आमतौर पर दस साल के समय में कैसे बदलेगा। वहीं, छोटे बच्चे मूडी और तनाव ग्रसित हो गए हैं। 

उन्होंने बताया कि महामारी की शुरुआत में यह बदलाव सीमित था। लेकिन साल 2021 में यह बदलाव तेजी से हुआ है। यूके सरकार के आंकड़ों में पहले पाया गया था कि महामारी से पहले युवा लोगों में इमोशनल इश्यूज और स्ट्रेस का लेबल कम था।

फ्लोरिडियन मेडिक्स का डेटा 18 से 109 वर्ष की आयु के 7,109 लोगों के डेटा की जांच किया।  उन्होंने 18000 से अधिक लोगों के व्यक्तित्व के अलग-अलग पहलुओं का मूल्यांकन किया। इसके बाद उन्होंने कोरोना से पहले मई 2014 और फरवरी 2020 के बीच और महामारी के शुरुआत और इसके खत्म होने यानी 2021 के अंत और 2022 की शुरुआत में ये कैसे अलग थे इसपर रिसर्च किया।

रिसर्च में युवा व्यस्कों में एक बड़ा बदलाव देखा गया। जबकि बुजुर्गों में कोई अहम बदलाव नहीं देखे गए। जिसके बाद शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला कि तनावपूर्ण घटनाएं व्यक्तिगत विकास की दिशा को बदल सकती है, खासकर युवाओं में। वैज्ञानिकों ने सभी को वैक्सीन लगाने और जो लगा चुके हैं उन्हें बूस्टर डोज लगाने की सलाह दिया है।

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