क्या होता है Postpartum Depression, कैसे ये मातृत्व को करता है प्रभावित, यहां जानें सबकुछ

मां बनना एक सुखद एहसास होता है। लेकिन एक महिला के लिए यह काफी चुनौतीपूर्ण वक्त होता है। कई महिलाएं बच्चे को जन्म देने के बाद पोस्टमार्टम डिप्रेशन की शिकार हो जाती हैं। एक्ट्रेस इलियाना डिक्रूज बेबी डिलीवरी के बाद डिप्रेशन से जूझ रही हैं।

हेल्थ डेस्क. मां बनना एक सुखद एहसास है लेकिन यह चुनौतियों के साथ आता है। फिजिकल परेशानी के साथ-साथ मेंटल हेल्थ भी इससे प्रभावित हो सकता है। हाल ही में बॉलीवुड एक्ट्रेस इलियाना डिक्रूज ने बताया कि वो बेबी डिलीवरी के बाद से डिप्रेशन से जूझ रही हैं। वो पोस्टमार्टम डिप्रेशन (Postpartum Depression) के बारे में खुलकर बात की। उन्होंने बताया कि इस मुश्किल वक्त में उनके पार्टनर का सपोर्ट मिल रहा है।

इलियाना बताती है कि बच्चा होने के बाद आप गहरे इमोशन्स से गुजरते हैं। हर वक्त आपको गिल्ट महसूस होता है कि आप बच्चे कि लिए अच्छा नहीं कर पा रही है। मुझे याद है कि मैं अपने कमरे में थी और रोने लगी। मेरे पार्टनर ने पूछा कि क्या हुआ तो मैंने उससे कहा कि मुझे पता है कि यह वाकई में बेवकूफी भरा लगता है लेकिन मेरा बेटा दूसरे कमरे में सो रहा है और मुझे उसकी याद आ रही है। ये कहानी सिर्फ इलियाना की नहीं है, बल्कि लाखों मांए पोस्टमार्टम डिप्रेशन से गुजरती हैं।

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क्या होता है पोस्टमार्टम डिप्रेशन

पोस्टमार्टम डिप्रेशन (पीपीडी) शारीरिक, इमोशनल और लाइफस्टाइल कारकों के मिलने से शुरू हो सकता है। यह नई माताओं के लिए चुनौतियां पैदा करता है। हार्मोनल उतार-चढ़ाव भी इसकी एक वजह होती है। बच्चे के जन्म के बाद एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन के स्तर में अचानक गिरावट न्यूरोट्रांसमीटर को प्रभावित कर सकती है, जिससे मूड में बदलाव और अवसादग्रस्तता के लक्षण पैदा हो सकते हैं। नवजात शिशु की देखभाल में

नींद की कमी भी एक कारण हो सकता है। नींद की कमी हार्मोनल संतुलन को बाधित कर सकती है और थकावट और भारीपन की भावनाओं को बढ़ा सकती है।

पोस्टमार्टम डिप्रेशन के लक्षण

लगातारा उदास और निराश रहना

भूख में बदलाव

बच्चे के साथ संबंध बनाने में कठिनाई

अचानक रोने लगना या गुस्सा होना

पोस्टमार्टम डिप्रेशन के साथ बहुत सारे संघर्ष पैदा होते हैं। जैसे बच्चे की देखभाल, घर के काम और काम जैसी कई ज़िम्मेदारियां निभाना, जिससे अत्यधिक तनाव की भावना पैदा हो सकती है। इसके परिणामस्वरूप उनके बच्चों की सुरक्षा, भलाई और उनकी माता-पिता की भूमिका को पूरा करने की क्षमता के संबंध में अत्यधिक चिंता और भय का अनुभव हो सकता है, जिससे आत्म-संदेह पैदा हो सकता है।

कैसे पोस्टमार्टम डिप्रेशन पर कंट्रोल करें

मदद लें: फैमिली, दोस्त या अन्य मां के साथ वक्त गुजारे और उनसे इमोशनल सपोर्ट लें। पेरेंटिंग ग्रुप में शामिल होना या थेरेपी लेना भी फायदेमंद हो सकता है।

आत्म-देखभाल: व्यायाम, शौक, पढ़ना, या प्रकृति में समय बिताने जैसी एक्टिविटी में शामिल हों। खुद पर फोकस करें।

सीमा निर्धारित करें: बर्नआउट को रोकने के लिए सीमा बनाएं। जरूरी होने पर ना कहना भी सीखें। बच्चे की देखभाल की जिम्मेदारी फैमिली और पार्टनर को भी सौंपें।

नींद को प्राथमिकता दें: मानसिक स्वास्थ्य के लिए पर्याप्त आराम करना महत्वपूर्ण है। बच्चे का साथ आप भी सोएं। रात में बच्चे की देखभाल के लिए फैमिली से भी मदद ले सकती हैं।

गिल्ट को दूर करें: खुद के प्रति दयालु बनें। आप स्वीकार करें कि गलतियां करना ठीक है।बच्चे की देखभाल में कोई कमी रह गई तो भी खुद को दोष नहीं दें। ये स्वीकार करें कि आप जितना कर रही है वो बहुत है।

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