किसान आंदोलन का 22वां दिन: SC ने कहा प्रदर्शन किसानों का हक, केवल उनके तरीके पर विचार संभव

कृषि काननों के मसले पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आज हम जो पहली और एकमात्र चीज तय करेंगे, वो किसानों के विरोध प्रदर्शन और नागरिकों के मौलिक अधिकारों को लेकर है। कानूनों की वैधता का सवाल इंतजार कर सकता है।

Asianet News Hindi | Published : Dec 17, 2020 2:26 AM IST / Updated: Dec 17 2020, 01:34 PM IST

नई दिल्ली.  किसानों के धरना-प्रदर्शन का 22वां दिन है। किसानों को हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई हुई। इस मसले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आज हम जो पहली और एकमात्र चीज तय करेंगे, वो किसानों के विरोध प्रदर्शन और नागरिकों के मौलिक अधिकारों को लेकर है। कानूनों की वैधता का सवाल इंतजार कर सकता है। सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस एसए बोबडे ने कहा कि किसानों को प्रदर्शन का हक है, लेकिन ये कैसे हो इसपर चर्चा हो सकती है। कोर्ट ने कहा कि हम प्रदर्शन के अधिकार में कटौती नहीं कर सकते हैं। केवल एक चीज जिस पर हम गौर कर सकते हैं, वह यह है कि इससे किसी के जीवन को नुकसान नहीं होना चाहिए। 

गौरतलब है कि दिल्ली की सीमाओं पर डटे किसानों को हटाने के लिए दायर की गई याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई थी। जिस दौरान कोर्ट ने संकेत दिया था कि वह एक कमेटी बना सकती है, जिसमें किसान संगठनों के लोग भी होंगे ताकि गतिरोध टूटे और किसानों का धरना समाप्त हो। ये किसान तीन कृषि कानूनों को समाप्त कराने की मांग को लेकर राजधानी की सीमाओं पर पिछले लगभग 21 दिनों से धरना दे रहे हैं। बुधवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, सरकार और किसानों की अब तक हुई बातचीत से समाधान निकलता नहीं दिख रहा है। इसे नाकाम ही होना था। हम दोनों पक्षों की एक कमेटी बना देते हैं, जो आपस में बातचीत कर गतिरोध को समाप्त करेगी। शीर्ष कोर्ट ने दाखिल याचिकाओं पर केंद्र व अन्य को नोटिस जारी कर जवाब भी मांगा था।

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UP की खापें आज आंदोलन में शामिल होंगी
उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में कई खापों ने किसान आंदोलन को समर्थन दिया है। ये खापें आज दिल्ली की सीमाओं पर विरोध प्रदर्शन में शामिल होंगी। गाजीपुर बॉर्डर पर आंदोलन में शामिल एक किसान ने कहा कि कड़ाके की ठंड के बावजूद हम यहां डटे हैं। मांगे पूरी होने तक यहां से नहीं हटेंगे, भले ही बारिश आ जाए। दूसरे किसान ने कहा कि अलाव और कंबलों के सहारे सर्दी से बचाव कर रहे हैं। यहां सभी सुविधाएं बेहतर हैं, बस वॉशरूम गंदे हैं।

कोर्ट ने कहा किसानों को भी शामिल करें 
सीजेआई एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी रामासुब्रमण्यन की पीठ ने केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा, आपकी (सरकार) बातचीत बेनतीजा रही है, आगे भी इसके विफल रहने के ही आसार हैं। आप कह रहे हैं कि बातचीत को तैयार हैं। जवाब में मेहता ने कहा, हां हम बात करेंगे। इस पर पीठ ने कहा, आप किसान संगठनों के नाम बताइए जिन्होंने सड़क जाम कर रखा है। हम एक संयुक्त कमेटी बना देते हैं, जिसमें सरकार और किसान संगठनों के प्रतिनिधि होंगे, यह कमेटी आपस में बातचीत कर इस गतिरोध को समाप्त करेगी। पीठ ने कहा, क्योंकि यह मामला अब राष्ट्रीय स्तर का होता दिख रहा है, आप इसमें देशभर के किसान संगठनों के प्रतिनिधियों को भी शामिल करें।

विवाद सुलझाने में दिल्ली की कोई भूमिका नहीं
सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार के वकील राहुल मेहरा ने कहा, किसान देश के हित में वहां जमे हैं और ठंड भी बढ़ गई है। इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, मेहरा ऐसे कह रहे हैं मानो वह किसानों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। इस पर पीठ ने दोनों वकील से बाहर जाकर इस तरह की बातें करने को कहा। साथ ही पीठ ने कहा, कृषि कानूनों को लेकर विवाद को सुलह कराने में दिल्ली सरकार की कोई भूमिका नहीं है।

इन संगठनों को नोटिस
पीठ ने याचिकाओं पर कुछ किसान संगठनों को भी नोटिस जारी किया है। इनमें भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू-राकेश टिकैत), बीकेयू-सिद्धपुर (जगजीत एस दल्लेवाल), बीकेयू-राजेवाल (बलबीर सिंह राजेवाल), बीकेयू-लाखोवाल (हरिंदर सिंह लाखोवाल), जम्हूरी किसान सभा (कुलवंत सिंह संधू), बीकेयू दकौंदा (बूटा सिंह बुर्जगिल), बीकेयू-दोआबा (मंजीत सिंह राय) और कुल हिंद किसान फेडरेशन (प्रेम सिंह भांगू) शामिल हैं।

किसानों ने ठुकराया कोर्ट का सुझाव कहा-नई कमेटी समाधान नहीं
आंदोलन कर रहे किसान संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट के सुझाव को भी ठुकराते हुए कहा, नई कमेटी बनाना समाधान नहीं है। सरकार पहले तीनों कानून वापस ले, उसके बाद ही बातचीत होगी।
उन्होंने कहा, सरकार को संसद में कानून पास कराने से पहले किसानों की कमेटी बनानी चाहिए थी, जो इस पर चर्चा करती। तब तो कोई चर्चा नहीं की। आंदोलन में शामिल संगठनों में से एक राष्ट्रीय किसान मजदूर सभा के नेता अभिमन्यु कोहार ने कहा, हम सरकार के ऐसे ही प्रस्ताव को पहले भी नकार चुके हैं।

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