5 स्पेशल वीडियोः भोपाल गैस त्रासदी के 35 साल, सुबह लोग उठे तो हर तरफ था मौत का मंजर...

3 दिसंबर 1984 की सुबह भोपाल वासियों के लिए मौत का पैगाम लेकर आई थी। कीटनाशक बनाने वाली कंपनी यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड से अचानक जहरीली गैस का रिसाव होने लगा। रात में सो रहे अधिकतर लोग इस गैस की चपेट में आ गए। डॉक्टरों के पास इस आपदा से निपटने का कोई प्लान नहीं था

Asianet News Hindi | Published : Dec 2, 2019 3:52 PM IST

भोपाल. 3 दिसंबर 1984 की सुबह भोपाल वासियों के लिए मौत का पैगाम लेकर आई थी। कीटनाशक बनाने वाली कंपनी यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड से अचानक जहरीली गैस का रिसाव होने लगा। रात में सो रहे अधिकतर लोग इस गैस की चपेट में आ गए। डॉक्टरों के पास इस आपदा से निपटने का कोई प्लान नहीं था और शहर के हजारो लोग इस दुर्घटना में मारे गए थे। इस घटना को 35 साल हो चुके हैं, पर आज भी जहरीली गैस के घाव भोपाल के लोगों के अंदर ताजा हैं।  हम पांच वीडियो के जरिए भोपाल गैस त्रासदी के सभी पहलू आपके सामने लाने का प्रयास करेंगे। जिनमें विस्तार से गैस त्रासदी के कारण, आम लोगों पर दुर्घटना के प्रभाव और बाद में सरकार द्वारा की गई अनदेखी के बारे में चर्चा होगी। 

भोपाल गैस त्रासदीः एक परिचय

Latest Videos

1984 में 2 -3 दिसंबर की रात जब भोपाल सोया तो सब कुछ सामान्य था। पर 3 दिसंबर की सुबह अपने साथ मौत का पैगाम लेकर आई। अभी सुबह भी नहीं हुई थी कि कीटनाशक बनाने वाली  (UCIL’s) यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड कंपनी से जहरीली गैस निकलने लगी, जिसकी वजह से जहरीले बादलों ने पूरे भोपाल को घेर लिया। यह घटना बुरे सपने से भी भयंकर थी। जहरीली गैस ने पूरे शहर को अपने कब्जे में ले लिया और लोग सड़कों पर अस्त-व्यस्त होकर भाग रहे थे। किसी के समझ नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए। यहां न तो कोई खतरे की घंटी बजी थी और न ही भोपाल के लोगों के बास बचने का कोई प्लान था। यहां तक कि जब गैसे से पीड़ित लोग हॉस्पिटल पहुंचे तब डॉक्टरों तक को नहीं पता था कि पीड़ितों का इलाज कैसे करना है। क्योंकि डॉक्टरों को कोई आपातकालीन सूचना नहीं दी गई थी। सूर्योदय होने के बाद ही सभी को विनाश का आभास हुआ। इंसानों और जानवरों की लाशें सड़कों पर पड़ी हुई थी। पेड़ों की पत्तियां काली पड़ गई थी और हवा से जली मिर्ची की गंध आ रही थी। अनुमान लगाया गया कि इस घटना में लगभग 10 हजार लोग मारे गए थे और 30 हजार से अधिक लोग अपाहिज हो गए थे। इस वीडियो में हम भोपाल गैस त्रासदी के हर रहस्य पर बात करेंगे और समझने की कोशिश करेंगे कि भोपाल में वह रात कैसी बीती होगी।

लापरवाही और अनदेखी की नींव पर बना था जहरीला प्लांट

UCC 1924 में भारत आई और कोलकाता में बैटरी असेंबल करने का प्लांट खोला। 1983 तक पूरे भारत में कंपनी के केमिकल प्लांट मौजूद थे। उस समय भारत के कुल केमिकल उत्पादन का 50 फीसदी से अधिक हिस्सा UCC बनाती थी, जबकि किसी भी विदेशी कंपनी के लिए अधिकतम 40 फीसदी भागीदारी का नियम था। तकनीकी दिखावे की वजह से UCC को यह छूट मिली थी। 1966 में UCIL और भारत सरकार के बीच एक समझौता हुआ, जिसके तहत भारत में सेविन का उत्पादन शुरू किया जाना था और प्लांट मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में बनना था। इस लाइसेंस के अनुसार प्लांट में हर साल 5000 टन सेविन बनाया जा सकता था।  एडुआर्डो मुनोज़ को इस प्रोजेक्ट की जिम्मेदारी दी गई थी। एडुआर्डो मुनोज़ ने इस प्रोजेक्ट को लेकर कई सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा कि MIC की इतनी बड़ी मात्रा इलाके में तबाही ला सकती है और इसे एक बार में बनाने की बजाय धीरे-धीरे स्थापित करना चाहिए। मुनोज़ ने प्लांट की लोकेशन को लेकर भी सवाल खड़े किए। उनका कहना था कि रहवासी इलाके के इतने पास प्लांच नहीं होना चाहिए, पर UCIL काली ग्राउंड के 60 हेक्टेयर के प्लाट में यह फैक्ट्री बनाने पर अड़ गई। इस इलाके में आमतौर पर आसपास की झुग्गियों और रेलवे स्टेशन की तरफ हवा बहती है, ये सभी घनी जन्संख्या वाले इलाके हैं। यह कारण अपने आप में प्लांट को रिजेक्ट करने के लिए काफी था, पर UCC ने कभी यह जिक्र ही नहीं किया कि वह इन सभी गैसों का इस्तेमाल करेगी। 1979 तक प्लांट की शुरुआत हो चुकी थी और 1980 में MIC की पहली खेप का उत्पादन भी हुआ। इस समय UCC के CEO वारेन एंडरसन इसी प्लांट के चलते भोपाल आए थे। 

शुरुआत से ही बड़ी दुर्घटना के संकेत दे रहा था भोपाल गैस प्लांट

गैस प्लांट 1980 से ही अपने अशुभ लक्षण दिखाने लगा था। दिसंबर 1981 में हुए हादसे में एक वर्कर की मौत हो गई थी, जबकि दो अन्य घायल हो गए थे। यह हादसाप्लांट में एक गैस लीक होने से हुआ था। 1982 में मई के महीने में UCC ने अमेरिका से 3 इंजीनियर भोपाल भेजे। इनका काम यह देखना था कि भोपाल में सेफ्टी स्टैंडर्ड्स UCC के मानकों पर खरे उतरते हैं या नहीं। इन इंजीनियरों का कहना था कि प्लांट में सब कुछ सही नहीं है। इस जांच के 5 महीने बाद ही फैक्ट्री में फिर गैस लीक हुई। इस बार जहरीली गैस की चपेट में आए लोगों को सांस लेने में परेशानी का सामना करना पड़ा और उनकी आंखों में खुजली होने लगी। 1983 में UCC प्लांट में खर्च में कटौती की और रातो रात कर्मचारियों की संख्या आधी कर दी गई। हालात इतने बद्तर थे कि पूरे प्लांट को मॉनिटर करने के लिए कंट्रोल रूम में सिर्फ एक आदमी था। 1982 में प्रदेश की विधानसभा में इस खतरे पर चर्चा भी हुई थी, पर तत्कालीन श्रम मंत्री टीएस वियोगी ने कहा कि भोपाल को कोई खतरा नहीं है। UCIL ने भी वियोगी की हां में हां मिलाई थी। 1983 में UCIL ने पूरा सुरक्षा सिस्टम खत्म कर दिया, क्योंकि प्लांट में काम बंद हो चुका था। UCIL ने बंद प्लांट में 60 टन MIC छोड़ दी थी। हानिकारक गैसों को जलाने वाला टावर पैसे बचाने के लिए खत्म कर दिया गया था। जहरीली गैसों को बाहर फेकने से पहले उन्हें साफ करने वाला स्क्रबर सिलेंडर भी बंद था। सभी अनुभवी कर्मचारियों ने प्लांट छोड़ दिया था और जो बचे थे उनका प्लांट में कोई इंट्रेस्ट नहीं था। लगातार हो रहे नुकसान और प्लांट को शिफ्ट करने के फैसले के कारण कंपनी ने इस प्लांट से पूरी तरह ध्यान हटा लिया।    

16 हजार बेगुनाहों की मौत से UCC ने झाड़ा पल्ला

1984 में यह दिसंबर महीने की दूसरी रात थी। रात 9:30 बजे एक नियमित संचालन के दौरान, भारी मात्रा में पानी एमआईसी टैंक में प्रवेश कर गया, जिसकी वजह से खतरनाक रिएक्शन शुरू हो गई। इससे टैंक का तापमान और दबाव बढ़ गया जिससे डिस्क टूट गई और जहरीली गैस रात साढ़े 12 बजे तक भोपाल की हवा में मिल चुकी थी। प्लांट के सीनियर कर्मचारियों को हादसे का अंदेशा इससे लगभग एक घंटे पहले ही हो गया था। इसके बावजूद हादसे के एक घंटे बाद एमरजेंसी अलार्म बजाया गया। अलार्म बजने से पहले ही जहरीली गैस पूरे शहर में फैल चुकी थी और लोग अपनी जान बचाने के लिए सड़कों पर भाग रहे थे। अस्पतालों में गैस पीड़ितों की भरमार थी, पर डॉक्टरों को पता ही नहीं था कि इलाज कैसे करना है। सभी हॉस्पिटल के डॉक्टरों ने UCIL के डॉक्टर से इस बारे में बातचीत की, पर उनका कहना था कि यह गैस भी आंसू गैस की ही तरह और इससे लोगों को ज्यादा खतरा नहीं है। गैर सरकारी आकड़ों के अनुसार इस हादसे में 16,000 से ज्यादा लोग मारे गए थे। 

आज भी हरे हैं भोपाल गैस त्रासदी के जख्म

हादसे के बाद भारत सरकार ने कानूनी कार्यवाही के लिए पीड़ितों का एकमात्र प्रतिनिधि बनने के लिए अध्यादेश जारी किया। बाद में इसी अध्यादेश को हटाकर भोपाल गैस लीक एक्ट 1985 बनाया गया। इसके बाद भारत सरकार ने न्यूयार्क में UCC के खिलाफ मुकदमा जारी कर दिया। गैस त्रासदी के बाद मामले की पूरी जांच के लिए कई कदम उठाए गए पर इनमें से कोई भी प्रयास पूरे मन से नहीं किया गया। UCC ने पूरी घटना के लिए एक असंतुष्ट कर्मचारी को जिम्मेदार ठहरा दिया और मामले से अपना पल्ला झाड़ लिया, जबकि लाखों लोगों को अभी भी न्याय का इंतजार था। साल 1986 में मई के महीने में जज कीनन ने अपना फैसला सुनाया, इस फैसले के बाद यह मुकदमा भारतीय कोर्ट में शिफ्ट कर दिया गया और UCC को अंतरिम राहत भुगतान के रूप में कुल 5 मिलियन डॉलर देने को कहा गया। भारत के सुप्रीम कोर्ट ने अपने अंतिम निर्णय में सिर्फ 470 मिलियन डॉलर की मांग की। यह राशि पीड़ितों के लिए बहुत ही कम थी। अगर सभी पीड़ितों को यह राशि बराबर बांटी जाए तो हर व्यक्ति को केवल 10,000 रुपये मिल रहे थे। सबसे दुखद बात यह थी कि उसी साल समुद्री ऊदबिलावों के पुनर्वास और राशन के लिए 4500 डॉलर खर्च किए गए थे, जो कि अल्स्का कंपनी से तेल बहने के कारण पभावित हुए थे। एक भारतीय इंसान की कीमत ऊदबिलावों से भी कम थी।  

Share this article
click me!

Latest Videos

जन्म-जयंती पर शत-शत नमनः भगत सिंह को लेकर PM मोदी ने क्या कुछ कहा...
Israel Hezbollah War: कौन है Nasrallah ? जिसकी Death खबर पढ़ते ही रोने लगी Lebanon एंकर । Viral
Nasrallah की मौत पर राहुल गांधी से लेकर महबूबा मुफ्ती तक सब को सुना गए हिमंता बिस्वा सरमा, पूछा सवाल
Pitru Paksha 2024: सर्व पितृ अमावस्या पर सूर्य ग्रहण का साया, आखिर कब और कैसे कर पाएंगे श्राद्ध
दिल्ली की सड़कों पर उतरेंगे मंत्री, CM Atishi ने दिया नया टारगेट । Delhi News । Arvind Kejriwal