77% लोग फैंटसी गेमिंग ऐप के विज्ञापनों पर बैन चाहते हैं, 75% ने माना- बच्चे ऐड से गुमराह हो रहे

 कोरोना महामारी के वक्त में उपभोक्ताओं को भ्रमित करने के लिए विज्ञापनों की बाढ़ सी आ गई है। इन विज्ञापनों में गद्दे, सैनिटाइजर, कपड़े, रेडीमेड गार्मेंट्स, जूस, ब्रेड, यहां तक की आईसक्रीम जैसे उत्पाद दिखाए जा रहे हैं। इन्हें कोरोना के खिलाफ इम्युनिटी बढ़ाने और वायरस से लड़ने का हथियार तक बताया जा रहा है। 

नई दिल्ली. कोरोना महामारी के वक्त में उपभोक्ताओं को भ्रमित करने के लिए विज्ञापनों की बाढ़ सी आ गई है। इन विज्ञापनों में गद्दे, सैनिटाइजर, कपड़े, रेडीमेड गार्मेंट्स, जूस, ब्रेड, यहां तक की आईसक्रीम जैसे उत्पाद दिखाए जा रहे हैं। इन्हें कोरोना के खिलाफ इम्युनिटी बढ़ाने और वायरस से लड़ने का हथियार तक बताया जा रहा है। 
 
इस साल अगस्त में LocalCircles ने भ्रामक विज्ञापनों को लेकर उपभोक्ताओं पर एक स्टडी जारी की है। इसमें 67,000 से अधिक उपभोक्ताओं ने अपनी राय दी है। इस सर्वे को डिपार्टमेंट ऑफ कंज्यूमर अफेयर्स को भी सौंपा गया है। सर्वे के माध्यम से उपभोक्ताओं ने कोरोना महामारी के वक्त और पहले भ्रामक विज्ञापनों के बारे में अपनी चिंताएं व्यक्त कीं। 

75% उपभोक्ताओं ने बताया कि वे भ्रामक सेलिब्रिटी विज्ञापनों के फेर में आ गए। वहीं, 80% उपभोक्ताओं का कहना है कि विज्ञापनों को उद्योग निकाय के बजाय एक सरकारी निकाय द्वारा विनियमित किया जाना चाहिए। क्योंकि उद्योग निकाय के पास दंडात्मक शक्तियां तक नहीं हैं। उपभोक्ताओं ने कहा, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 में यह अधिसूचित होना चाहिए कि ऐसे भ्रामक विज्ञापनों को कम करने के लिए एक विज्ञापन कोड विकसित और लागू किया जाना चाहिए।
 
LocalCircles सर्वे के बाद अगस्त में ही उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण के लिए एक ड्राफ्ट जारी किया था, इसमें दी गईं गाइडलाइन का उद्देश्य है कि अनुचित व्यापार प्रथाओं को रोका जा सके और उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा की जा सके। ये दिशानिर्देश या नियम निर्माताओं, सेवा प्रदाताओं और व्यवसायों पर लागू होते हैं जिनके उत्पाद (सेवाएं) विज्ञापन और विपणन संचार के साथ-साथ विज्ञापन एजेंसी और उत्पादों के समर्थन के अधीन हैं।

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सरकार ने इस नीति पर जनता को अपनी प्रतिक्रियाएं देने के लिए 1 अक्टूबर की समय सीमा निर्धारित की थी। LocalCircles ने इस ड्राफ्ट को आसान सवालों में बदला, ताकि आम लोग इस नीति पर अपनी राय दे सकें। इस नीति पर देश के 320 से ज्यादा जिलों के 115,000 उपभोक्ताओं ने अपनी प्रतिक्रिया दी। 

पूछे गए ये सवाल?

पहला सवाल-  उपभोक्ताओं से पूछा गया कि वे कैसे प्रिंट, टीवी, रेडियो और डिजिटल विज्ञापनों में डिस्क्लेमर (अस्वीकरण ) उन्हें कैसे मिलता है?
जवाब- इस सवाल के जवाब में 65% लोगों ने कहा कि उन्हें डिस्क्लेमर को देखने, सुनने और पढ़ने में काफी दिक्कत होती है। वहीं, 22% लोगों ने कहा, इसे सुनना, देखना और पढ़ना कठिन था। सिर्फ 7% लोगों ने कहा, डिस्क्लेमर स्पष्ट था। 


source- LocalCircles

कई उपभोक्ताओं ने यह भी बताया कि विज्ञापनों के बाद डिस्क्लेमर आम तौर पर ऐड की तुलना में काफी तेज सुनाई देता है। जबकि कई ब्रांड नहीं चाहते कि डिस्क्लेमर के बारे में उपभोक्ता जाने। 
 
इसका मतलब यह है कि 87% उपभोक्ताओं को विज्ञापनों में डिस्क्लेमर देखने में, पढ़ने में सुनने में दिक्कत होती है। सरकार की ड्राफ्ट गाइडलाइन कहती है कि डिस्क्लेमर विज्ञापन में भ्रामक दावे को सही करने वाला नहीं होना चाहिए। यह उपभोक्ताओं के लिए स्पष्ट रुप से दिखने वाला होनी चाहिए। स्पष्ट ना दिखने वाले डिस्क्लेमर भी भ्रामक विज्ञापन ही माने जाएंगे। 

दूसरा सवाल- उपभोक्ताओं से पूछा गया कि पिछले 1 साल में बच्चों के लिए अनुचित विज्ञापन कहां से आए?
इस सवाल के जवाब में 19% लोगों ने कहा कि टेलीविजन से, 4% लोगों ने कहा कि यू ट्यूब जैसी साइट से, वहीं, 27% लोगों ने कहा कि इन दोनों जगह से। 2%  लोगों ने अखबार को इसके लिए जिम्मेदार बताया। जबकि 34% लोगों ने इस तीनों माध्यमों को जिम्मेदार ठहराया। केवल 4% लोगों ने कहा, इनमें से कोई नहीं। वहीं, 10% लोगों ने कहा कि वे इस बारे में कुछ कह नहीं सकते। 


source- LocalCircles
 
इससे साफ होता है कि करीब 86% उपभोक्ताओं का मानना है कि पिछले 1 साल में टेलीविजन, डिजिटल प्लेटफॉर्म और अखबार में बच्चों के लिए अनुचित विज्ञापन मिले हैं। उपभोक्ता ने बताया कि कैसे वीडियो साइटों पर अनुचित विज्ञापन बच्चों के वीडियो के बीच दिए जाते हैं और कैसे साइटों को केवल वीडियो सामग्री पर आधारित विज्ञापन दिखाए जाने चाहिए।
 
सवाल- उपभोक्ताओं से पूछा गया कि कम कीमत पर उत्पादों के विज्ञापनों को लेकर उनका अनुभव कैसा रहा?
इस पर 47% उपभोक्ताओं ने कहा, उन्हें काफी कम कीमत पर उत्पाद दिखाए गए लेकिन जब वे ऐप और साइट पर गए तो उस कीमत पर वह उत्पाद उपलब्ध नहीं था। जबकि 27% ने कहा, उन्होंने जब एड पर कम कीमत देखकर वेबसाइट पर गए तो उन्हें उसी कीमत पर उत्पाद मिले। जबकि 26% ने कहा, कीमत को एड पर दिखाई गई ही थी, लेकिन उसमें छिपी हुई शर्त थी। 


source- LocalCircles

सवाल- लोगों से पूछा गया कि पिछले 1 साल में विज्ञापन के माध्यम से ऐप, गेम और अन्य सर्विस या उत्पाद खरीदने के लिए कहा गया हो, जिन्हें बच्चों को भ्रमित करने के लिए बनाया गया हो?

इसके जवाब में 51% ने कहा हां, कई ऐसे विज्ञापन दिखे। वहीं, 24% ने हां को कहा, लेकिन उनका कहना है कि उन्हें कुछ ही ऐसे विज्ञापन दिखे। जबकि 2% ने कहा, उन्हें ऐसा कोई विज्ञापन नहीं दिखा, जबकि 23% ने कहा, इस बारे में कुछ कह नहीं सकते। ड्राफ्ट में कहा गया है कि विज्ञापन को बच्चों की अनुभवहीनता, विश्वसनीयता या वफादारी की भावना का लाभ नहीं लेना चाहिए। या सेवा या उत्पाद को इस तरह से नहीं दिखाना चाहिए, जिससे बच्चों में अवास्तविक उम्मीदें पैदा हों।


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सवाल- उपभोक्ताओं से यह भी पूछा गया कि क्या पिछले 1 साल में, उन्हें मुफ्त उत्पादों के विज्ञापन मिले, जिनमें उन्हें मुफ्त उत्पाद की पैकेजिंग, हैंडलिंग या प्रशासन के लिए भुगतान करना पड़ता है।
इसके जवाब में 20% लोगों ने कहा, उन्हें ऐसे कई विज्ञापन देखने को मिले। जबकि 29% लोगों ने कहा, उन्हें कुछ ऐसे विज्ञापन देखने को मिले। जबकि 46% ने कहा, उन्हें कभी ऐसे विज्ञापन देखने को नहीं मिला। 

इस डेटा से पता चलता है कि 49% उपभोक्ताओं को पिछले 1 साल में उत्पादों को मुफ्त में देने के बादे वाले विज्ञापन देखने को मिले। पिछले 3 साल में LocalCircles को ऐसी हजारों शिकायतें मिलीं, जहां लोगों को ऑनलाइन सामान को काफी कम या बिल्कुल मुफ्त देने का विज्ञापन मिला। जब उन्होंने इसे खरीदने के लिए अपनी क्रेडिट या डेबिट कार्ड की डिटेल दी, तो उनके साथ फ्रॉड हो गया। 
 
जब लोगों से पूछा गया कि क्या सरकार को गेमिंग प्लेटफार्मों से विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगाने चाहिए। जहां गैमलिंग जैसे विज्ञापन दिखाए जा रहे हैं। इस पर 77% लोगों ने हां कहा, वहीं, 18% लोगों ने ना कहा। 

18 सितंबर 2020 को कुछ मीडिया रिपोर्ट में बताया गया था कि गूगल ने कुछ फेंटसी गेमिंग ऐप को हटाया था। गूगल का कहना था कि हम ऑनलाइन कसिनो या गेंमलिंग ऐप को सपोर्ट नहीं कर सकते तो खेलों में बैटिंग को बढ़ावा देती हैं। कंपनी ने कहा, अगर को ऐप किसी बाहरी वेबसाइट पर उपभोक्ताओं को ले जाता है, जहां वे असली पैसे या नकद पुरस्कार जीतने के लिए टूर्नामेंट में भाग लेते हैं, तो यह हमारी नीतियों के खिलाफ है। 

ड्रीम 11, myteam11, mycircle11 जैसे ऐप जो खुद को स्किल बेस्ड गेमिंग प्लेटफॉर्म कहते हैं, ये लोगों को अधिक पैसे जीतने के लिए अपने प्लेटफार्मों पर पैसे खर्च करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। कई परिजनों ने भी इसपर आपत्ति जताई है कि आईपीएल के दौरान ऐसे गेमिंग ऐप के काफी ऐड आ रहे हैं। ये बच्चों को इनके इस्तेमाल के लिए प्रेरित करते हैं। 77% लोग गेमिंग ऐप के विज्ञापनों पर बैन चाहते हैं। 

सवाल- लोगों से पूछा गया कि उन्हें प्रिंट, टीवी और डिजिटल या अन्य माध्यमों में ऐड पर कितना भरोसा है?
इस सवाल के जवाब में 3% लोगों ने कहा, उन्हें काफी हद तक भरोसा है। वहीं, 25% लोगों ने कहा, विज्ञापन पर औसत भरोसा करते हैं। जबकि 48% लोगों को कम और 23% लोगों को विज्ञापनों पर बिल्कुल भरोसा नहीं है। 

सवाल- किस इंडस्ट्री में सबसे भ्रमित विज्ञापन मिलते हैं? 
इसके जवाब में 22 लोगों ने कहा, रियल स्टेट। जबकि 14% लोगों ने ई कॉमर्स साइट बताया। 5%  लोगों का मानना है कि बैंकिंग और 11% लोगों का कहना है कि हेल्थ प्रोडक्ट में। जबकि 30% लोगों ने कहा, कॉस्मैटिक प्रोडक्ट संबंधी विज्ञापन में। 

सरोगेट विज्ञापन उसे कहते हैं, जिनका इस्तेमाल दूसरे उत्पाद की आड़ में सिगरेट, तंबाकू और शराब जैसे उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए किया जाता है। लोगों से पूछा गया कि क्या शराब, सिगरेट और गुटका जैसे उत्पादों के लिए सरोगेट विज्ञापन की अनुमति दी जानी चाहिए, जिनका प्रत्यक्ष विज्ञापन प्रतिबंधित है। 76% लोगों ने कहा, इसकी अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। वहीं, 19% लोगों ने इसकी अनुमति होनी चाहिए। 

सवाल- उपभोक्ताओं से पूछा गया कि क्या हाल के सालों में उन्हें ऐसा विज्ञापन देखने को मिला, जिसमें सेलिब्रिटी दिखें हों और बाद में उन्हें भ्रामक होने की जानकारी दी गई हो।
इसके जवाब में 75% ने 'हां' कहा, जबकि 11% ने 'नहीं' कहा।

कैसे हुआ सर्वे?
इस सर्वे में देश के 320 जिलों के 115000 लोगों ने हिस्सा लिया। इसमें से 71% पुरुष और 29% महिलाएं हैं। सर्वे में भाग लेने वाले लोगों में 51% टियर 1, 34% टियर 2, 15% टियर 3 और ग्रामीण इलाकों से हैं। सर्वे LocalCircles प्लेसफॉर्म पर किया गया। इसमें LocalCircles पर पहले से रजिस्टर्ड लोगों ने हिस्सा लिया।

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