पश्चिम बंगाल के 86% मर्दों पर मंडरा रहा बाप नहीं बन पाने का खतरा, जानें क्यों स्पर्म की सेहत हो रही खराब

Published : Nov 28, 2022, 03:03 PM ISTUpdated : Nov 28, 2022, 03:31 PM IST
पश्चिम बंगाल के 86% मर्दों पर मंडरा रहा बाप नहीं बन पाने का खतरा, जानें क्यों स्पर्म की सेहत हो रही खराब

सार

पश्चिम बंगाल के 86 फीसदी मर्दों पर बाप नहीं बन पाने का खतरा मंडरा रहा है। उनके स्पर्म की सेहत ठीक नहीं है। स्पर्म की खराब सेहत के लिए मुख्य रूप से तनाव, खानपान और खराब दिनचर्या जिम्मेदार हैं।  

कोलकाता। एक रिसर्च से पता चला है कि पश्चिम बंगाल देश का वह राज्य है जहां के मर्दों को बच्चे पैदा करने में सबसे अधिक परेशानी आ रही है। 86 फीसदी मर्दों पर बाप नहीं बन पाने का खतरा मंडरा रहा है। उनके स्पर्म की सेहत ठीक नहीं है। हेल्दी स्पर्म नहीं होने से उसके द्वारा फिमेल एग को फर्टिलाइज करने की संभावना घट जाती है, जिससे महिलाएं गर्भवती नहीं हो पाती हैं। स्पर्म की खराब सेहत के लिए मुख्य रूप से तनाव, खानपान और खराब दिनचर्या जिम्मेदार हैं।  

यह स्टडी 2018 और 2021 के बीच देशभर में की गई है। अध्ययन के दौरान पता लगाया गया है कि किस राज्य के लोग प्रजनन के लिए आईवीएफ (in-vitro fertilisation) जैसी सहायक सुविधा की मांग कितनी कर रहे हैं। 64,452 जोड़ों पर की गई स्टडी से पता चला है कि पश्चिम बंगाल के 86 फीसदी मर्द तीन मुख्य स्पर्म असमान्यताओं में से कम से कम एक के शिकार हैं। ये स्पर्म असमान्यताएं बांझपन के लिए जिम्मेदार हैं।

खराब जीवनशैली और तनाव से घट रही पिता बनने की क्षमता
2022 में जनवरी से अक्टूबर तक पश्चिम बंगाल के 2179 जोड़े ने आईवीएफ ट्रिटमेंट की मांग की। इनमें से 61 फीसदी जोड़े ऐसे थे, जिन्हें पुरुष के स्पर्म स्वस्थ नहीं होने के चलते बच्चा नहीं हो रहा था। सर्वे में बताया गया है कि खराब जीवनशैली, तनाव, देर से शादी, काम की व्यस्तता और खराब भोजन मर्दों में बांझपन बढ़ने की मुख्य बजह है। 

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देश भर में सर्वे करने वाली इंदिरा आईवीएफ के सह-संस्थापक और प्रबंध निदेशक नितिज मुर्डिया ने कहा कि बंगाल में पुरुषों का एक बहुत बड़ा प्रतिशत शुक्राणु असामान्यता निर्धारित करने वाले तीन मापदंडों में से एक से पीड़ित है। ये मापदंड शुक्राणुओं की संख्या, गतिशीलता और आकृति हैं। बिरला फर्टिलिटी और आईवीएफ सेंटर के प्रमुख सौरेन भट्टाचार्जी ने कहा कि पूरे भारत में पुरुष बांझपन बढ़ रहा है। कोलकाता कोई अपवाद नहीं है। परंपरागत रूप से महिलाएं पहले बांझपन के लिए टेस्ट कराती हैं, लेकिन अब बांझपन के लिए पुरुषों की जिम्मेदारी भी महिलाओं जितनी हो गई है। 

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