कोलकाता के हॉस्पिटल का कमाल, इंसानों में लगाया बकरी के कान का हिस्सा, जन्मजात परेशानी हुईं दूर, लौटी सुंदरता

कोलकाता के एक सरकारी हॉस्पिटल में बकरी के कान के कार्टिलेज से कटे होठ जैसे शारीरिक विकृतियों के 25 रोगियों का इलाज किया गया। ऑपरेशन सफल रहा और उनकी चेहरे की सुंदरता लौट आई।
 

Asianet News Hindi | Published : Jun 15, 2022 10:49 AM IST

कोलकाता। बकरी के कान इंसानों के शरीर में लगाए जा रहे हैं। जी हां, यह बात सच है। यह कमाल कोलकाता के एक सरकारी अस्पताल में हुआ है। यहां 25 लोगों की जन्मजात परेशानी बकरी के कान के हिस्से लगाकर ठीक की गई है। ये लोग कटे होठ जैसे शारीरिक विकृतियों का सामना कर रहे थे। ऑपरेशन सफल होने से उनके चेहरे की सुंदरता लौट आई।

कोलकाता के आर जी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (R G Kar Medical College and Hospital) और पश्चिम बंगाल यूनिवर्सिटी ऑफ एनिमल एंड फिशरी साइंस (West Bengal University of Animal and Fishery Sciences) के डॉक्टरों और वैज्ञानिकों ने यह सफलता हासिल की है। इसमें बकरी के कान के कार्टिलेज (cartilage) का इस्तेमाल इंसानी शरीर की विकृतियां ठीक करने में इस्तेमाल की गईं। 

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महंगी है प्लास्टिक सर्जरी 
आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में प्लास्टिक सर्जरी विभाग के हेड प्रोफेसर डॉ रूप नारायण भट्टाचार्य ने कहा कि बहुत से लोगों का जन्म कटे होठ या बाहरी कान की विकृति के साथ होता है। वहीं, दुर्घटनाओं के कारण भी कई बार शारीरिक विकृति हो जाती है। इसका इलाज प्लास्टिक सर्जरी द्वारा होता है। प्लास्टिक सर्जरी महंगी होने के साथ ही काफी जटिल भी होती है। इंसानी शरीर लंबे समय तक प्लास्टिक और सिलिकॉन इम्प्लांट को स्वीकार्य नहीं करती। 

पशु चिकित्सा सर्जन डॉ शमित नंदी और माइक्रोबायोलॉजिस्ट डॉ सिद्धार्थ जोर्डर ने कहा कि 2013 के बाद से मानव शरीर के लिए उपयुक्त सिलिकॉन और प्लास्टिक ट्रांस्प्लांट के लिए आसानी से उपलब्ध, लचीले लेकिन मजबूत विकल्प के लिए खोज जारी थी। टीम में विशेषज्ञ डॉक्टर और इम्यूनोलॉजी विशेषज्ञ भी शामिल थे। 

आसानी से उपलब्ध हैं बकरी के कान
बकरियों के कानों को क्यों चुना गया? इसपर डॉ शमित नंदी ने कहा कि बकरी के कान आसानी से उपलब्ध हैं। इनका कोई खास इस्तेमाल नहीं होता। इन्हें फेंक दिया जाता है। हमने अपने शोध के दौरान जो पाया वह काफी आश्चर्यजनक है। पहले बकरी के कान से कार्टिलेज (नरम हड्डी) को हटा लिया जाता है। इसके बाद कार्टिलेज की प्रतिरक्षात्मकता को विभिन्न केमिकल प्रॉसेस से नष्ट कर दिया जाता है। हमने पाया कि तमाम केमिकल प्रॉसेस के बाद भी कार्टिलेज की संरचना और गुणवत्ता बरकरार रहती है। 

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इंसानों के शरीर में बकरी के कान से कार्टिलेज डालने से पहले हमने इसे जानवर के शरीर पर टेस्ट किया। टेस्ट सफल रहने के बाद हमने इसे शारीरिक विकृतियों का सामना कर रहे 25 रोगियों पर इस्तेमाल किया। इसके बहुत अच्छे रिजल्ट मिले। बकरी के कान के कार्टिलेज का इस्तेमाल कर रोगियों का इलाज बहुत कम लागत पर किया जा सकता है। 

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डॉ रूप नारायण भट्टाचार्य ने कहा कि इस परियोजना के लिए फंड केंद्रीय जैव प्रौद्योगिकी मंत्रालय से मिला था। हमने मंत्रालय को परियोजना रिपोर्ट भेजी थी। उन्होंने हमारे काम की प्रशंसा की है। हम अपने शोध को और तीन-चार वर्षों तक जारी रखना चाहते हैं। हम यह जांचना चाहते हैं कि क्या बकरी के कार्टिलेज का उपयोग जलने की चोटों और कुष्ठ रोग के घावों में किया जा सकता है।

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