मुझे नहीं लगता कि जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया इससे ज्यादा लोकतांत्रिक हो सकती है: कॉलेजियम सिस्टम पर CJI

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (CJI) एनवी रमण ने कहा कि देश में जजों की नियुक्ति की जो प्रक्रिया है, वह बिल्कुल लोकतांत्रिक है। उस पर किसी तरह का सवाल नहीं उठाया जा सकता। वह सोसायटी फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स के एक कार्यक्रम में बोल रहे थे। 

Vikash Shukla | Published : Apr 12, 2022 6:30 AM IST / Updated: Apr 12 2022, 12:22 PM IST

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (CJI) जस्टिस एनवी रमना (CJI NV Ramana) ने मंगलवार को कहा कि जजों की नियुक्ति के लिए बना कॉलेजियम सिस्टम लोकतांत्रिक है। उन्होंने कहा कि मुझे नहीं लगता कि इसे और भी ज्यादा लोकतांत्रिक किया जा सकता है। जस्टिस रमना ने कहा कि अभी जजों की नियुक्ति की जो प्रक्रिया है, उसमें सभी हितधारकों से लंबा परामर्श लेने के बाद ही अंतिम रूप दिया जाता है। भारत में एक धारणा है कि न्यायाधीश ही न्यायाधीशों की नियुक्ति करते हैं।

लंबी प्रक्रिया के बाद होती है न्यायाधीशों की नियुक्ति
सीजेआई ने कहा कि यह एक गलत धारणा है और मैं इसे ठीक करना चाहता हूं। नियुक्ति एक लंबी परामर्श प्रक्रिया के माध्यम से की जाती है। इसके लिए कई हितधारकों से परामर्श लिया जाता है। मुझे नहीं लगता कि यह प्रक्रिया इससे भी ज्यादा अधिक लंबी हो सकती है। 

डेमोक्रेटिक राइट्स पर बोल रहे थे सीजेआई
CJI सोसाइटी फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स, नई दिल्ली और जॉर्ज टाउन यूनिवर्सिटी लॉ सेंटर, वाशिंगटन डीसी द्वारा आयोजित 'दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्रों के सर्वोच्च न्यायालयों के तुलनात्मक दृष्टिकोण' विषय पर आयोजित एक वेबिनार में बोल रहे थे। इस वेबिनार में CJI रमण और अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस स्टीफन ब्रेयर अतिथि थे। चर्चा का संचालन जॉर्ज टाउन यूनिवर्सिटी लॉ सेंटर के डीन और कार्यकारी उपाध्यक्ष एम. ट्रेनोर ने किया।

कार्यपालिका के अतिक्रमण पर ही शीर्ष अदालत ने किया हस्तक्षेप
इस दौरान सीजेआई और ट्रेनोर के बीच बातचीत हुई। ट्रेनोर ने कहा कि आपने न्यायाधीशों की नियुक्ति को लोकतांत्रिक बताया है। क्या आप न्यायाधीशों की नियुक्ति में योग्यता की अवधारणा पर बात कर सकते हैं? इस पर सीजेआई रमना ने कहा कि भारत का संविधान तीन अंगों के बीच शक्तियों को अलग करने का आदेश देता है। न्यायपालिका मुख्य रूप से कार्यकारी और विधायी कार्यों की समीक्षा करने के लिए अनिवार्य है। यही कारण है कि भारतीय स्वतंत्र न्यायपालिका में किसी तरह का मोलभाव नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि अदालतें ही हैं, जो मौलिक अधिकारों और कानून का शासन को बरकरार रखती हैं। लोग न्यायपालिका पर तभी भरोसा करेंगे जब वह स्वतंत्र रूप से काम करेगी। न्यायिक नियुक्ति पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों का उद्देश्य लोगों के विश्वास और विश्वास को बनाए रखना है। न्यायाधीशों की नियुक्ति में यदि कार्यपालिका का अतिक्रमण महसूस हुआ, तभी सुप्रीम कोर्ट ने संवैधानिक प्रावधानों की व्याख्या करते हुए बुनियादी ढांचे के सिद्धांत का पालन किया।  

सीजेआई ने बताया -  भारत में कैसे होती है न्यायाधीशों की नियुक्ति
CJI ने कहा- भारत में एक धारणा है कि न्यायाधीश न्यायाधीशों की नियुक्ति करते हैं। यह एक गलत धारणा है। मैं इसके बारे में सही जानकारी देना चाहता हूं। इनकी नियुक्ति एक लंबी परामर्श प्रक्रिया के जरिये की जाती है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा- एक हाईकोर्ट के न्यायाधीश की नियुक्ति प्रक्रिया के तहत एक बार अदालत द्वारा प्रस्ताव किए जाने के बाद, इसे राज्य के मुख्यमंत्री को और फिर राज्यपाल को भेजा जाता है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री अदालत के प्रस्तावों की जांच कर सकते हैं और फिर अपनी सिफारिश करते हैं। वह इस पर भारत सरकार के कानून मंत्रालय में आपत्ति या समर्थन भी दर्ज करा सकते हैं। 

कानून मंत्रालय से लेकर पीएम और फिर राष्ट्रपति के पास जाती है सिफारिश
मुख्यमंत्रियों की टिप्पणी या सिफारिश पर कानून मंत्रालय सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को अपनी टिप्पणी भेजेगा। इसके बाद उन न्याशधीशों की राय भी ली जाती है, जो उस राज्य में काम कर चुके हैं या फिर राज्य से परिचित हैं। इस सभी टिप्पणियों को मुख्य न्यायाधीश और दो वरिष्ठतम न्यायाधीशों के सामने रखते हैं। इसके बाद कॉलेजियम प्रधानमंत्री को नामों की सिफारिश करते हैं। इन नामों के जाने के बाद भारत सरकार जांच की एक और प्रक्रिया पूरी करती है। सबसे आखिर में इसे भारत के राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है। यह एक लंबी प्रक्रिया है। 

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