अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार बनने के बाद आतंकवाद दुनिया के लिए एक बड़ी चिंता बन गया है। इसे लेकर भारत ने UNGA से लेकर NAM के मंच तक अपनी आवाज बुलंद की है।
नई दिल्ली. संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly-UNGA) में भारत ने मंगलवार को फिर आतंकवाद के खिलाफ सबको एक साथ खड़े होने को कहा। वहीं, सोमवार को विदेश राज्य मंत्री मीनाक्षी लेखी ने गुट-निरपेक्ष आंदोलन (NAM) में अफगानिस्तान को लेकर दुनिया के सामने आए संकट पर भारत की तरफ से जोरदार तरीके से बात रखी।
UNGA में बोले आर रवींद्र ने आतंकवाद को शांत और सुरक्षा के लिए खतरा बताया
संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly-UNGA) में भारत ने मंगलवार पुरजोर तरीके से कहा कि आतंकवाद (Terrorism) शांति और सुरक्षा के लिए सबसे गंभीर खतरा है। यह संयुक्त राष्ट्र के आम एजेंडे को हासिल करने में सबसे बड़ी बाधा बना हुआ है। संयुक्त राष्ट्र में उप स्थायी प्रतिनिधि (राजनीतिक समन्वयक) आर रवींद्र ने आतंकवाद के मुद्दे पर भारत की नजरिया रखा। हालांकि महासचिव ने आतंकवाद के मुद्दे को महत्व दिया और संयुक्त राष्ट्र आतंकवाद विरोधी कार्यालय (UNOCT) के कामों को सराहा, लेकिन रिपोर्ट में आतंकवाद को प्राथमिकता नहीं दी। बैठक की रिपोर्ट में 'आतंकवाद' शब्द दो बार उपयोग हुआ, जबकि 'जलवायु परिवर्तन' (climate change) 20 बार से अधिक।
NAM की बैठक में मीनाक्षी लेखी ने अफगानिस्तान का मुद्दा उठाया
सोमवार को गुट-निरपेक्ष आंदोलन (NAM) से विदेश राज्य मंत्री मीनाक्षी लेखी ने अपने कामकाज को लेकर ईमानदारी बरतने और आत्मनिरीक्षण करने का अनुरोध किया। गुट-निरपेक्ष आंदोलन की 60वीं वर्षगांठ के अवसर पर बेलग्रेड में आयोजित एक बैठक को संबोधित करते हुए मीनाक्षी लेखी ने अफगानिस्तान के मुद्दे को भी उठाया। विदेश राज्य मंत्री ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के एक प्रस्ताव का हवाला देते हुए कहा कि अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल किसी भी देश के खिलाफ आतंकवादी हमलों को अंजाम देने के लिए नहीं किया जा सकता है। ऐसा किया भी नहीं जाना चाहिए।
भारत के लिए अफगानिस्तान-चीन और पाकिस्तान का 'तिकड़मी गठबंधन' एक बड़ा चैलेंज
अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार बनने के बाद भारत के पड़ोसी मुल्कों; पाकिस्तान और चीन के मिजाज बदले-बदले से नजर आ रहें। दोनों मुल्क तालिबान को समर्थन देकर अपने हित साधने में लगे हैं, लेकिन भारत के लिए ये एक चुनौती है। कांग्रेस के सीनियर लीडर शशि थरूर ने हाल में इसी मुद्दे पर एक लेख लिखा था। इसके अनुसार अफगानिस्तान में अमेरिका की लीडरशिप में पिछले 20 सालों के 'राष्ट्र निर्माण' के असफल प्रयासों के बाद तालिबान की जीत न सिर्फ उसके साथी जिहादियों को उत्साहित करेगी, बल्कि इस क्षेत्र की भौगोलिक राजनीति(geopolitics) को भी हिलाकर रख देगी। काबुल के पतन के बाद अमेरिका के नेतृत्व वाले 'राष्ट्र-निर्माण' प्रयासों के 20 वर्षों के असफल प्रयासों के बाद तालिबान की जीत न केवल उनके साथी जिहादियों को उत्साहित करेगी, बल्कि क्षेत्र की भू-राजनीति को भी हिला देगी। क्लिक करके पढ़ें