जवाहरलाल नेहरू की जिंदगी से जुड़े 3 रोचक किस्से, जिनके बारे में शायद ही जानते हैं लोग

14 नवंबर को देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू का जन्म हुआ था। वे इसी दिन 1889 में इलाहाबाद में पैदा हुए थे। नेहरू अपने भाई-बहनों में सबसे बड़े थे। जवाहर लाल नेहरू 58 साल की उम्र में पहली बार आजाद भारत के प्रधानमंत्री बने थे। उनकी जिंदगी से जुड़े ऐसे कई रोचक किस्से हैं, जिनके बारे में लोगों को कम ही पता है। 

Asianet News Hindi | / Updated: Nov 14 2022, 08:15 AM IST

Jawaharlal Nehru Birthday: 14 नवंबर को देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू का जन्म हुआ था। वे इसी दिन 1889 में इलाहाबाद में पैदा हुए थे। नेहरू अपने भाई-बहनों में सबसे बड़े थे। जवाहर लाल नेहरू 58 साल की उम्र में पहली बार आजाद भारत के प्रधानमंत्री बने थे। इसके बाद वे 17 साल देश के पीएम रहे। आजादी से पहले और बाद में जवाहरलाल नेहरू की जिंदगी से जुड़े ऐसे कई रोचक किस्से हैं, जिनके बारे में लोगों को पता ही नहीं है। हम बता रहे हैं उनकी लाइफ से जुड़े ऐसे ही 5 रोचक किस्सों के बारे में। 

किस्सा नंबर 1 - जब नेहरू ने बना दिया अपना स्वदेशी ब्रांड  
1951 की बात है, जब देश में पहले आम चुनाव होने थे। तमाम दिक्कतों के बीच अलग-अलग मुद्दे थे। लेकिन इन दिक्कतों के बीच जो सबसे बड़ी समस्या थी वो फॉरेन रिजर्व यानी डॉलर की कमी थी। ऐसे में उस साल सरकार के पास एक रिपोर्ट आई कि भारतीय महिलाएं कॉस्मेटिक सामान खरीदने में सबसे ज्यादा खर्च कर रही हैं। ये सभी सामान विदेशों से आयात होते थे, जिसके लिए डॉलर खर्च करने पड़ते थे। ऐसे में नेहरू सरकार ने फौरन कॉस्मेटिक्स के आयात पर बैन लगा दिया। नेहरु के पर्सनल सेक्रेटरी एमओ मथॉई ने अपनी किताब 'माय डेज विथ नेहरू' में लिखा है कि सरकार के इस कदम से महिलाओं में काफी गुस्सा था और वो इस बैन को हटवाना चाहती थीं। लेकिन नेहरू ऐसा कर नहीं सकते थे। ऐसे में उनके दिमाग में एक विचार आया कि क्यों न भारत खुद अपना एक कॉस्मेटिक ब्रैंड बना ले। इस पर उन्होंने अपने दोस्त और बिजनेसमैंन जेआरडी टाटा से कहा कि वो ऐसे स्वदेशी ब्यूटी प्रोडक्ट्स बनाएं, जो इंटरनेशनल ब्रैंड्स को टक्कर दे सकें। इसके बाद टाटा ने 1952 में मुंबई के पेडर रोड में लैक्मे कंपनी की शुरुआत की। धीरे-धीरे ये कंपनी नेल पॉलिश, लिपस्टिक, आईलाइनर जैसे प्रोडक्ट लॉन्च किए। 1961 में लैक्मे कंपनी की कमान जेआरडी टाटा की पत्नी नोएल ने संभाली। बाद में 1998 में इसे हिंदुस्तान लीवर ने खरीद लिया।

किस्सा नंबर 2 - लोगों की मदद में अपनी सैलरी तक बांट देते थे नेहरू 
नेहरू के निजी सचिव रहे एमओ मथाई ने अपनी किताब 'माय डेज विथ नेहरू' में लिखा है- जब नेहरू प्रधानमंत्री बन गए तो उनके पास हमेशा पैसों की किल्लत रहती थी। जितना जेब खर्च होता था, वो भी वो किसी जरूरतमंद को दे देते थे। इससे तंग आकर मथाई ने उनकी जेब में पैसा रखना ही बंद कर दिया। इस पर भी नेहरू ने लोगों की मदद करनी नहीं छोड़ी और कोई जरूरतमंद सामने आ जाए तो वो किसी और से पैसे मांगकर उसे दे देते थे। मथाई ने इस पर अधिकारियों को निर्देश दिए कि अगर वो पैसे मांगें तो एक बार में 10 रुपए से ज्यादा न दें। आखिर में मथाई ने एक उपाय निकाला और वो नेहरू की तनख्वाह का एक हिस्सा पहले से ही अलग रखने लगे, ताकि कहीं ऐसा न हो कि उनकी पूरी सैलरी लोगों की मदद करने में ही खर्च हो जाए। 

किस्सा नंबर 3 - जब अखबारों की हेडलाइन थी- नेहरू जिंदा हैं..
27 मई, 1964 को सुबह 9 बजे जाने-माने लेखक ख्वाजा अब्बास अहमद के फोन की घंटी बजी। अब्बास ने जब फोन उठाया तो उस पर दूसरी तरफ 'ब्लिट्ज' मैगजीन के संपादक रूसी करंजिया थे। करंजिया ने कहा-अब्बास बहुत बुरा हो चुका है, या फिर होनेवाला है। अब्बास करंजिया का इशारा समझ गए और उन्होंने पूछा- नेहरू ठीक तो हैं? इस पर करंजिया ने कहा- स्ट्रोक आया है, कुछ कह नहीं सकते। इसके बाद करंजिया ने फौरन अब्बास को अपने ऑफिस बुलाया और उन्हें नेहरू पर एक प्रोफाइल लिखने के लिए कहा। लेकिन अब्बास को काफी देर तक यही नहीं समझ आ रहा था कि टाइटल क्या रखें। कुछ देर बाद उन्होंने एक शब्द लिखा- नेहरू। फिर थोड़ी देर बाद लिखा लिव्स। अगली सुबह, जब अखबार ने नेहरू की मौत की खबर छापी तो उनकी हेडलाइन यही थी- Nehru Lives यानी नेहरू जिंदा हैं। 

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