इजरायल-ईरान जंग की आहट, महंगा होगा तेल, भारत पर क्या होगा असर?

इजरायल और ईरान के बीच बढ़ते तनाव से तेल की कीमतों में उछाल आया है, जिसका असर भारत पर भी पड़ेगा। तेल आयात पर निर्भर भारत को महंगाई और आर्थिक मंदी का सामना करना पड़ सकता है।

नई दिल्ली। इजरायल और ईरान के बीच तनाव बढ़ने से पूरा मध्य पूर्व जंग के मुहाने पर है। अगर दोनों देशों के बीच युद्ध होता है तो इसका गहरा असर भारत और यहां के लोगों की जेब पर पड़ेगा।

भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए तेल के आयात पर निर्भर है। रूस से तेल आयात बढ़ने के बाद भी भारत का अधिकतर कच्चा तेल मध्य पूर्व से आता है। मध्य पूर्व के दो ताकतवर देशों के बीच लड़ाई शुरू होती है तो इसका असर तेल बाजार पर होगा। इस क्षेत्र से तेल आपूर्ति बाधित होगी। इसका भारत की अर्थव्यवस्था पर लंबे समय तक रहने वाला प्रभाव पड़ सकता है।

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बुधवार को तेल की कीमतों में 3% से ज्यादा की उछाल आई। ब्रेंट क्रूड वायदा 2.26 डॉलर (189.69 रुपए) बढ़कर 75.82 डॉलर (6,363.72 रुपए) प्रति बैरल पर पहुंच गया। वहीं, यूएस वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (WTI) क्रूड 2.38 डॉलर (199.76) बढ़कर 72.22 डॉलर (6,061.57 रुपए) पर पहुंच गया।

इजरायल और ईरान के बीच खुली जंग होने से कच्चे तेल की कीमतें काफी बढ़ सकती हैं। यह भारत के लिए नुकसानदेह होगा। तेल की कीमत बढ़ने से भारत में महंगाई बढ़ सकती है। इससे आम लोगों की जेब पर भारी असर पड़ेगा। देश के विकास की रफ्तार कम हो सकती है।

रूस से कितना तेल आयात कर रहा भारत?

अगस्त में भारत के आयात में रूसी तेल की हिस्सेदारी लगभग 36% तक गिर गई। लगातार पांच महीनों की वृद्धि के बाद यह गिरावट आई है। जुलाई में भारत के कुल तेल आयात में रूसी तेल का हिस्सा करीब 44% था। वहीं, मध्य पूर्वी तेल का हिस्सा जुलाई के 40.3% से बढ़कर अगस्त में 44.6% हो गया।

अप्रैल से अगस्त तक इस क्षेत्र की हिस्सेदारी एक साल पहले के 46% की तुलना में घटकर लगभग 44% रह गई। भारत मध्य पूर्व में मुख्य रूप से इराक, सऊदी अरब, यूएई और कुवैत से तेल खरीदता है। भारत कतर से अपनी जरूरत का अधिकतर LNG खरीदता है। फरवरी में भारत ने कतर के साथ LNG आयात अगले 20 वर्षों तक बढ़ाने के लिए 78 बिलियन डॉलर के समझौते पर साइन किए।

लड़ाई से भारत के लिए महत्वपूर्ण प्रमुख शिपमेंट मार्ग होंगे प्रभावित

ईरान और इजरायल के बीच युद्ध होने से भारत के तेल आयात के दो प्रमुख मार्ग बाधित हो सकते हैं। ये लाल सागर और होर्मुज जलडमरूमध्य हैं। भारत रूस से लाल सागर के रास्ते तेल आयात करता है। क्षेत्र में तनाव बढ़ता है तो हमलों से बचने के लिए भारत तेल ला रहे जहाजों को केप ऑफ गुड होप के लंबे रास्ते से गुजरना पड़ेगा। भारत के लिए इससे भी अधिक महत्वपूर्ण होर्मुज जलडमरूमध्य है। इसके माध्यम से कतर से एलएनजी और इराक व सऊदी अरब से तेल आयात किया जाता है।

होर्मुज जलडमरूमध्य ओमान और ईरान के बीच है। यह फारस की खाड़ी और ओमान की खाड़ी के बीच महत्वपूर्ण कड़ी है जो अरब सागर तक जाता है। अगर इस रास्ते में बाधा आती है तो तेल आयात में काफी देरी हो सकती है। इससे पूरी दुनिया में तेल की कीमतों में काफी वृद्धि होगी। भारत इस मार्ग पर काफी हद तक निर्भर है क्योंकि दो-तिहाई तेल और आधा एलएनजी आयात होर्मुज के माध्यम से होता है।

तेल की कीमत बढ़ोने से अर्थव्यवस्था और मध्यम वर्ग को नुकसान होगा

तेल की कीमत बढ़ने से पूरी अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी। महंगाई कम करने के लिए RBI को ब्याज दरें अधिक रखना पड़ेगा। तेल और गैस की ऊंची कीमतें तथा आपूर्ति में कमी से महंगाई बढ़ेगी। सरकार ईंधन पर भारी सब्सिडी देती है। तेल की कीमतों में उछाल से सरकार का खर्च बढ़ेगा। इससे बुनियादी ढांचे के विकास जैसे काम पर खर्च में कटौती करनी पड़ेगी। इससे सरकार का राजकोषीय घाटा कम करने का लक्ष्य भी प्रभावित हो सकता है।

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