Pegasus Scandal : पेगासस जासूसी का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, FIR दर्ज कर जांच शुरू करने की मांग

न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट आने के बाद विपक्ष मोदी सरकार पर हमलावर है, इसी बीच यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. 
 

नई दिल्ली : पेगासस जासूसी कांड (Pegasus Spying Scandal) को लेकर में देश में सियासत जारी है। इसी बीच जासूसी मामले के जांच को लेकर दायर याचिका में से एक अपीलकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है और पूरक अर्जी दाखिल की है। वकील एमएल शर्मा ने यह याचिका दाखिल की है और उन्होंने मांग की है कि डील के लिए संबंधित अधिकारी या अथॉरिटी के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर जांच शुरू कराई जाए। 

सुप्रीम कोर्ट करा रहा है जांच
सुप्रीम कोर्ट ने 27 अक्टूबर को भारत में कुछ लोगों की निगरानी के लिए इजरायली स्पाईवेयर पेगासस (Israel Pegasus Spyware) के कथित उपयोग की जांच के लिए साइबर विशेषज्ञों का एक तीन सदस्यीय पैनल नियुक्त किया था। पैनल गठन के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा गया था कि प्रत्येक नागरिक को गोपनीयता के उल्लंघन और राज्य द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा के आह्वान के खिलाफ सुरक्षा की आवश्यकता है। अदालत इस तरह के मामले में मूक दर्शक नहीं बना रह सकता। गौरतलब है कि पेगासस मामले की जांच के लिए  पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा गठित जस्टिस लोकुर आयोग पर पहले ही रोक लगा चुका है।  

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न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट में क्या कहा गया..
दरअसल, अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट में चौंकाने वाले दावे किये गए हैं, अखबार का दावा है कि मोदी सरकार ने साल 2017 में इजराइल से एक रक्षा डील की थी। इसी डील में पेगासस को लेकर भी सौदा हुआ था।  'द न्यूयॉर्क टाइम्स' ने 'द बैटल फॉर द वर्ल्ड्स मोस्ट पावरफुल साइबरवेपन' शीर्षक वाली एक खबर में कहा गया कि जुलाई 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इजराइल यात्रा का भी जिक्र किया गया। यह किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली इजराइल यात्रा थी। इस यात्रा के जरिए पीएम मोदी ने दुनियाभर को एक मैसेज दिया था कि वह भारत इजराइल के प्रति अपने रुख में बदलाव कर रहा है। पीएम मोदी की इसी यात्रा के दौरान भारत और इजराइल के बीच रक्षा डील हुई थी।यह डील 2 अरब डॉलर की थी।

यह है मामला
एक अंतरराष्ट्रीय मीडिया संघ ने बताया है कि पेगासस स्पाइवेयर का उपयोग करके दुनिया के तमाम लोगों की निगरानी की जा रही है। निगरानी के टारगेट पर भारत के 300 से अधिक लोगों के वेरिफाइड मोबाइल नंबर की सूची भी जारी की गई थी। इस सूची के आने के बाद हंगामा मच गया था। उधर, स्पाइवेयर साफ्टवेयर बनाने वाली इजरायली कंपनी ने साफ कह दिया था कि वह किसी भी देश के प्राइवेट संस्थानों को साफ्टवेयर नहीं बेचती है। केवल राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए वह सरकारों को ही यह सप्लाई देती है। 

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