शिवगिरि तीर्थ यात्रा की 90वीं वर्षगांठ पर बोले मोदी-' हम किस चीज के खिलाफ हैं, केवल यही महत्वपूर्ण नहीं होता'

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी(Prime Minister Narendra Modi) आज 7 लोक कल्याण मार्ग पर शिवगिरि तीर्थ यात्रा की 90वीं वर्षगांठ और ब्रह्म विद्यालय की स्वर्ण जयंती के वर्ष(90th anniversary of the Sivagiri pilgrimage and the Golden Jubilee of Brahmo Vidyalaya) भर चलने वाले संयुक्त समारोह के उद्घाटन में शामिल हुए। शिवगिरी तीर्थ यात्रा हर साल तीन दिनों के लिए 30 दिसंबर से 1 जनवरी तक तिरुवनंतपुरम के शिवगिरी में आयोजित की जाती है।

Amitabh Budholiya | Published : Apr 26, 2022 2:16 AM IST / Updated: Apr 26 2022, 11:42 AM IST

नई दिल्ली. 26 अप्रैल को प्रधानमंत्री एक सामाजिक और परोपकार के काम से जुड़े आयोजन में शामिल हुए। पीएम मोदी(Prime Minister Narendra Modi) 7 लोक कल्याण मार्ग पर शिवगिरि तीर्थ यात्रा की 90वीं वर्षगांठ और ब्रह्म विद्यालय की स्वर्ण जयंती के वर्ष(90th anniversary of the Sivagiri pilgrimage and the Golden Jubilee of Brahmo Vidyalaya) भर चलने वाले संयुक्त समारोह के उद्घाटन में शामिल हुए। शिवगिरी तीर्थ यात्रा हर साल तीन दिनों के लिए 30 दिसंबर से 1 जनवरी तक तिरुवनंतपुरम के शिवगिरी में आयोजित की जाती है। इस आयोजन का अपने आप में काफी महत्व है।

कई सभ्यताएं धर्म से भटकीं
मोदी ने कहा-दुनिया के कई देश, कई सभ्यताएं जब अपने धर्म से भटकीं, तो वहां आध्यात्म की जगह भौतिकतावाद ने ले ली। लेकिन, भारत के ऋषियों, संतों, गुरुओं ने हमेशा विचारों और व्यवहारों का शोधन किया, संवर्धन किया। वाराणसी में शिव की नगरी हो या वरकला में शिवगिरी, भारत की ऊर्जा का हर केंद्र, हम सभी भारतीयों के जीवन में विशेष स्थान रखता है। ये स्थान केवल तीर्थ भर नहीं हैं, ये आस्था के केंद्र भर नहीं हैं, ये ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की भावना के जाग्रत प्रतिष्ठान हैं।

केदारनाथ हादसे का जिक्र
मोदी ने कहा-जब केदारनाथ जी में बहुत बड़ा हादसा हुआ। यात्री जीवन व मृत्यु के बीच जूझ रहे थे। उत्तराखंड में और केंद्र में तब कांग्रेस की सरकार थी।  तब मैं गुजरात में मुख्यमंत्री था। तब शिवगिरी मठ से मुझे फोन कॉल आया कि हमारे संत वहां फंस गए हैं, उनका पता नहीं लग रहा है और ये काम आपको करना है। तीर्थदानम् की 90 सालों की यात्रा और ब्रह्म विद्यालयम् की गोल्डेन जुबली, ये केवल एक संस्था की यात्रा नहीं है। ये भारत के उस विचार की भी अमर यात्रा है, जो अलग-अलग कालखंड में अलग-अलग माध्यमों के जरिए आगे बढ़ता रहता है।

नारायण गुरु ने सभी मर्यादाओं का पालन किया
मोदी ने कहा-जैसे ही हम किसी को समझना शुरू कर देते हैं, सामने वाला व्यक्ति भी हमें समझना शुरू कर देता है। नारायण गुरु जी ने भी इसी मर्यादा का हमेशा पालन किया।  वो दूसरों की भावनाओं को समझते थे फिर अपनी बात समझाते थे। उन्होंने रूढ़ियों और बुराइयों के खिलाफ अभियान चलाया और भारत को उसके यथार्थ से परिचित कराया। नारायण गुरुजी ने जातिवाद के नाम पर चल रहे, भेदभाव के खिलाफ लड़ाई लड़ी। हम सभी की एक ही जाति है- भारतीयता। हम सभी का एक ही धर्म है- सेवा धर्म, अपने कर्तव्यों का पालन। हम सभी का एक ही ईश्वर है- भारत मां के 130 करोड़ से अधिक संतान।

स्वतंत्रता संग्राम पर कहा
हमें ये भी याद रखना चाहिए कि हमारा स्वतंत्रता संग्राम केवल विरोध प्रदर्शन और राजनैतिक रणनीतियों तक ही सीमित नहीं था। ये गुलामी की बेड़ियों को तोड़ने की लड़ाई तो थी ही, लेकिन साथ ही एक आज़ाद देश के रूप में हम होंगे, कैसे होंगे, इसका विचार भी था। क्योंकि हम किस चीज के खिलाफ हैं, केवल यही महत्वपूर्ण नहीं होता। हम किस सोच के, किस विचार के लिए एक साथ हैं, ये भी कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण होता है।

आजादी के 100 साल
आज से 25 साल बाद देश अपनी आज़ादी के 100 साल मनाएगा और 10 साल बाद हम तीर्थदानम् के 100 सालों की यात्रा का भी उत्सव मनाएंगे। इन 100 सालों की यात्रा में हमारी उपलब्धियां वैश्विक होनी चाहिए और इसके लिए हमारा विज़न भी वैश्विक होना चाहिए।

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यह भी जानें
इस आयोजन में पीएम मोदी ने साल भर चलने वाले संयुक्त समारोहों का लोगो भी लॉन्च किया। बता दें कि शिवगिरि तीर्थयात्रा और ब्रह्म विद्यालय दोनों महान समाज सुधारक श्री नारायण गुरु के संरक्षण और मार्गदर्शन के साथ शुरू हुए थे। श्री नारायण गुरु के अनुसार, इस तीर्थयात्रा का उद्देश्य लोगों के बीच व्यापक ज्ञान का प्रसार और उनके समग्र विकास और समृद्धि में मदद करना था। इसलिए यह तीर्थयात्रा शिक्षा, स्वच्छता, धर्मपरायणता, हस्तशिल्प, व्यापार और वाणिज्य, कृषि, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथा संगठित प्रयास जैसे आठ विषयों पर केंद्रित मानी जाती है। यानी इस धार्मिक आयोजन का उद्देश्य लोगों में समग्र विकास के प्रति जागरुकता लाना है। 

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1933 में शुरू की गई थी यह तीर्थ यात्रा
इस तीर्थयात्रा की शुरुआत 1933 में कुछ भक्तों ने की थी। बाद में यह दक्षिण भारत में एक प्रमुख आयोजनों में से एक बनकर सामने आई। इस तीर्थयात्रा में हर साल दुनिया भर से लाखों भक्त जाति, पंथ, धर्म और भाषा से ऊपर उठकर तीर्थयात्रा में भाग लेने के लिए शिवगिरी पहुंचते हैं। श्री नारायण गुरु ने सभी धर्मों के सिद्धांतों को समान रूप से सिखाने की कल्पना की थी। इसी नजरिये को साकार करने के मकसद से शिवगिरी के ब्रह्म विद्यालय की स्थापना की गई थी। ब्रह्म विद्यालय श्री नारायण गुरु के कार्यों और दुनिया के सभी महत्वपूर्ण धर्मों के ग्रंथों सहित भारतीय दर्शन पर 7 साल का पाठ्यक्रम उपलब्ध कराता है। (PIB से साभार)

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