जानें भारत ने कैसे पाकिस्तान से जीती थी वो बग्घी जो आज बढ़ा रही राष्ट्रपति भवन की शोभा, मजेदार है किस्सा

18 जुलाई को राष्ट्रपति चुनाव होना है। वहीं, 21 जुलाई को देश को नया महामहिम मिल जाएगा। इस बार राष्ट्रपति के लिए एनडीए की ओर से द्रौपदी मुर्मू, जबकि विपक्ष की तरफ से यशवंत सिन्हा उम्मीदवार हैं। बता दें कि बंटवारे के समय राष्ट्रपति भवन को कई चीजें मिलीं, जिनमें शाही बग्घी भी शामिल है। 

Asianet News Hindi | Published : Jul 12, 2022 6:19 AM IST / Updated: Jul 12 2022, 11:51 AM IST

President House Bagghi: देश में 18 जुलाई को राष्ट्रपति चुनाव होना है। वहीं, 21 जुलाई को देश को नया महामहिम मिल जाएगा। इस बार राष्ट्रपति पद के लिए एनडीए की ओर से द्रौपदी मुर्मू, जबकि विपक्ष की तरफ से यशवंत सिन्हा उम्मीदवार हैं। बता दें कि भारत के राष्ट्रपति का आधिकारिक निवास रायसीना हिल स्थित राष्ट्रपति भवन है। यहां की कई चीजें आज भी ऐतिहासिक हैं। इन्हीं में से एक है राष्ट्रपति भवन की बग्घी। इस बग्घी को भारत ने बंटवारे के समय पाकिस्तान से जीता था। इसके पीछे एक मजेदार किस्सा है। 

बंटवारे के वक्त बग्घी को लेकर भारत-पाकिस्तान में ठनी : 
दरसअसल, 1947 में अंग्रेजों ने भारत से अलग कर पाकिस्तान बना दिया। ऐसे में यहां की हर चीज का बंटवारा हो गया। जब बात वायसराय हाउस (राष्ट्रपति भवन का पुराना नाम) की बग्घी के बंटवारे को लेकर आई तो भारत और पाकिस्तान दोनों ही इस पर अड़ गए। भारत ने कहा कि ये बग्घी हमारी है, वहीं पाकिस्तान भी उस पर अपना दावा ठोकने लगा। 

भारत ने टॉस में जीती शाही बग्घी : 
दोनों में से कोई भी शाही बग्घी छोड़ने के लिए तैयार नहीं था। काफी माथापच्ची के बाद ये तय हुआ कि अब ये बग्घी किसकी होगी, इसका फैसला टॉस के जरिए होगा। इसके बाद राष्ट्रपति के बॉडीगार्ड रेजिमेंट के पहले कमांडेंट लेफ्टिनेंट कर्नल ठाकुर गोविंद सिंह और पाकिस्तानी सेना के याकूब खान के बीच बग्घी को लेकर सिक्का हवा में उछाला गया। टॉस भारत ने जीत लिया और इस तरह ये शाही बग्घी भारत के पास रही, जो आज राष्ट्रपति भवन की शोभा बढ़ा रही है। 

क्या है इस बग्घी की खासियत : 
इस बग्घी में सोने के पानी की परत चढ़ी है। घोड़े से खींची जाने वाली ये बग्घी अंग्रेजों के शासनकाल में वायसराय को मिली थी। आजादी के बाद कुछ सालों तक भारत के राष्ट्रपति सभी सेरेमनी में इसी बग्घी से चलते थे। हालांकि, बाद में सिक्योरिटी रीजन की वजह से इसका इस्तेमाल बेहद कम हो गया।

2014 में प्रणब मुखर्जी ने फिर शुरू की बग्घी की परंपरा : 
देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने 1950 में राजपथ पर हुई गणतंत्र दिवस परेड में इसी बग्घी पर बैठकर सलामी दी थी। धीरे-धीरे बग्घी का इस्तेमाल कम होते-होते 1984 तक इसका उपयोग पूरी तरह खत्म हो गया। बाद में इस बग्घी की जगह हाई सिक्योरिटी वाली कार आ गई। हालांकि, 2014 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने एक बार फिर बग्घी का इस्तेमाल किया। बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी में शामिल होने के लिए वो इसी शाही बग्घी में सवार होकर पहुंचे थे। 

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