'गिलानी' की मौत पर आंसू बहा रहा पाकिस्तान; लेकिन अपने पूर्व राष्ट्रपति के निधन पर क्यों बेशर्म बना रहा?

Published : Sep 02, 2021, 01:34 PM ISTUpdated : Sep 02, 2021, 06:20 PM IST
'गिलानी' की मौत पर आंसू बहा रहा पाकिस्तान; लेकिन अपने पूर्व राष्ट्रपति के निधन पर क्यों बेशर्म बना रहा?

सार

जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी नेता(Separatist leader) सैयद अली शाह गिलानी के निधन पर पाकिस्तान शोक मना रहा है, लेकिन उसने अपने ही पूर्व राष्ट्रपति के निधन पर श्रद्धांजलि तक नहीं दी थी।

नई दिल्ली. भारत विरोधी बयानों से विवादों में रहने वाले जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी नेता(Separatist leader) 92 वर्षीय सैयद अली शाह गिलानी का लंबी बीमारी के चलते निधन हो गया। उनके निधन पर पाकिस्तान ने एक दिन का राष्ट्रीय शोक घोषित किया है। इसके साथ ही पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान और वहां की सेना ने विवादास्पद tweet किए हैं। इस घटनाक्रम के बीच पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति ममनून हुसैन के निधन की खबर चर्चा में है। पाकिस्तान ने उनके निधन पर राष्ट्रीय शोक मनाना तो दूर, अपने मंत्रियों तक को अंतिम संस्कार में शामिल नहीं होने दिया था। वजह, वे विपक्ष से बने राष्ट्रपति थे और दूसरा; वे उदारवादी नेता थे। पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के हितैषी थे। इस बात से पाकिस्तान के सीने पर सांप लौटते थे। पाकिस्तान के प्रमुख अखबार dawn की वेबसाइट पर मुहम्मद मजीद शफी ने एक लेख लिखा था। यह ममनून हुसैन के निधन के कुछ दिन बाद यानी 20 जुलाई को प्रकाशित हुआ था।

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पूरे पांच साल तक पाकिस्तान के राष्ट्रपति रहे
एक तरफ पाकिस्तान गिलानी के निधन पर राजकीय शोक मना रहा है, दूसरी तरफ उसने अपने पूर्व राष्ट्रपति को श्रद्धांजलि तक नहीं दी थी। बात ममनून हुसैन(Mamnoon Hussain) की हो रही है, जिनका 14 जुलाई, 2021 को निधन हो गया था। ये 2013 से 2018 तक यानी पूरे पांच साल तक पाकिस्तान के राष्ट्रपति रहे। जिस पाकिस्तान में सिर्फ सैन्य तानाशाह ही राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठते रहे हों, ममनून ऐसे नेता थे, जिनकी छवि उदारवादी थी। वे पाकिस्तान मुस्लिम लीग(नवाज) से जुड़े थे। इनके निधन पर पाकिस्तान ने राष्ट्रीय शोक तक नहीं मनाया। कोई भी मौजूदा मंत्री उनके अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हुआ था। क्योंकि वे विपक्षी दल से थे। सबसे बड़ी बात वे उदारवादी थे। अल्पसंख्यकों के साथ होली मनाते थे। गिलानी के लिए राष्ट्रीय शोक के बाद यह मामला इमरान के लिए फजीहत का कारण बन गया है।

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पूर्व राष्ट्रपति को मीडिया ने भी नहीं दिया कवरेज
मुहम्मद मजीद शफी ने अपने लेख में उल्लेख किया कि अभिनेता दिलीप कुमार के निधन(7 जुलाई को ) के बाद समाचार चैनलों में उनकी खबरें सुर्खियों में थीं। हर कोई उनके बारे में कुछ न कुछ खोज रहा था, पढ़ रहा था। दिलीप कुमार की खबरें मशहूर हस्तियों की टिप्पणियों और संवेदनाओं के साथ छपीं/ दिखाई गईं। यह उचित था, क्योंकि दिलीप कुमार का एक रत्न थे और पाकिस्तान से उनका रिश्ता था। इसलिए इस कवरेज रिलवेंट था। लेकिन एक हफ्ते बाद ममनून हुसैन का निधन हो गया। लेकिन राष्ट्र और राष्ट्रीय मीडिया की प्रतिक्रिया पूरी तरह से और दु:खद रूप से अलग थी। पहले पन्ने पर एक समाचार के बजाय एक छोटी सूचना अंदर के पन्नों में छाप दी गई। हुसैन ने 5 साल तक राष्ट्रपति के रूप में कार्य किया। यदि अधिक नहीं, तो वह दिलीप कुमार के रूप में पाकिस्तान के लिए अपनी सेवाओं की उतनी ही प्रशंसा के पात्र थे।

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