Corona Winner: जो मदद करने वाले थे वह भी खुद मदद मांग रहे थे, शहर अनजान था लेकिन जीत का हौसला कम न था

कोरोना की तीसरी लहर को लेकर लोग आशंकित हैं। दूसरी लहर के दौरान मौत का तांडव आज भी लोगों की आंखों में तैर रहा है। लेकिन कोरोना से जंग जीतने वालों की आपबीती, मन को सुकून दे सकती हैं, बेचैनियों और आशंकाओं को कम कर सकती हैं। डाॅक्टरी सलाह का पालन करते हुए बिना दहशत में आए लाखों लोगों ने कोविड को मात दिया है। हम आपके लिए ला रहे हैं ऐसे ही ‘कोरोना विनर’ की कहानियां। 

नई दिल्ली। दिल्ली और सटे क्षेत्रों में कोरोना की दूसरी लहर ने दहशत का माहौल पैदा कर दिया था। सायरन बजाते भागते एंबुलेंस, अस्पतालों में चीख-पुकार, हर ओर गम, दहशत और लाचार चेहरों की भरमार। लेकिन दूसरी लहर के उतरने के बाद स्थितियां तेजी से बदल रही हैं। लोग फिर से जीने लगे हैं, पुरानी जिंदगी में लौटने की कोशिश में लगे हैं लेकिन मन में अब भी अनजान दहशत घर किया हुआ है। तीसरी लहर का अंदेशा। हालांकि, दूसरी लहर में कोविड को हराने वाले लोगों के मन में दहशत को कम कर हौसला दे रहे हैं। कोविड को हराने वाले बुलंद हौसलों वाली एक कहानी दो भाई-बहन की है जो करियर के लिए परिवार से सैकड़ों किमी दूर हैं। 
Asianetnews Hindi के धीरेंद्र विक्रमादित्य गोपाल ने कोरोना को हराने वाले गाजियाबाद के आईटी इंजीनियर रवि गुप्ता और उनकी पत्रकार बहन मनीषा से बातचीत की। कोविड की चपेट में आने के बाद कैसे दोनों ने एक दूसरे को संभाला और सैकड़ों किलोमीटर दूर परिवार के लोगों को इस जंग में शामिल किया।  

अगले दिन भी फिर फीवर और ठंड...मैं समझ चुकी थी कि संक्रमण हो चुका है

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कोरोना की दूसरी लहर ने हर ओर दहशत का माहौल बना दिया था। चारो ओर सायरन बजाते एंबुलेंस, दवाइयों की मारामारी, आक्सीजन की कमी और अस्पताल में बेड की शार्टेज, यही सुर्खियां थी। मीडिया में होने के नाते दिल्ली और आसपास की स्थितियों का अंदाजा मुझे था। भाई रवि कहीं भी बाहर जाता तो काफी डर लगा रहता। एक दिन पता चला कि उसके आफिस का दोस्त कोविड-19 पाॅजिटिव हो गया है। लेकिन उससे बहुत मिलाजुला था नहीं इसलिए कोई डर नहीं था। इसका रूटीन बिल्कुल सही चलता रहा। एक्सरसाइज, वर्कआउट सब चालू रहा। परंतु 14 अप्रैल के आसपास रवि को भी फीवर हो गया। पहले दिन पैरासिटामाल खा लिया। अगले दिन भी फिर फीवर और ठंड। माथा ठनका। मैं समझ चुकी थी कि संक्रमण हो चुका है। 

लेकिन जांच के लिए तो लाइन लग रही थी

मीडिया प्रोफेशन में होने के नाते मुझे दिल्ली-गाजियाबाद की स्थितियों के बारे में पता था। एक तो घर से सैकड़ों किलोमीटर दूर एक अनजान शहर में थे। मकान मालिक भी दूर रहते थे। जो जानने वाले थे वह खुद ही परेशान थे। स्थितियां ऐसी थी कि मदद करने वालों को खुद मदद की दरकार थी। कोई डाॅक्टर नहीं, न जांच तत्काल कराने का कोई लिंक मिल रहा था। 

मकान मालिक ने की मदद, दिया एक नंबर

मकान मालिक दूसरी जगह रहते हैं। एक दिन उनको पता चला तो उन्होंने एक नंबर दिया। नंबर कई बार मिलाने पर नहीं मिला। फिर दूसरा नंबर दिया। वह नंबर भी बिजी जा रहा था। किसी तरह बात हुई तो वह दो दिन बाद जांच सैंपल आने के लिए राजी हुआ। लेकिन उसने जांच सैंपल डबल कर दी। रिपोर्ट भी एक हफ्ते बाद देने को बोला।

पास के एक डाॅक्टर थे लेकिन बिना रिपोर्ट देखने को तैयार नहीं

पास में ही एक डाॅक्टर रहते थे। सुबह सुबह ही पर्ची कटाना पड़ता था। पर्ची कटाया लेकिन टेस्ट रिपोर्ट के बिना देखने को राजी नहीं हुए। उधर, टेस्ट रिपोर्ट के लिए इंतजार शुरू हो गया। कई दिन बीतने के बाद भी रिपोर्ट नहीं आई तो संयोग से एक फैमिली डाॅक्टर का नंबर मिल गया। उन्होंने कुछ दवाइयां लिखी। मैं खुद मेडिकल शाॅप से उसे लेकर आई लेकिन एक दवा नहीं मिली। खैर, दवाइयां देनी शुरू कर दी। भाई को आईसोलेट कर दी। 

 

 

सोशल मीडिया, फोन पर सूचनाएं डराने लगी

सोशल मीडिया और फोन पर आ रही सूचनाएं हताश कर रही थी। मेडिकल इमरजेंसी होने पर दिल्ली की स्थितियां सोच कर कांप जा रही थी। कई दोस्त, आफिस कलीग फोन करते तो किसी न किसी को कुछ मदद की जरूरत रहती। हर कोई परेशान, बेबस-लाचार। जिंदगी की जद्दोजहद हो रही एक-एक पल के लिए। मन में ठान लिया कि इन सबसे फोकस हटाना है। 

भाई की डाइट पर किया पूरा फोकस

बस एक काम किया, पूरा फोकस भाई की डाइट और दवाइयों पर किया। उसे जितना हो सकता था, एक टाइमटेबल बनाकर लिक्विड फूड देना शुरू कर दिया। फलों को जूस और जो भी शरीर को ताकत दे सके। हरी सब्जियां और जो भी डाॅक्टर ने रेकमेंड किया। 

खुद भी बीमार पड़ गई 

इसी बीच खुद भी बीमार पड़ गई। लेकिन पूरे एहतियात के साथ भाई की भी देखभाल करती रही। कोविड संक्रमण ने भाई के शरीर को तोड़कर रख दिया था। वह बेहद कमजोर हो चुका था। जिम वाला शरीर आधा हो चुका था। उसे देखकर कभी कभी रोना आता। लेकिन उसका हौसला न टूटे इसलिए खुद को हौसला बनाए रखा। अकेले में कभी कभी रो पड़ती। उसे हमेशा खुश रखने की कोशिश करती। 

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डाॅक्टर के लगातार संपर्क में रही

डाॅक्टर के इंस्ट्रक्शन्स को फालो करती रही। दवाइयों में कोई लापरवाही नहीं की। इसका असर दिखा कि वह ठीक होने लगा। आक्सीमीटर आॅनलाइन खरीद ली थी लेकिन उसका इस्तेमाल बार बार नहीं करती। कभी कभार करती ताकि डाॅक्टर को बताया जा सके। फीवर जब पूरी तरह से खत्म हो गया तो कुछ वीकनेस भी कम हुआ। खांसी थी तो उसकी दवा भी दी जाती थी। वह भी ठीक होने लगा। फिर दुबारा जांच कराया तो रिपोर्ट निगेटिव आ गया। 

कभी अकेलापन महसूस नहीं होने दें

घर से दूर हम दोनों अकेले थे। एक दूसरे का संबल। बीमारी की हालत में कभी उसे अकेलापन महसूस नहीं होने दिया। चूंकि, बेहद कमजोर हो गया था इसलिए उसकी मदद करनी पड़ती। म्यूजिक लगा देती, मोबाइल पर फिल्म लगाकर दे देती ताकि समय बढ़िया से बीते, मन का सुकून मिले। घर पर वीडियो काॅल से बात कराती। 24 घंटे उसका ध्यान रखती ताकि मन में डर न आ जाए। बीमार व्यक्ति खुद को सबसे अधिक असहाय या बीमार तब समझने लगता है जब वह अकेला हो या उसकी देखभाल करने वाला कोई न हो। इसलिए कोशिश हमेशा यही होनी चाहिए कि मरीज को अकेलापन न महसूस होने दिया जाए। हालांकि, कोविड संक्रमण में आईसोलेशन जरूरी है लेकिन कोविड प्रोटोकाॅल के साथ उसको अटेंड करना भी आवश्यक है।
 

Asianet News का विनम्र अनुरोधः आईए साथ मिलकर कोरोना को हराएं, जिंदगी को जिताएं... जब भी घर से बाहर निकलें माॅस्क जरूर पहनें, हाथों को सैनिटाइज करते रहें, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें। वैक्सीन लगवाएं। हमसब मिलकर कोरोना के खिलाफ जंग जीतेंगे और कोविड चेन को तोडेंगे। #ANCares #IndiaFightsCorona

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