भारत अपना 73वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। 15 अगस्त 1947 को देश अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त हुआ था। आजादी के इन सात दशकों को भारत ने जाया नहीं होने दिया। देश के लोगों ने अपनी कड़ी मेहनत और लगन से विश्वपटल पर मुल्क को नई ऊंचाई दी।
भोपाल. भारत अपना 73वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। 15 अगस्त 1947 को देश अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त हुआ था। आजादी के इन सात दशकों को भारत ने जाया नहीं होने दिया। देश के लोगों ने अपनी कड़ी मेहनत और लगन से विश्वपटल पर मुल्क को नई ऊंचाई दी। देश ने अपनी काबिलियत के बल पर खेल से लेकर इनोवेशन के क्षेत्र, अपने कड़े फैसलों, महिलाओं की स्वतंत्रता, धार्मिक आर्थिक, सामाजिक बेड़ियों को तोड़ते हुए साथ ही सूचना के संचार में दुनिया के सामने अपना एक मुकाम स्थापित किया।
सालों तक अंग्रेजों की हुकूमत से आजादी के आज 73 साल हो गए। इस आजादी ने ना सिर्फ देश को आजाद किया, बल्कि देश की महिलाओं को भी नई आजादी दी। ये थी पहचान की आजादी। नई उड़ान की आजादी। चाहे समाज में बराबरी का हक हो या दुनिया में महिलाओं को नई पहचान दिलाने की, आजादी के बाद से अभी तक भारत के संविधान ने ऐसे कई बदलाव किये, जो ना सिर्फ ऐतिहासिक थे, बल्कि सराहनीय भी हैं।
1- बराबरी का हक
द हिंदू मैरिज एक्ट ऑफ 1955 ने महिलाओं को तलाक के मामलों में बराबरी का हक दिया। वो भारत जहां महिलाएं मात्र पति के इशारों की कठपुतली मानी जाती थी, इस क़ानून ने उन्हें एक सहारा दिया कि वो अपने शर्तों पर शादी का बंधन निभा भी सकती हैं और तोड़ भी सकती हैं।
2- आजादी का हक
इसके अगले साल महिलाओं को उनके बच्चों के चुनाव की आजादी दी गई। यानी द हिन्दू एडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट ऑफ 1955। इस एक्ट के तहत एक महिला को पुरुष के बराबर ही ये हक दिया गया कि वो लड़के या लड़की को बेटे या बेटी के रूप में गोद ले सकती हैं। पहले छोटे बच्चों के गार्जियन के रूप में सिर्फ पुरुषों को ही हक़ दिया गया था। लेकिन द हिन्दू माइनोरिटी एंड गार्जियनशिप एक्ट ऑफ 1956 के तहत महिलाओं को भी अपने छोटे बच्चों के गार्जियन का अधिकार दिया गया।
3- परिवार की संपत्ति में मालिकाना हक
द हिन्दू सक्सेशन एक्ट ऑफ 1956 के बाद परिवार की सम्पति में महिलाओं को मालिकाना हक़ दिया गया। हिन्दू लॉ में इस कानून ने मील का पत्थर स्थापित कर दिया। लेकिन इस कानून में शादीशुदा महिला को सिर्फ अपने पति की मौत के बाद उसकी सम्पति मिलती थी। इसलिए इसके बाद बनाया गया द हिन्दू वीमेन राइट टू प्रॉपर्टी एक्ट ऑफ़ 1973. पहले पिता की संपत्ति में सिर्फ बेटों का हक रहता था। लेकिन नए कानून के बाद पिता, पति और बेटे की मौत पर बेटी, पत्नी और मां को सीधे सम्पति में हक मिल जाता है। इसके बाद वो उनके ऊपर है कि उन्हें सम्पति बेचनी है या अपने पास रखनी है। कोई उनसे उसे छीन नहीं सकता।
4. दहेज पर चोट
समाज में परिवार बेटी के जन्म लेते ही उसकी शादी में दहेज़ देने की चिंता में डूब जाता था। इस कारण कई नवजात बच्चियों को जन्म के तुरंत बाद मार दिया जाता था। इसे खत्म करने के लिए द डाउरी प्रोहिबिशन एक्ट ऑफ़ 1961 बनाया गया। इसके तहत दहेज़ लेना या उसकी मांग करना क़ानून अपराध है। इसके लिए जेल की हवा से लेकर फाइन तक का प्रावधान है।
5 एक काम-एक सैलरी
प्रोफेशनल सेक्टर में महिलाओं को बराबरी देने के लिए द इक्वल रीनुमेरशन एक्ट ऑफ 1961 बनाया गया। इसके तहत महिला और पुरुष के बीच सैलरी को लेकर कोई भेदभाव नहीं होगा। दोनों को ही एक काम के लिए एक ही वेतन दिया जाएगा।
6- मातृत्व अवकाश
मातृत्व लाभ (संशोधन) अधिनियम 2017 के तहत, गर्भवती महिलाओं के मातृत्व वैतनिक अवकाश को 12 सप्ताह से बढ़ाकर 26 सप्ताह किया हुआ। महिलाएं प्रसव की अनुमानित तिथि से आठ सप्ताह पहले से इसे ले सकती हैं। महिला पहली दो गर्भावस्थाओं के लिए ही यह अवकाश ले सकती हैं। अगर आपका तीसरा बच्चा होने जा रहा है तो आप सिर्फ 12 सप्ताह के अवकाश की ही हकदार हैं। तीन माह या उससे छोटे शिशु को गोद लेने पर भी महिलाओं को 12 सप्ताह का वैतनिक अवकाश लेने का अधिकार मिला।
7- तीन तलाक
जुलाई 201 9 में मोदी सरकार ने मुस्लिम महिलाओं से इस खास बिल को दोनों सदनों से पास कराया जा चुका है। इसके तहत तीन तलाक यानी तलाक-ए-बिद्दत गैरकानूनी और अवैध माना जाएगा। इस बिल में प्रावधान किया गया है कि एक साथ तीन तलाक देने वाले आरोपियों को तीन साल की सजा दी जाएगी। हालांकि, इस प्रावधान को लेकर विपक्ष ने विरोध भी किया। 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक की प्रथा पर रोक लगाई थी। पांच जजों की पीठ ने तुरंत तलाक देने के इस रिवाज को असंवैधानिक करार दिया था। उत्तराखंड की शायरा बानो की याचिका पर कोर्ट ने यह फैसला सुनाया था। शायरा को उनके पति ने तीन बार तलाक लिख कर चिट्टी भेजी थी। इसी के बाद शायरा इस मामले को कोर्ट में ले गईं थी।