Medical Education In abroad : डब्ल्यूएचओ (WHO) के मुताबिक प्रति 1000 की आबादी पर एक डॉक्टर की जरूरत है। इसके मुताबिक भारत की 138 करोड़ जनसंख्या के हिसाब से 1.38 करोड़ डॉक्टर चाहिए। नेशनल हेल्थ प्रोफाइल डाटा के आंकड़ों के अनुसार 2021 तक केवल 12 लाख रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिशनर (RMP) थे। और इस समय भारत में 83,000 MBBS सीटें उपलब्ध हैं। लगभग 16 लाख उम्मीदवार मेडिकल परीक्षा में हर साल शामिल होते हैं।
नई दिल्ली। रूस के हमले (Russian Attack on ukraine)के बाद यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई कर रहे भारतीय छात्रों की किस्मत दांव पर है। हाल ही में यह सवाल तमाम बार पूछा गया कि भारतीय छात्र पढ़ने के लिए यूक्रेन क्यों जाते हैं। विदेश से अपनी मेडिकल एजुकेशन पूरी करने वालों पर भी बड़े पैमाने बहस हुईं। यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद लोग पूछ रहे हैं कि आखिर वहां जाने की जरूरत क्या थी? पूछा जा रहा है कि क्या गारंटी है कि जो भारतीय मेडिकल एग्जामिनेशन में अच्छा नहीं करेंगे, वे विदेश से चिकित्सा शिक्षा लेकर वापस आएंगे और बेहतर करेंगे? कितने भारतीय छात्र विभिन्न देशों से शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं? वे कौन से देश हैं जिन्हें ये छात्र पसंद करते हैं? आइए, इसे बारीकी से समझते हैं।
प्रति एक हजार आबादी पर एक डॉक्टर की जरूरत
भारत में मेडिकल एजुकेशन : डब्ल्यूएचओ (WHO) के मुताबिक प्रति 1000 की आबादी पर एक डॉक्टर की जरूरत है। इसके मुताबिक भारत की 138 करोड़ जनसंख्या के हिसाब से 1.38 करोड़ डॉक्टर चाहिए। नेशनल हेल्थ प्रोफाइल डाटा के आंकड़ों के अनुसार 2021 तक केवल 12 लाख रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिशनर (RMP) थे। और इस समय भारत में 83,000 MBBS सीटें उपलब्ध हैं। लगभग 16 लाख उम्मीदवार मेडिकल परीक्षा में हर साल भाग लेते हैं।
भारत में डेढ़ करोड़ खर्च, यूक्रेन में 30 लाख
निजी कॉलेजों में प्रति सीट खर्च की बात करें तो साढ़े 4 साल के कोर्स के लिए 50 लाख रुपए से लेकर 1.5 करोड़ रुपए तक खर्च आता है, जबकि विदेशों में यही कोर्स महज 20 से 30 लाख रुपए में हो जाता है। 2015 से 2020 के बीच विदेशों में मेडिकल एजुकेशन लेने वालों की संख्या में तीन गुना इजाफा हुआ है।
विदेश की मेडिकल डिग्री इस परीक्षा के बाद मान्य
विदेश से मेडिकल की पढ़ाई करने वाले छात्रों को भी विदेशी चिकित्सा स्नातक परीक्षा (FMGE) देनी पड़ती है। यह एक वर्ष में दो बार होती है। इसके लिए छात्र को तीन मौके दिए जाते हैं। यह परीक्षा पास करने के बाद उन्हें भारत में प्रैक्टिस की अनुमति मिल जाती है। डेटा बताता है कि FMGE 2015 में 12,116 उम्मीदवारों ने परीक्षा दी थी, जो 2020 बढ़कर 35,774 हो गई। दिलचस्प बात यह है कि इसी अवधि में भारतीय मेडिकल कॉलेजों में सीटों में केवल 30,000 की वृद्धि हुई।
इन देशों में जाते हैं भारतीय छात्र
रूस और यूक्रेन युद्ध के बीच यह जानकारी मिली कि 20,000 से अधिक भारतीय छात्र यूक्रेन में मेडिकल एजुकेशन ले रहे हैं और विभिन्न सेमेस्टर में हैं। लेकिन यूक्रेन अकेला देश नहीं है, जहां भारतीय मेडिकल एजुकेशन के लिए जाते हैं। चीन, रूस, किर्गिस्तान, फिलीपींस और कजाकिस्तान जैसे देशों में भी भारतीय मेडिकल एजुकेशन के लिए जाते हैं।
चीन के सबसे ज्यादा छात्रों ने दी FMGE
2020 में चीन से मेडिकल एजुकेशन की पढ़ाई करने वाले 12,680 उम्मीदवार FMGE में बैठे। इस दौरान रूस के 4,258 छात्र, यूक्रेन से 4,153, किर्गिस्तान से 4,156, फिलीपींस से 3,142 और कजाकिस्तान से 2,311 छात्र शामिल थे।
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5 साल में 16 फीसदी ने ही पास की FMGE
एनबीई के आंकड़ों से दिलचस्प तथ्य सामने आए हैं। इसके मुताबिक, विदेश से मेडिकल की डिग्री हासिल करने वाले छात्र भारत में होने वाली परीक्षाओं को पास नहीं कर पाते हैं। पिछले पांच वर्षों में भारत में आयोजित परीक्षाओं में केवल 15.82 प्रतिशत छात्र सफल रहे हैं। यानी जो छात्र परीक्षा में पास नहीं हुए, उन्हें यहां प्रैक्टिस की इजाजत नहीं है।
यूक्रेन से पढ़ने वाले 16 प्रतिशत ने पास की FMGE
2022 में चीन से मेडिकल की पढ़ाई करने वाले केवल 13 प्रतिशत छात्रों ने FMGE परीक्षा पास की। यूक्रेन से लौटने वाले केवल 16 प्रतिशत छात्र ही पास हो सके। मेडिकल डिग्री के साथ फिलीपींस से लौटने वालों का प्रतिशत अच्छा रहा। 2019 में 50.2 प्रतिशत ने एफएमजीई परीक्षा पास की और 2020 में 33.7 प्रतिशत ने यह परीक्षा पास की। यानी फिलीपींस से मेडिकल पढ़ने वालों की संख्या में इजाफा हुआ।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
नेशनल मेडिकल काउंसिल की डॉ. अरुणा वणिकर ने एक प्रमुख समाचार पत्र को अपनी राय में कहा था कि जो लोग विदेश से मेडिकल एजुकेशन की पढ़ाइ कर रहे हैं वे बेहतर नहीं होते हैं। एफएमजीई के आंकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं। इसलिए, भारत में चिकित्सा शिक्षा का बेवजह के खर्च पर बात करने की जरूरत है। उन्होंने भारत में मेडिकल सीटों में वृद्धि की भी वकालत की। उन्होंने कहा कि मेडिकल कॉलेजों को बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर दें, क्योंकि इससे मेडिकल के इच्छुक उम्मीदवारों को विदेश जाने से रोका जा सकेगा।
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