किसान आंदोलन: जानिए पंजाब और हरियाणा के किसान क्यों हैं सड़कों पर; एमएसपी या कुछ और है वजह

देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने एक बार कहा था कि सब कुछ इंतजार कर सकता है, लेकिन खेती नहीं। हालांकि, आज यह स्थिति नजर नहीं आ रही है। मिट्टी के पुत्र कहे जाने वाले किसान सड़कों पर हैं। इनमें से कुछ भ्रमित हैं, कुछ मोदी सरकार द्वारा कृषि सुधारों के लिए लाए गए कानूनों के बारे में अनिश्चित हैं। 

Asianet News Hindi | Published : Dec 15, 2020 11:39 AM IST / Updated: Dec 15 2020, 06:05 PM IST

नई दिल्ली. देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने एक बार कहा था कि सब कुछ इंतजार कर सकता है, लेकिन खेती नहीं। हालांकि, आज यह स्थिति नजर नहीं आ रही है। मिट्टी के पुत्र कहे जाने वाले किसान सड़कों पर हैं। इनमें से कुछ भ्रमित हैं, कुछ मोदी सरकार द्वारा कृषि सुधारों के लिए लाए गए कानूनों के बारे में अनिश्चित हैं। पंजाब और हरियाणा के किसान करीब 15 दिन से राजधानी और उसके आसपास जमे हुए हैं। जबकि देश के अन्य हिस्सों में रहने वाले उनके किसान भाई मोदी सरकार द्वारा लाए गए 3 कृषि कानूनों की तारीफ कर रहे हैं।  

सोमवार को उत्तर प्रदेश, केरल, तमिलनाडु, तेलंगाना, बिहार, हरियाणा के करीब 10 किसान संगठनों ने कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से मुलाकात की और तीनों कानूनों के प्रति अपना समर्थन दिया और उनकी तारीफ की। विरोध स्थल पर पिज्जा, फुट मसाज करने वाली मशीनों, ट्रैक्टरों पर डीजे और अन्य अव्यवस्थाओं से ध्यान दूर हटाते हुए, आइए सबसे पहले समझते हैं कि क्यों किसानों को दिल्ली के बाहर इतनी सर्दी में डेरा डालना पड़ा है।


कृषि मंत्री से मुलाकात करते किसान संगठनों के नेता।

किसानों की मांग: 3 नए कानूनों को रद्द किया जाए

तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का विरोध इन धाराओं की वजह से सामने आया है।
 
उदाहरण के तौर पर-

सरकार ने कहा- कानून किसानों के लिए लाभकारी
 
- वहीं, दूसरी ओर सरकार कह रही है कि इन नए कानूनों को किसानों को आजादी मिलेगी। वे अपने उत्पादों को कहीं भी बेच सकते हैं। 
- नए नियमों से किसानों को उन जोखिमों से राहत मिलेगी, ताकि वे महंगी फसलों की खेती कर सकें, बिना इस चिंता के कि फसलों की कीमत कटाई के मौसम में कम हो जाएगी। 
-  किसानों को लंबे समय में होने वाले लाभों के लिए, सरकार का नया कानूनी ढांचा भारत में कृषि विपणन को स्थिर करता है। नया कानून यह सुनिश्चित करता है कि एपीएमसी बाजार अन्य बाजारों से प्रतिस्पर्धा का सामना करें, उन्हें प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए अपने स्वयं के कामकाज में सुधार करने की जरूरत होगी।




सरकार बता रही ये अन्य लाभ

 - किसान अब अपनी उपज पर बाजार शुल्क, करों और उपकर की लंबी सूची का भुगतान करने के लिए बाध्य नहीं होंगे, जिससे उनके रिटर्न में सुधार होगा।
- कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग मूल्य आश्वासन के रूप में कार्य करती है। यह किसानों के लिए अनुकूल है।
- किसानों को आधुनिक इनपुट, सेवाओं और मूल्य जोखिम के खिलाफ सुरक्षा तक पहुंचने का अधिकार होगा।
- निर्यात प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी, जिससे किसानों को लाभ होगा। इससे किसानों को सौदेबाजी की छूट मिलेगी। इससे उन्हें बेहतर लाभ मिलेगा।

सरकार ने दिए ये प्रस्ताव 
विरोध प्रदर्शनों के चलते, सरकार ने निजी व्यापारियों या कंपनियों के रजिस्ट्रेशन, कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में विवाद के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट, एपीएमसी को मजबूत करने जैसे संसोधनों का प्रस्ताव भी दिया है। इसके बावजूद किसानों ने इन्हें खारिज कर दिया। किसान तीनों कानूनों को रद्द करने की मांग पर टिके हैं। 
 

किसानों पर हो रही राजनीति
कुछ लोगों के नेतृत्व में हजारों किसान राष्ट्रीय राजधानी के पास डेरा डाले हुए हैं। नेतृत्व करने वाले लोग किसानों के हितों का प्रतिनिधित्व करने का दावा करते हैं। चाहें कुछ भी हो, इन आंदोलनों ने उन राजनीतिक दलों की पोल खोल दी है, जो खुद को किसानों का हितैषी बताते हैं। 

लेफ्ट पार्टी सीपीआई-एम को ही देख लीजिए, जो एपीएमसी के विरोध में सड़कों पर है। सीपीआई ने 2019 के घोषणा पत्र में वादा किया था कि एपीएमसी एक्ट को हटाएंगे, जो कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की वकालत करता है। कृषि बाजारों में किसान-अनुकूल सुधार लाएंगे। 

आपको जानकर हैरानी होगी कि केरल में एपीएमसी नहीं है। यहां किसानों से उनकी फसलों की खरीद केरल राज्य बागवानी उत्पाद विकास निगम या सब्जी और फल संवर्धन परिषद केरलम द्वारा की जाती है। किसानों का मानना है कि एपीएमसी लॉबी द्वारा चलाए जाते हैं जो उनकी उपज की कम कीमत निर्धारित करते हैं।

 हालांकि, मुख्य चिंता कृषि क्षेत्र में निजी कंपनियों या कॉरपोरेट्स के प्रवेश को लेकर बनी हुई है। वहीं, इस मुद्दे पर भी कांग्रेस अपने दोहरे रवैए के साथ है। पार्टी ने अपने 2019 के चुनाव घोषणापत्र में वादा किया था, "कृषि उपज बाजार समितियों (एपीएमसी) के अधिनियम को निरस्त किया जाएगा। कृषि उपज को प्रतिबंधों से मुक्त बनाने का प्रस्ताव भी दिया गया था। यहां तक की कांग्रेस से निकाले गए संजय झा ने भी कहा कि आज मोदी सरकार जो बिल लेकर आई है, 2019 में कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में वही वादे किए थे। 

पंजाब-हरियाणा के किसान क्यों कर रहे विरोध?
ऐसा क्यों है कि देश के अन्य हिस्सों जैसे मध्य प्रदेश या महाराष्ट्र में किसान कृषि कानूनों पर विरोध क्यों नहीं कर रहा? खैर, इसका जवाब शायद पंजाब का विकास है। 
 
पंजाब के कृषि क्षेत्र ने पिछले कुछ सालों में देश में सबसे तेजी से बढ़ती राज्य कृषि अर्थव्यवस्थाओं के बीच अपना स्थान खो दिया है। पंजाब को कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, और पश्चिम बंगाल समेत कई अन्य राज्यों ने पीछे छोड़ दिया है।

पंजाब और हरियाणा में एमएसपी को समस्या का बड़ा कारण माना जा रहा है। मूल्य में उतार-चढ़ाव से सुरक्षा के मुकाबले एमएसपी को राजस्व में वृद्धि के रूप में देखा जाता है। 

पंजाब सरकार ने किसानों से एक साल में कमाए 3,623 करोड़ रु
आंकड़े बताते हैं कि नए कानून पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों को प्रभावित करेंगे जो सरकार-विनियमित बाजारों में बेची गई वस्तुओं पर लगाए गए कर और कर के माध्यम से कमाते हैं। पंजाब ने पिछले साल बाजार उपकर और बाजार विकास शुल्क के नाम पर 3% लगाकर 3,623 करोड़ रुपए कमाए हैं। 
 
सरकारी आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि APMC मंडी शुल्क पंजाब में 8.5%, हरियाणा में 6.50%, उत्तर प्रदेश में 4.05%, मध्य प्रदेश में 3.75% और राजस्थान में 3.15% है। पंजाब में किसान बिचौलियों पर भरोसा करते हैं जो उपज पर कमीशन लेते हैं। पंजाब में 36000 लाइसेंस धारक बिचौलिए या आढ़तिया हैं, कथित तौर पर इन लोगों ने पिछले साल 2.5% कमीशन के साथ 1611 करोड़ रुपए कमाए हैं। 

इसे ध्यान में रखते हुए, यह आश्चर्यजनक नहीं है कि पंजाब सरकार और बिचौलिए नए कृषि कानूनों को खतरे के रूप में क्यों देखते हैं।

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