जेरेमी लालरिनुंगा का राज: सोना जीतने से पहले ही जेरेमी के फोन वॉलपेपर पर सज गया था कॉमनवेल्थ का 'गोल्ड मेडल'

जेरेमी लालरिनुंगा भी अन्य युवाओं की तरह ही अपने फोन के वॉलपेपर बदलते रहते हैं। कभी दोस्तों के साथ तो कभी प्रैक्टिस करते हुए वे अक्सर डीपी चेंज करते रहते हैं। वॉलपेपर बलदते रहते हैं। लेकिन 4 मई से उन्होंने एक वॉलपेपर फिक्स कर दिया था।

Manoj Kumar | Published : Aug 1, 2022 11:32 AM IST / Updated: Aug 01 2022, 05:13 PM IST

Jeremy Lalrinunga. इसे जीत का विश्वास कहें या हार न मानने की जिद। 19 वर्षीय जेरेमी लालरिनुंगा ने 4 महीने से अपने फोन का वॉलपेपर चेंज नहीं किया है। आप यह जानकर चौंक जाएंगे कि आखिर इस वॉलपेपर में ऐसा क्या है, जो जेरेमी ने बदला ही नहीं। जी हां तो वह वॉलपेपर कुछ और नहीं बल्कि कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड मेडल की तस्वीर थी। मिजोरम के रहने वाले जेरेमी ने गोल्ड जीतने से पहले ही अपना वॉलपेपर गोल्ड मेडल का लगा लिया और अंततः उसे हासिल करके ही दम लिया।

कब लगाया गोल्ड मेडल का वॉलपेपर
जेरेमी ने कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड जीतने से पहले एक इंटरव्यू में कहा कि जब राष्ट्रमंडल खेलों के पदकों का डिजाइन जारी किया गया, तो हमने तुरंत सोशल मीडिया से तस्वीर डाउनलोड कर ली। मैंने स्वर्ण पदक को अपने वॉलपेपर के रूप में सहेज लिया। जब मैं सुबह उठता हूं तो यह पहली चीज होती है जिसे देखता हूं। सोने से पहले यह आखिरी चीज होती है, जो मेरे सपनों में आती है। यही मेरे लिए बहुत बड़ी प्रेरणा है। 

पिता के गोल्ड मेडल से खेलते थे जेरेमी
मिजोरम के रहने वाले जेरेमी हमेशा से चमकदार चीजों के प्रशंसक रहे हैं। जब वे बच्चे थे और आइजोल में पल-बढ़ रहे तो उनके पास कुछ खिलौने थे, जिनसे बेहद लगाव था। वे अपने पिता के दो गोल्ड मेडल से अक्सर खेलते थे, जिसे उनके पिता लालनीहट्लुआंगा ने सब जूनियर राष्ट्रीय स्तर पर जीते थे। जेरेमी बताते हैं कि वे मेडल हमारे घर की दीवार पर लटके रहते थे लेकिन मैं और मेरा भाई हर समय उनके साथ खेलते थे। हम दिखावा करते थे कि हम ही चैंपियन हैं। खेलते समय हमने उनका एक पदक भी खो दिया था। हालांकि अब जेरेमी का खुद का गोल्ड मेडल उनके घर की दीवार की शोभा बढ़ाएगा।

पिता को बेटे पर है गर्व
जेरेमी के पिता लालनीहट्लुआंगा को अपने बच्चों से कोई आपत्ति नहीं थी। जेरेमी पांच भाइयों में से एक है जो उनके पदकों के साथ खेलते थे। वहीं पिता ने भी अपने बेटे से कुछ पदक जीतने की उम्मीद की थी। तब उनके पास दो विकल्प थे। वे या तो बॉक्सिंग कर सकते थे या वेटलिफ्टर बन सकते हैं। 8 साल की उम्र में जेरेमी ने वेटलिफ्टिंग को चुना। पिता ने बताया कि तब मैंने सोचा था कि यह मजेदार होगा। उन्होंने आइजोल में स्टेट स्पोर्ट्स कोचिंग सेंटर में वेटलिफ्टिंग अकादमी में प्रशिक्षण शुरू किया। तब बांस की छड़ें और पानी के पाइप का उपयोग करके वजन उठाना सीखा। 

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