
बांसवाड़ा ( banswara). आमतौर पर हम देखते हैं कि राजस्थान में ग्रामीण इलाकों में किसी शख्स किसी संत महात्मा की मौत के बाद उसकी जमीन पर समाधि बनाई जाती है या फिर उसके नाम से कोई पत्थर गाड़ दिया जाता है। लेकिन राजस्थान के आदिवासी इलाके बांसवाड़ा में बुजुर्ग की इच्छा पर परिवार ने यह काम पहले ही किया है। परिवार ने खेत में उनकी समाधि बनाकर एक पत्थर लगाया है।
सालों पुरानी है परंपरा, आज भी होता है पालन
यहां कुशलगढ़ के धरती खेड़ा क्षेत्र में बोराज गांव में हाल ही में 1 साल पहले दो भाइयों की मौत हो गई। उनकी मौत से पहले वो ऐसे में परिवार के बुजुर्गों ने निर्णय किया कि अभी वह दोनों जिंदा है तो अभी समाधि बना दी जाए। परिवार ने भी यह बात मानी और जिंदा रहते ही उन दोनों की समाधि बना दी है। परिवार के बुजुर्ग 90 साल के दुबलिया डिंडोर ने बताया कि वह और उनके 85 साल के भाई धीरजी हैं। दोनों के परिवार में कुल 13 लोग हैं। जिन्होंने लाखों रुपए की लागत से इस समाधि को एक आकर्षक रूप दिया है। राजस्थान की यह परंपरा करीब 100 साल पुरानी है। गांव के सभी लोग पूरे नियम से इसका पालन आज भी करते आ रहे है।
पहली बार किसी की मौत के पहले बनी समाधि
इस परंपरा का निर्वहन वैसे तो किसी शख्स की मौत के बाद होता है। तब पूरे गांव को उसके लिए निमंत्रण भेजा जाता है। पूरे विधि-विधान और अनुष्ठान के साथ समाधि बनाई जाती है और फिर पूरे गांव का भोज किया जाता है। परिवार की माने तो इस कार्यक्रम में उनके करीब 5 लाख रुपए का खर्च आया है। पर उनके घर के बुजुर्गों की इच्छा थी इसलिए उनके जाने से पहले इनका निर्माण कराया गया।
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