जुलाई से पहले ताउम्र की जुदाई: एक महीने बाद घर आने वाले थे विजय, बहू ने कहा था- मां चिंता मत करिए हम आ रहे हैं

शुक्रवार को जब विजय के छोटे भाई ने उन्हें मुखाग्नि दी तो हर कोई तड़प उठा। आंखे नम हो गई। चिता पर बेटे के शव से पिता बार-बार जाकर लिपट रहे थे। बार-बार बुला रहे थे कि मेरे लाल वापस आ जा। इधर, मां और पत्नी बेसुध पड़ी हैं।

जयपुर : जम्मू-कश्मीर (Jammu & Kashmir) के कुलगाम (Kulgam) में बैंक मैनेजर विजय की हत्या के बाद अब परिवार का दर्द रह रहकर सामने आ रहा है। टारगेट किलिंग के शिकार हुए ग्रामीण बैंक के प्रबंधक विजय कुमार (Vijay Kumar) जुलाई में घर लौटने वाले थे। मां रामेती देवी से वादा कर चुके थे और हनुमानगढ़ (Hanumangarh) आने की तैयारी कर ली थी। लेकिन भगवान को कुछ और ही मंजूर था। वे जुलाई की जगह जून में ही घर लौटे लेकिन कभी नहीं लौटने के लिए। गांव में मातम पसरा हुआ है। घर में कोहराम मचा हुआ और पत्नी विजय की फोटो को सीने से लगाए इतना रो चुकी है कि आंखों का पानी भी सूख गया है। 

मां चिंता मत करिए हम आ रहे हैं..
दरअसल कश्मीर की नौकरी से विजय भी परेशान थे। वे भी वापस अपने गांव लौटना चाहते थे। विजय और उनकी पत्नी ने राजस्थान में शिक्षक बनने की परीक्षाओं की तैयारी की थी। रीट भर्ती परीक्षा की तैयारी भी चल रही थी। जुलाई में होने वाली रीट परीक्षा के लिए वे अगले महीने लौटने वाले थे। मां चाहती थी कि बेटा कम से कम एक महीने के लिए लौटे, लेकिन विजय ने कहा था कि मां 15 दिन की छुट्टी ही मिल सकती है। बहू ने कहा था कि मां हम एक महीने के लिए ही आ रहे हैं, आप चिंता मत कीजिए, छुट्टी भी मिल ही जाएगी।

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दो दिन पहले ही मां ने फोन कर बुलाया था
मंगलवार को जिस समय कश्मीर में हिंदू शिक्षिका की हत्या हुई थी, उनको स्कूल में घुसकर गोली मार दी गई थी उसके कुछ समय के बाद भी रामेती देवी ने अपने बेटे विजय से बात की थी। कहा था कि बेटा अब घर आ जा, कम खा लेंगे, लेकिन माहौल सही नहीं है। डर बना रहता है, हमारा दिल सा बैठ जाता है। बेटे ने भी मां से लौटकर आने का वादा किया था।

हर वक्त बैठा रहता था मां का दिल
विजय की उम्र सिर्फ 26 साल ही थी। 24 साल छह महीने के थे जब पहली नौकरी लगी थी। परिवार खुश था कि बेटे का सरकारी नौकर हो गया। पता चला कि कश्मीर जाना होगा तो परिवार एक बार तो सहम गया था। लेकिन जैसे तैसे दिन बीतने लगे। जब भी कोई आतंकी मुठभेढ़ या आतंकी हमले की खबर कश्मीर से आती तो गांव के लोग विजय के घर आ जाते थे। मां को बहुत परेशानी होती थी। जब भी किसी आतंकी हमले की खबर आती थी, तो मां का दिल दहल जाता था। सबसे पहले बेटे को फोन करती और उसके बारे में पूछताछ करने की कोशिश करती। लेकिन बेटा फोन नहीं उठा पाता तो बहू से बात करती और कुशलक्षेम लेती। हर बार कश्मीर में गोली चलते ही मां अपने बेटे बहू के बारे में जानकारी ले लेती थीं लेकिन इस बार किसे पता था कि इस गोली पर विजय का नाम ही लिखा है। 

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