Rajasthan Foundation Day: कुछ ऐसा है राजपूताने से राजस्थान बनने का सफर, पूरी दुनिया जिसकी वीरता को करती है नमन

राजस्थान 30 मार्च साल 1949 को अस्तित्व में आया। इसलिए हर साल 30 मार्च को राजस्थान स्थापना दिवस मनाया जाता है। राजधानी जयपुर की स्थापना राजा जय सिंह द्वितीय ने की थी। पहले मनोनीत मुख्यमंत्री हीरालाल शास्त्री थे जबकि पहले निर्वाचित मुख्यमंत्री टीकाराम पालीवाल थे।

Asianet News Hindi | Published : Mar 30, 2022 4:28 AM IST / Updated: Mar 30 2022, 09:59 AM IST

जयपुर : राजस्थान आज 72 साल का हो गया। हर साल 30 मार्च को राजस्थान स्थापना दिवस (Rajasthan Foundation Day 2022) मनाया जाता है। इस दिन यहां की मिट्टी की वीरता, दृढ़ इच्छाशक्ति और बलिदान को याद किया जाता है। राजस्थान अपनी शानदार संस्कृति और गौरवमयी इतिहास के लिए जाना जाता है। आन, बान, शान शौर्य, साहस, कुर्बानी और त्याग की भूमि राजस्थान पहले राजपूताना के नाम से जाना जाता था। आजादी मिलने के साथ ही 15 अगस्त 1947 को यहां की रियासतों को भारत संघ में मिला दिया गया और नाम पड़ गया राजस्थान। स्थापना दिवस के मौके पर जानिए 'राजपूताने' से 'राजस्थान' बनने तक का सफर..

राजपूताना बना राजस्थान
जार्ज थॉमस ने साल 1800 ईसा में 'राजपूताना' नाम दिया था। कर्नल जेम्स टॉड ने 1829 ईसा में अपनी पुस्तक 'द एनाल्स एंड एक्टीविटीज ऑफ राजस्थान' में इसका जिक्र किया है। कर्नल जेम्स टॉड ने अपनी किताब में राजस्थान को दी सेन्ट्रल वेस्टर्न राजपूत स्टेट्स ऑफ इंडिया कहा है। आजादी से पहले राजस्थान को राजपूताना के नाम से ही जाना जाता है। राजपूताना में 23 रियासतें, एक सरदारी, एक जागीर और अजमेर-मेवाड़ का ब्रिटिश जिला शामिल थे। शासक राजकुमारों में अधिकांश राजपूत थे।

सिंधु घाटी सभ्यता के साक्ष्य
प्राचीन काल में राजस्थान के कुछ हिस्से वैदिक और सिंधु घाटी की सभ्यता से मिलते हैं। बूंदी और भीलवाड़ा जिलों में पाषाण युग के साक्ष्य मिले हैं। वैदिक सभ्यता का मत्स्य साम्राज्य आज के जयपुर (Jaipur) शहर है।  मत्स्य साम्राज्य की राजधानी विराटनगर थी जिसका नामकरण इसके संस्थापक राजा विराट के नाम पर हुआ था। वहीं, भरतपुर, धौलपुर और करौली प्राचीन काल में  सूरसेन जनपद में आते थे, इनकी राजधानी मथुरा थी। भरतपुर के नोह में खुदाई के दौरान उत्तर-मौर्यकालीन मूर्तियां और बर्तन मिले हैं।

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गुर्जरों के बाद राजपूतों का शासन

इतिहासकारों के मुताबिक, 700 ईस्वी में यहां के अधिकांश हिस्सों पर गुर्जरों का राज हुआ करता था। उन्होंने अपनी राजधानी कन्नौज बनाई थी। गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य ने तकरीबन 11वीं शताब्दी तक अरब आक्रमणकारियों से अपने साम्राज्य की रक्षा की। यहां ब्राह्मण राजपूत, जाट, मीणा, यादव, मौर्य शासन, गुप्त शासन, यवन-शुंग, कुषाण, हूण और वर्धन साम्राज्य का भी शासन रहा। एक हजार ईस्वी के दौरान कुछ इलाकों पर राजपूतों का कब्जा रहा। तराइन के दूसरे युद्ध के बाद इसका एक हिस्सा मुस्लिम शासकों के अधीन हो गया। 13वीं शताब्दी आते-आते भारत पर मुस्लिम शासकों का शासन हो गया और ज्यादात्तर राजपूत शासक दिल्ली सल्तनत के अधीन काम करने लगे। हालांकि कई राजपूत शासकों ने अरब आक्रमणकारियों का विरोध भी किया था। 

राजपूताना मराठों का साम्राज्य 
15वीं शताब्दी में अलवर के रहने वाले हेम चंद्र विक्रमादित्य ने अफगान शासकों को एक-दो बार नहीं बल्कि 22 बार युद्ध में धूल चटाया। जिसमें मुगल सम्राट अकबर भी था। हालांकि 1556 में मुगलों के खिलाफ पानीपत की दूसरी लड़ाई के दौरान हेम चंद्र की हार हुई औऱ वह मारा गया। जिसके बाद अकबर का साम्राज्य स्थापित हो गया और कई सम्राटों ने मुगल साम्राज्य को स्वीकार कर लिया। इसके कई साल बात 17 वीं शताब्दी के बाद मुगल साम्राज्य का धीरे-धीरे जब पतन होने लगा तब राजपूताना मराठे प्रभाव में आए लेकिन वे ज्यादा दिन तक राज नहीं कर सके। इसके बाद ब्रिटिश सरकार का राज स्थापित हो गया।

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भारत संघ का हिस्सा

राजस्थान की रियासतों को 15 अगस्त 1947 को भारत संघ में मिला दिया गया था, लेकिन उनका एकीकरण एक साल बाद ही हो पाया।विलय के पहले चरण में मत्स्य संघ का निर्माण अलवर, भरतपुर, धौलपुर और करौली को मिलाकर किया गया और इसका उद्घाटन 17 मार्च, 1948 को किया गया। राजस्थान संघ का उद्घाटन 25 मार्च, 1948 को हुआ, जिसमें बांसवाड़ा, बूंदी, डूंगरपुर, झालावाड़, किशनगढ़, प्रतापगढ़, शाहपुरा, टोंक, कोटा शामिल थे। कोटा को इस संघ की राजधानी बनाया गया। कोटा नरेश को राजप्रमुख पद पर और गोकुल लाल असावा को मुख्यमंत्री बनाया गया। उसके बाद उदयपुर महाराणा ने संघ में सम्मिलित होने का निर्णय लिया। उदयपुर महाराणा को इस राजस्थान संघ का राजप्रमुख और कोटा नरेश को उप राजप्रमुख बनाया गया। राजस्थान संघ की स्थापना के साथ ही बीकानेर (Bikaner), जैसलमेर (Jaisalmer), जयपुर और जोधपुर (Jodhpur) जैसी बड़ी रियासतों के संघ में विलय का रास्ता साफ हो गया।

30 मार्च, 1949 को उद्घाटन 
इसके बाद 30 मार्च, 1949 को सरदार वल्लभ भाई पटेल (Vallabhbhai Patel) ने इसका विधिवत् उद्घाटन किया। जयपुर महाराजा को राज प्रमुख, कोटा नरेश को उप राजप्रमुख के पद सौंपा गया और हीरालाल शास्त्री के नेतृत्व में मंत्रिमंडल बनाया गया। मार्च, 1952 में राजस्थान विधानसभा अस्तित्व में आई, लेकिन राजस्थान की जनता ने रियासत काल में ही संसदीय लोकतंत्र का अनुभव कर लिया। 26 जनवरी 1950 को भारत सरकार की ओर से राजस्थान को राज्य की मान्यता दी गई और इसकी राजधानी जयपुर को बनाया गया।

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