
सीकर (राजस्थान). करगिल युद्ध में शहीद सीकर जिले के रोरू बड़ी गांव निवासी जगमाल सिंह का परिवार देशभक्ति की मिसाल है। पहले पिता भैरों सिंह शेखावत फौज में थे। बाद में पिता की वीरता की गाथाएं सुनकर बड़े हुए बेटे जगमाल ने भी महज 18 साल की उम्र में सेना में नियुक्ति हासिल कर ली। चार साल बाद ही करगिल युद्ध हुआ तो बहादुरी से लड़ता हुआ जगमाल सिंह महज 22 वर्ष की उम्र में अपनी जान देश के नाम कुर्बान कर गया। लेकिन, पिता व बेटे की देश सेवा के जज्बे की राज्य सरकार 22 साल से अनदेखी कर रही है। शहीद के आश्रितों को अब तक सरकार ने अनुकंपा नियुक्ति नहीं दी है। जिसके चलते बुजुर्ग मां मोहन कंवर 22 साल से दर दर भटकती फिर रही है।
18 साल की उम्र में हुई सेना में भर्ती
1977 में जन्मे जगमाल सिंह 18 साल की उम्र में ही सेना में भर्ती हो गए थे। जिनकी पहली नियुक्ति 1995 में मध्यप्रदेश के ग्वालियर में हुई। बाद में उन्हें कूपवाड़ा भेज दिया गया। चार साल ही नियुक्ति को हुए कि 1999 में कारगिल युद्ध छिड़ गया। जहां उन्हें तोलोलिंग पर्वत की नोल पिक पर दुश्मन से मुकाबला करने भेजा गया। जहां अपने साथियों के साथ वह दुश्मनों के दांत खट्टे करते हुए आगे बढ़ रहे थे। इसी दौरान दुश्मन सैनिकों ने धोखे से उन पर पीछे से हमला कर दिया। जिसमें एक गोली उनके प्राणों का उत्सर्ग कर गई।
मां लगा रही नौकरी की गुहार
शहीद जगमाल सिंह के परिवार को 22 साल से अनुकंपा नियुक्ति का इंतजार है। लेकिन, राज्य सरकार नियमों का हवाला देते हुए नौकरी नहीं दे रही है। सरकार पहले तो केंद्र सरकार से शहीद पैकेज में मिलने वाले पेट्रोल पंप का हवाला देते हुए नौकरी देने से बचती रही। फिर जब पिछले साल नौकरी की घोषणा की तो जगमाल के अविवाहित होने का अडंगा लगा दिया। तब से मां शहीद की अनुकंपा नियुक्ति के लिए भटक रही है।
जिस स्कूल में पढ़े, उसी का शहीद नामकरण
जगमाल सिंह की शहादत के बाद परिवार को केंद्र सरकार का पैकेज मिल चुका है। इसके अलावा गांव की सरकारी स्कूक का नाम भी शहीद के नाम से कर दिया गया है। ये वही स्कूल है जिसमें शहीद जगमाल सिंह खुद भी पढ़ते हुए दोस्तों को अपने पिता की वीरता के किस्से सुनाता था।
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