Deep Dive with Abhinav Khare: सन्यास और त्याग के बीच का फर्क समझाते हैं श्रीकृष्ण

Published : Oct 25, 2019, 09:53 PM ISTUpdated : Nov 18, 2019, 03:53 PM IST
Deep Dive with Abhinav Khare: सन्यास और त्याग के बीच का फर्क समझाते हैं श्रीकृष्ण

सार

गीता के आखिरी अध्याय में कृष्ण अर्जुन को सन्यास के बारे में बताते हैं। वे सन्यास और त्याग के बीच का अंतर भी समझाते हैं। सन्यास अपनी इच्छाओं को खत्म कर देना है और त्याग अपने कर्म से मिलने वाले फल को अस्वीकार करना है।

गीता के आखिरी अध्याय में कृष्ण अर्जुन को सन्यास के बारे में बताते हैं। वे सन्यास और त्याग के बीच का अंतर भी समझाते हैं। सन्यास अपनी इच्छाओं को खत्म कर देना है और त्याग अपने कर्म से मिलने वाले फल को अस्वीकार करना है। कृष्ण अर्जुन को ज्ञान, कर्म और हर इंसान के गुणों से संबंधित अवधारणा को भी समझाते हैं। सात्विक ज्ञान हमें बताता है कि कैसे हम अलग होकर भी एक हैं। राजसिक ज्ञान अलग-अलग और एक दूसरे से संबंध न रखने वाले व्यक्तियों की बात करता है, जबकि तामसिक ज्ञान चीजों की सच्चाई छुपाता है। सात्विक कार्य शुद्ध मन से किए जाने वाले कार्य होते हैं, राजसिक कार्य इच्छाओं की पूर्ति के लिए किए जाते हैं और तामसिक कार्य इंसान भ्रम का शिकार होने का बाद करता है। यह अध्याय कृष्ण के उस वाक्य के साथ समाप्त होता है जिसमें बताया गया है कि योग के एक व्यक्ति को कैसे उनके प्रति समर्पित होना चाहिए। वे अर्जुन को चिंता से मुक्त होकर सिर्फ कृष्ण पर ही सारा ध्यान केन्द्रित करने को कहते हैं। संजय इसमें अपनी बात जोड़ते हुए कहते हैं कि जहाँ योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण हैं और जहाँ गाण्डीव-धनुषधारी अर्जुन है, वहीं पर श्री, विजय, विभूति और अचल नीति है।

Deep Dive with Abhinav Khare

पसंदीदा श्लोक 
यत्र योगेश्वर: कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धर: |
तत्र श्रीर्विजयो भूतिध्रुवा नीतिर्मतिर्मम || 

Abhinav Khare

जहाँ योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण हैं और जहाँ गाण्डीव-धनुषधारी अर्जुन है, वहीं पर श्री, विजय, विभूति और अचल नीति है।

 

विश्लेषण 

गीता के अंतिम अध्याय में कृ्ष्ण की सभी शिक्षाओं का समागम है। अर्जुन के निवेदन करने पर श्रीकृष्ण उसे त्याग और सन्यास के बीच का अंतर स्पष्ट करते हैं। कृष्ण अर्जुन को यह भी बताते हैं  कि पूजा और भक्ति जैसे अच्छे काम बिना किसी अपेक्षा के करना चाहिए। कृष्ण अर्जुन को तीनों गुणों के बीच का फर्क समझाने की कोशिश करते हैं ताकि अर्जुन इन गुणों से प्रभावित हुए बिना सही मार्ग पर चल सके। कृष्ण का मूल रूप से अर्जुन को हमेशा सही मार्ग पर चलने और बिना किसी अपेक्षा के कर्म करते रहने की शिक्षा देते हैं। कुरुक्षेत्र में जाने से पहले यह ज्ञान अर्जुन के लिए बहुत ही उपयोगी है। इस ज्ञान के अभाव में वह युद्ध से पहले ही आसक्ति से ग्रस्त हो गया था और हथियार उठाने से भी मना कर दिया था। हालांकि कृष्ण के ज्ञान से अर्जुन को वास्तविकता का पता चला और वह फिर युद्ध के मैदान में जाने के लिए तैयार हो गया। कृष्ण अर्जुन को जो आखिरी संदेश देते हैं वह हम सभी के लिए है। कृष्ण कहते हैं कि इस संवाद को हमें आध्यात्मिक शिक्षण के रूप में लेना चाहिए, क्योंकि धर्मग्रंथों के माध्यम से हम उनसे सबसे बेहतर तरीके से प्रेम कर सकते हैं।
 

कौन हैं अभिनव खरे
अभिनव खरे एशियानेट न्यूज नेटवर्क के सीईओ हैं, वह डेली शो 'डीप डाइव विथ अभिनव खरे' के होस्ट भी हैं। इस शो में वह अपने दर्शकों से सीधे रूबरू होते हैं। वह किताबें पढ़ने के शौकीन हैं। उनके पास किताबों और गैजेट्स का एक बड़ा कलेक्शन है। बहुत कम उम्र में दुनिया भर के सौ से भी ज्यादा शहरों की यात्रा कर चुके अभिनव टेक्नोलॉजी की गहरी समझ रखते है। वह टेक इंटरप्रेन्योर हैं लेकिन प्राचीन भारत की नीतियों, टेक्नोलॉजी, अर्थव्यवस्था और फिलॉसफी जैसे विषयों में चर्चा और शोध को लेकर उत्साहित रहते हैं। उन्हें प्राचीन भारत और उसकी नीतियों पर चर्चा करना पसंद है इसलिए वह एशियानेट पर भगवद् गीता के उपदेशों को लेकर एक सक्सेजफुल डेली शो कर चुके हैं।
अंग्रेजी, हिंदी, बांग्ला, कन्नड़ और तेलुगू भाषाओं में प्रासारित एशियानेट न्यूज नेटवर्क के सीईओ अभिनव ने अपनी पढ़ाई विदेश में की हैं। उन्होंने स्विटजरलैंड के शहर ज्यूरिख सिटी की यूनिवर्सिटी ETH से मास्टर ऑफ साइंस में इंजीनियरिंग की है। इसके अलावा लंदन बिजनेस स्कूल से फाइनेंस में एमबीए (MBA) भी किया है।

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